(सुनील त्रिवेदी)
मित्र की मित्रता को शब्दों से रेखांकित और व्यक्त कर पाना असंभव है , मेरा मित्र रोज़ मेरे साथ घण्टों रहता है, जुबान नही है बेचारे की, फिर भी साथ निभाता है और अपने से ज्यादा मुझको चाहता है ।
सुबह सुबह मेरी मोटर साईकल पर बैठकर आफिस जाता है मेरी सीट के बगल में बैठकर मुझे ताकता रहता है। समय समय पर पानी की और दोपहर में लंच पर टिफिन की व्यवस्था करता है ।
दो दिन पहले अपनी ड्यूटी समाप्त करके मैं घर के लिए आ रहा था और पिछली सीट पर हमेशा की तरह वह बैठा था। इसीबीच में एक अन्य मित्र का फ़ोन आ जाने की वजह से फ़ोन को हेलमेट में फंसा कर मोटर साईकल चलाते हुए बात कर रहा था और आनंद की अनुभूति ले रहा था । अचानक साइड मिरर से देखा तो दंग रह गया ! मेरा साथ निभाने वाला मित्र पीछे नही बैठा था , मैंने अपनी मोटर साईकल वापस घुमाई और रास्ते में मिलने वालों से पूछा , पर सारे प्रयास असफल किसी ने भी मेरे मित्र को नही देखा था, वह बेचारा बोल नही सकता था ।
अपने इस असफल प्रयास के साथ थक हार करके घर आ गया और सोचने लगा मित्र के बिना जीवन कितना सूना हो जाएगा ।
अपने कुछ परिचितों से सलाह मशविरा की और आगे क्या क्या कोशिशें की जा सकती हैं,अपने लापता मित्र को खोजने की जुगत सोचते सोचते पूरी रात बीत गई , पर कोई उपाय न सूझा बस एक विचार आया की लापता दोस्त की इस बात को सोशल मीडिया पर प्रचारित कर दिया जाए ।
सुबह फिर आफिस जाने की तैयारी करके और बिना दोस्त को लिए चल पड़ा । रास्ते में एक बार फिर लापता दोस्त का हुलिया लोगों को बताते हुए आगे बढ़ रहा था, सुबह सुबह की यह ऊर्जा काम आई और इसबार का प्रयास सफल हुआ और एक दुकानदार ने बताया कि कल वह आपकी मोटर साईकल से गिर गया था, हम लोगों ने आपको आवाज लगाई पर आप किसी से फ़ोन पर इतना मशगूल थे कि हमारी आवाज पर ध्यान ही नही दिया ।
आपकी संपत्ति इस फल वाले के दुकान में है आप ले सकते हैं और मेरा प्रिय मित्र अर्थात “मेरा बैग”
मिल गया मैंने उसे मित्र की संज्ञा इसलिए दी कि उसमें पानी की बोतल मुझे पानी पिलाती है, लंच में बैग में रखा लंच बॉक्स मेरी भूख मिटाता है, उसमें रखी चेक बुक मुझे जरूरत पर पैसे देती है । अब मैं बहुत खुश हूं की मुझे मेरा मित्र का साथ फिर मिल गया है।
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