Sunday, November 17, 2024
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मुख्यमंत्री धामी ने 1 सितंबर 1994 खटीमा गोलीकांड की 29वीं वर्षगांठ पर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की

रुद्रपुर।  मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज 1 सितंबर खटीमा गोलीकांड की 29वी बरसी के अवसर पर नगर के मुख्य चौराहे पर स्थित शहीद स्मारक में गोलीकांड में शहीद हुए राज्य आंदोलनकारी की प्रतिमाओं का अनावरण किया इस अवसर पर मुख्यमंत्री के साथ रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने भी शहीद आंदोलनकारियो को पुष्पांजलि अर्पित की। उत्तराखंड राज्य के निर्माण लिए हुए आंदोलन में 1 सितंबर 1994 के दिन खटीमा नगर में निहत्ते राज्य आंदोलनकारीयो पर चलाई गई गोलियों ने सात आंदोलनकारियों की शहादत ले ली थी। उन सात आंदोलनकारी की याद में हर वर्ष 1 सितंबर को खटीमा गोली कांड की बरसी के अवसर के रूप में मनाया जाता है इस वर्ष भी खटीमा नगर के मुख्य चौराहे पर नवनिर्मित शहीद स्मारक में शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उपस्थित जन समूह को संबोधित करते हुए कहा कि हमारा लक्ष्य है कि हम राज्य निर्माण के लिए अपनी शहादत देने वाले शहीदों के सपनों को सच करने वाले उत्तराखंड राज्य का निर्माण करें और हम इसके लिए लगातार काम भी कर रहे हैं यह हमारे लिए गर्व की बात है कि आज हम राज्य निर्माण के लिए अपनी आहुति देने वाले शहीदों को सम्मानित कर पा रहे हैं। इस अवसर पर स्वयं प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शहीद स्मारक में स्थापित की गई शहीदों की प्रतिमाओं का अनावरण किया और माल्यार्पण कर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की। इस अवसर पर केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री सांसद अजय भट्ट के साथ बड़ी संख्या में भाजपा कार्यकर्ता एवं राज्य आंदोलनकारी मौके पर उपस्थित रहे।1 सितंबर 1994 का ही वो काला दिन था जब हजारों आंदोलनकारी उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर खटीमा की सड़कों पर उतरे। जब वह शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे थे उस समय अचानक उनके ऊपर गोलियों की वर्षा शुरू कर दी जिसमें 7 आंदोलनकारियों ने अपनी शहादत दी थी. इस आंदोलन में महिलाएं अपने बच्चों तक को लेकर सड़कों पर उतर आयी थीं. खटीमा गोलीकांड की आग खटीमा से लेकर मसूरी और मुजफ्फनगर तक फैल गई थी। इस खटीमा गोलीकांड में सात लोंगों की शहादत हुई और लगभग 165 से ज्यादा आंदोलनकारी गंभीर रूप से घायल भी हुए थे. महिलाओं पर भी पुलिस ने अत्याचार किये पर इन सब अत्याचारों के बावजूद भी महिलाएं इस आंदोलन में डटी रहीं थी।

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