Monday, November 25, 2024
HomeStatesUttarakhandनई सरकार के सामने पांच बड़ी चुनौतियां, पांच विशेषज्ञों ने इन पांच...

नई सरकार के सामने पांच बड़ी चुनौतियां, पांच विशेषज्ञों ने इन पांच चुनौतियों से निपटने के लिए दिये टिप्स

देहरादून, उत्तराखंड की नई सरकार को अगले पांच वर्षों में पांच बड़ी चुनौतियों का सामना करना होगा। राज्य सरकार जन उपयोगी नीतियां बनाकर इन चुनौतियों से निपट सकती है। ये चुनौतियां हैं – शिक्षा, स्वास्थ्य, पलायन व रोजगार, उद्योग और गवर्नेंस। पीएचडी चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स उत्तराखंड और एसडीसी फाउंडेशन द्वारा वाउ कैफे में आयोजित उत्तराखंड एट 25 कार्यक्रम में अलग-अलग विषय विशेषज्ञों ने इन चुनौतियों से निपटने की टिप्स दिये।

250 स्कूलों को पूरी तरह सुधारो :

शिक्षाविद् और डीआईटी यूनिवर्सिटी के चांसलर एन रविशंकर ने कहा कि 250 उत्कृष्ट श्रेणी के स्कूल पूरे शिक्षा जगत में आमूलचूल परिवर्तन ला सकते हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में 189 स्कूलों को अटल आदर्श विद्यालय के रूप में डेवलप किया जा रहा है। इसके अलावा 13 जवाहर नवोदय विद्यालय और 13 राजीव गांधी नवोदय विद्यालय भी राज्य में हैं। कुछ जीआईसी और जीजीआई से इनमें शामिल करके 250 स्कूलों में क्वालिटी एजुकेशन की व्यवस्था कर सरकार को एक बड़ा संदेश देना चाहिए। इन स्कूलों की देखादेखी अन्य स्कूलों में भी स्थिति सुधर जाएगी। उन्होंने कहा कि आईटीआई और पॉलीटेक्निक को सिर्फ सर्टिफिकेट का साधन न बनाया जाए, बल्कि इंडस्ट्री का सहयोग लेकर वहां छात्रों को कौशल विकास किया जाए।

अरबन हेल्थ पर ध्यान दें :
उत्तराखंड पब्लिक सर्विस कमीशन के चैयरमैन डॉ. राकेश कुमार ने 1947 के आंकड़ों के साथ तुलना करके बताया की हेल्थ संबंधी स्थितियों में कई सुधार हुए हैं, लेकिन अब भी स्थितियां पूरी तरह से संतोषजनक नहीं हैं। उन्होंने अरबन हेल्थ पर ध्यान देने की जरूरत बताते हुए कहा कि बढ़ते शहरीकरण के साथ इस सेक्टर पर ध्यान देने की जरूरत है। डॉ. राकेश कुमार का कहना था कि संक्रामक बीमारियों से निपटने के लिए हम अलर्ट मोड पर होते हैं, जो एक अच्छी बात है, लेकिन गैर संक्रामक बीमारियां ज्यादा लोगों की जान ले रही हैं। कैंसर, डायबिटीज, हाईपर टेंशन, कार्डिक अटैक जैसे गैर संक्रामक रोगों से निपटने की वर्तमान की व्यापक नीतियों और योजनाएं को और बेहतर क्रियान्वित करने की जरूरत है। उन्होंने युवाओं को तंबाकू और अल्कोहल से दूर रखने के प्रयास करने की भी जरूरत बताई।

ब्लॉक मुख्यालयों में हो हर सुविधा :
दून यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट के हेड डॉ. आरपी मममाईं का कहना था कि राज्य के सभी 95 ब्लॉक मुख्यालयों में हर तरह की सुविधा उपलब्ध करवाकर राज्य के हर क्षेत्र का विकास किया जा सकता है। ब्लॉक मुख्यालय पर एजुकेशन, पब्लिक हेल्थ, सरकारी आवास, एग्री बिजनेस और आईटी सर्विस जैसी हर सुविधा उपलब्ध करवाएंगे तो कम से कम 500 लोगों को रोजगार मिलेगा और लोकल प्रोडक्ट की खपत भी बढ़ेगी और विकास की चेन गांवों तक पहुंचेगी। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के पिछड़ने का सबसे मुख्य कारण पहाड़ केन्द्रित नीतियां न बनाया जाना है। स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास और रोजगार संबंधी नीतियां पहाड़ों को ध्यान में रखकर बनाई जानी चाहिए। आयुष्मान भारत योजना का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इस योजना में जो भी पैसा आ रहा है वह मैदानों के अस्पतालों को मिल रहा है। डॉ. ममगाईं ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में 50 प्रतिशत ग्रेजुएट युवाओं के पास रोजगार नहीं है। पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन करने वालों में 64 प्रतिशत पूरे परिवार के साथ पलायन करते हैं और जो महिलाएं पहाड़ों में रह कर आर्थिकी की धुरी होती हैं वे शहर में आकर इस चेन से बाहर हो जाती हैं।

इंडस्ट्री ग्रोथ का माहौल बने:

पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स उत्तराखंड चैप्टर के चैयरमैन हेमंत कोचर का कहना था कि राज्य में परिस्थितियां औद्योगिक विकास के अनुकूल बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि राज्य में जहां भी इंडस्ट्रियल एरिया विकसित किये गये हैं, वहां स्थितियों को सुधारने की बहुत बड़ी ज़रूरत है । इन जगहों पर सड़कों, ट्रक पार्किंग, पीने का पानी, खाने की व्यवस्था और टॉयलेट जैसी मूलभूत सुविधा की ज़रूरत हैं । इसके अलावा कोई इंडस्ट्री आती है तो कुशल स्टाफ नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि पॉलीटेक्निक और आईटीआई से बेहतर है कि युवाओं को किसी इंडस्ट्री में भेजा जाए, जहां वे ज्यादा सीख सकते हैं। टूरिज्म को उन्होंने राज्य की सबसे बड़ी इंडस्ट्री बताया। कहा कि अच्छी सड़कें बनने से ज्यादा टूरिस्ट आने लगे हैं, लेकिन टूरिस्ट को अपने पसंदीदा डेस्टिनेशन तक पहुंचाने के लिए सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था नहीं है। उन्होंने टूरिज्म बेस्ड ट्रांसपोर्ट व्यवस्था शुरू करने की जरूरत बताई। उन्होंने लेबर पॉलिसी में बदलाव की जरूरत भी बताई। कहा कि 70 प्रतिशत स्टाफ लोकल रखने की शर्त के कारण ठेका प्रथा को बढ़ावा मिला है। उन्होंने इंडस्ट्री के लिए सपोर्ट सेंटर बनाने और फिल्म निर्माण के लिए पैकेज देने की भी सिफारिश की।

दूर-दराज से शुरू हो विकास :

पूर्व प्रशासनिक अधिकारी और लाल बहादुर शास्त्री एकेडमी में पूर्व निदेशक संजीव चोपड़ा ने कहा कि अन्य अनेक राज्यों की तुलना में उत्तराखंड में विकास की ज्यादा संभावनाएं हैं और यहां काम भी हुए हैं। उनका कहना था राज्य का सर्वांगीण विकास करना है तो इसके लिए जरूरी है कि विकास सुदूर क्षेत्रों से शुरू करके राजधानी की तरफ आये। फिलहाल पूरा ध्यान राजधानी पर है और दूर-दराज के क्षेत्र उपेक्षित हैं। उन्होंने कहा कि यदि सरकार नियमों के साथ और पारदर्शिता अपनाते हुए काम करे तो हर तरह की समस्या का समाधान किया जा सकता है। उन्होंने सरकार को सलाह दी की राज्य को देश का पहला बीपीएल मुक्त राज्य बनाने की दिशा में काम करे। दुनिया का बेस्ट मॉडल भारत में कहीं न कहीं उपलब्ध हैं, उन्हीं मॉडल के अनुरूप काम किया जाना चाहिए। उन्होंने शहरी क्षेत्रों में आवास को बड़ी चुनौती बताया। कहा कि आवास संबंधी योजना बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि जब अफोर्डेबल आवास की बात हो तो उसमें सिर्फ बजट का ही नहीं, इस बात का ध्यान भी रखा जाए कि वह आवास ठीक-ठाक रहने लायक भी हो।

उत्तराखंड एट 25 संवाद का संचालन एसएससी फाऊंडेशन के अनूप नौटियाल ने किया। संवाद मे रश्मि चोपड़ा, विशाल काला, विक्रम जीत, सटस लेपचा, संजय भार्गव, डॉ. मयंक बडोला, अनिल सती, त्रिलोचन भट्ट, स्नेहा, अमन और अन्य उपस्थित रहे ।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments