Sunday, November 24, 2024
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करवा चौथ का व्रत 13 अक्टूबर को रखा जाएगा, रात आठ बजकर 19 मिनट पर होगा चांद का दीदार

देहरादून, करवा चौथ को लेकर बाजार में खरीददारी करने के लिये अभी से महिलाओं की भीड़ बढ़ने लगी है, वैवाहिक जीवन में सुख शांति, पति की दीर्घायु, जन्म-जन्मांतर प्रेम की प्राप्ति की कामना के लिए मनाया जाने वाला करवा चौथ का व्रत 13 अक्टूबर को रखा जाएगा। इसके लिए बाजार पूरी तरह सोलह श्रृंगार से सज चुके हैं।

करवा चौथ का व्रत :

करवाचौथ पर चतुर्थी तिथि 13 अक्टूबर की रात एक बजकर 59 मिनट से 14 अक्टूबर की सुबह तीन बजकर आठ मिनट तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार करवा चौथ का व्रत 13 को रखा जाएगा |

पूजा का शुभ मुहूर्त :

करवा चौथ व्रत की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम पांच बजकर 46 मिनट से छह बजकर 50 मिनट तक रहेगा। वहीं राज्य में चांद का दीदार का समय रात आठ बजकर 19 मिनट पर रहेगा।

करवा चौथ को लेकर महिलाओं में मेंहदी लगाने का क्रेज भी है। ऐसे में कई महिलाओं ने अभी से बुकिंग कर दी है तो कुछ महिलाओं ने घर पर मेहंदी वालों को बुलाया है जिससे क्षेत्र की महिलाओं की मेहंदी एक साथ लगाई जा सके। करवा चौथ पर महिलाएं कांच की चूड़ियां जरूर खरीदारी करती हैं।

करवा चौथ के व्रत की कथा :

करवा चौथ की कहानी है कि, देवी करवा अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के पास रहती थीं। एक दिन करवा के पति नदी में स्नान करने गए तो एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया और नदी में खिंचने लगा। मृत्यु करीब देखकर करवा के पति करवा को पुकारने लगे। करवा दौड़कर नदी के पास पहुंचीं और पति को मृत्यु के मुंह में ले जाते मगर को देखा। करवा ने तुरंत एक कच्चा धागा लेकर मगरमच्छ को एक पेड़ से बांध दिया। करवा के सतीत्व के कारण मगरमच्छा कच्चे धागे में ऐसा बंधा की टस से मस नहीं हो पा रहा था। करवा के पति और मगरमच्छ दोनों के प्राण संकट में फंसे थे।

करवा ने यमराज को पुकारा और अपने पति को जीवनदान देने और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने के लिए कहा। यमराज ने कहा मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि अभी मगरमच्छ की आयु शेष है और तुम्हारे पति की आयु पूरी हो चुकी है। क्रोधित होकर करवा ने यमराज से कहा, अगर आपने ऐसा नहीं किया तो मैं आपको शाप दे दूंगी। सती के शाप से भयभीत होकर यमराज ने तुरंत मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को जीवनदान दिया। इसलिए करवाचौथ के व्रत में सुहागन स्त्रियां करवा माता से प्रार्थना करती हैं कि हे करवा माता जैसे आपने अपने पति को मृत्यु के मुंह से वापस निकाल लिया वैसे ही मेरे सुहाग की भी रक्षा करना।
करवा माता की तरह सावित्री ने भी कच्चे धागे से अपने पति को वट वृक्ष के नीचे लपेट कर रख था। कच्चे धागे में लिपटा प्रेम और विश्वास ऐसा था कि यमराज सावित्री के पति के प्राण अपने साथ लेकर नहीं जा सके। सावित्री के पति के प्राण को यमराज को लौटाना पड़ा और सावित्री को वरदान देना पड़ा कि उनका सुहाग हमेशा बना रहेगा और लंबे समय तक दोनों साथ रहेंगे।

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