नयी दिल्ली, भारतीय अर्थव्यवस्था अगले वित्त वर्ष (2022-23) में 8-8.5 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा सोमवार को संसद में पेश 2021-22 की आर्थिक समीक्षा में यह अनुमान लगाया गया है। समीक्षा के मुताबिक, 2022-23 का वृद्धि अनुमान इस धारणा पर आधारित हैं कि आगे कोई महामारी संबंधी आर्थिक व्यवधान नहीं आएगा, मानसून सामान्य रहेगा, कच्चे तेल की कीमतें 70-75 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहेंगी और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के व्यवधान इस दौरान लगातार कम होंगे। समीक्षा में कहा गया कि तेजी से हुए टीकाकरण, आपूर्ति-पक्ष के सुधारों तथा नियमनों को आसान बनाने के साथ ही अर्थव्यवस्था भविष्य की चुनौतियों से निपटने को अच्छी तरह तैयार है। आर्थिक समीक्षा में उम्मीद जाहिर की गई है कि अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष के दौरान 9.2 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी, जो महामारी से पहले के स्तर के मुकाबले सुधार का संकेत है। इसका मतलब है कि वास्तविक आर्थिक उत्पादन का स्तर 2019-20 के कोविड-पूर्व स्तर को पार कर जाएगा। वित्त वर्ष 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.3 प्रतिशत की गिरावट आई थी। प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल के नेतृत्व वाले एक दल द्वारा तैयार इस दस्तावेज में आगे कहा गया कि 2020-21 में अर्थव्यवस्था को दिए गए वित्तीय समर्थन के साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं के कारण राजकोषीय घाटा और सरकारी ऋण बढ़ गया। हालांकि, 2021-22 में अब तक सरकारी राजस्व में जोरदार उछाल देखने को मिला है। समीक्षा के अनुसार, सरकार के पास समर्थन बनाए रखने और जरूरत पड़ने पर पूंजीगत व्यय बढ़ाने की वित्तीय क्षमता है।
आर्थिक समीक्षा भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति को मजबूत बनाने के लिए आपूर्ति-पक्ष के मुद्दों पर केंद्रित है। समीक्षा में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में है और यह 2022-23की चुनौतियों से निपटने में सक्षम है। समीक्षा कहती है, ‘‘कुल मिलाकर वृहद-आर्थिक स्थिरता संकेतक बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2022-23 की चुनौतियों का सामना करने के लिए अच्छी तरह से तैयार है। भारतीय अर्थव्यवस्था के अच्छी स्थिति में होने की एक वजह इसकी अनोखी प्रतिक्रिया रणनीति है।’’ समीक्षा कहती है कि अगले वित्त वर्ष में वृद्धि को व्यापक टीकाकरण, आपूर्ति-पक्ष में किए गए सुधारों से हासिल लाभ एवं नियमनों में दी गई ढील से समर्थन मिलेगा। समीक्षा में कहा गया है कि निर्यात में मजबूत वृद्धि और राजकोषीय गुंजाइश होने से पूंजीगत व्यय में तेजी आएगी जिससे अगले वित्त वर्ष में वृद्धि को समर्थन मिलेगा। इसमें कहा गया है, ‘‘देश की वित्तीय प्रणाली अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार को समर्थन देने के लिए बेहतर स्थिति में है। वित्तीय प्रणाली की मजबूती से निजी निवेश में तेजी आने की संभावना है।’’ समीक्षा कहती कि निजी क्षेत्र का निवेश बढ़ने की उम्मीद है, क्योंकि अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए वित्तीय प्रणाली अच्छी तरह तैयार है। इसमें आगे कहा गया कि बैंकिंग प्रणाली अच्छी तरह से पूंजीकृत है और गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) में संरचनात्मक रूप से गिरावट आई है। समीक्षा के मुताबिक, थोक कीमतों पर आधारित मुद्रास्फीति की ऊंची दर कुछ हद तक आधार प्रभाव के कारण है, लेकिन साथ ही इसमें कहा गया है कि भारत को आयातित मुद्रास्फीति से सावधान रहने की जरूरत है। ऊंची ऊर्जा कीमतों के संबंध में खासतौर से यह बात कही गई है। समीक्षा के मुताबिक केंद्र एवं राज्य सरकारों का सामाजिक सेवा क्षेत्र पर सम्मिलित व्यय वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 71.61 लाख करोड़ रुपये हो गया। यह वर्ष 2020-21 में 65.24 लाख करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से 9.8 प्रतिशत अधिक है।
आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, वर्ष 2021-22 में केंद्र एवं राज्य सरकारों का सामाजिक सेवाओं पर व्यय 71.61 लाख करोड़ रुपये रहने का बजट अनुमान है। इसमें शिक्षा क्षेत्र पर सर्वाधिक 6.97 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए जबकि स्वास्थ्य पर 4.72 लाख करोड़ रुपये खर्च हुए। वहीं वित्त वर्ष 2020-21 में सामाजिक सेवा क्षेत्र पर सरकारी व्यय 65.24 लाख करोड़ रुपये रहा था। इसमें शिक्षा क्षेत्र पर 6.21 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए थे जबकि स्वास्थ्य क्षेत्र पर 3.50 लाख करोड़ रुपये व्यय किए गए थे। दूरसंचार क्षेत्र में सुधारों से 4जी प्रसार को बढ़ावा मिलेगा, तरलता या नकदी का प्रवाह बढ़ेगा और 5जी नेटवर्क में निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनेगा। समीक्षा में आगे कहा गया कि 2021 में समाप्त 2020-21 के आपूर्ति वर्ष में एथनॉल की आपूर्ति 302 करोड़ लीटर से अधिक रहने का अनुमान है। यह आपूर्ति वर्ष 2013-14 में केवल 38 करोड़ लीटर थी। आर्थिक समीक्षा ने कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए जारी टीकाकरण को न सिर्फ स्वास्थ्य बल्कि अर्थव्यवस्था को खोलने के लिहाज से भी बेहद अहम बताया है। इसके मुताबिक, देश की 70 फीसदी से अधिक वयस्क आबादी को कोविड टीके की दोनों खुराकें लगाई जा चुकी हैं। दस्तावेज में कहा गया कि देश को 2024-25 तक 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिये इस दौरान बुनियादी ढांचे पर 1,400 अरब डॉलर खर्च करने की जरूरत होगी। इसमें कहा गया है कि वित्त वर्षों 2008-17 के दौरान भारत ने बुनियादी ढांचे पर 1,100 अरब डॉलर खर्च किये हैं। हालांकि, बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश बढ़ाने को लेकर चुनौतियां भी हैं। निर्यात में विविधता लाने के लिए आर्थिक समीक्षा में प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) पर जारी बातचीत को तेजी से आगे बढ़ाने पर जोर दिया गया है। समीक्षा के मुताबिक भारत 630 अरब डॉलर से अधिक के विदेशी मुद्रा भंडार और हालात से निपटने के लिए पर्याप्त नीतिगत गुंजाइश होने से फेडरल रिजर्व समेत विदेशी केंद्रीय बैंकों के मौद्रिक नीतिगत कदमों का बखूबी सामना कर सकता है। आर्थिक समीक्षा में अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व और अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंकों की मौद्रिक नीतियों के साथ तालमेल बिठाने के लिए भारत की मौद्रिक स्थिति को उपयुक्त बताया गया। आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि इक्विटी निवेश में सुस्ती के चलते अप्रैल-नवंबर, 2021 के दौरान शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) घटकर 24.7 अरब डॉलर रह गया, जबकि सकल एफडीआई आवक घटकर 54.1 अरब डॉलर रही। समीक्षा के मुताबिक कृषि क्षेत्र ने कोविड-19 के झटके को सहने के प्रति अपनी जिजीविषा को प्रदर्शित किया है और इसके चालू वित्तवर्ष में 3.9 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है। समीक्षा में सरकार को फसल विविधीकरण, संबद्ध कृषि क्षेत्रों और नैनो यूरिया जैसे वैकल्पिक उर्वरकों को प्राथमिकता देने का सुझाव भी दिया गया है।
इसमें कहा गया कि आपूर्ति पक्ष के बेहतर प्रबंधन और ईंधन शुल्क में कटौती के चलते चालू वित्त वर्ष में अभी तक कीमतें काफी हद तक नियंत्रित रही हैं। हालांकि, इसमें महंगाई को लेकर कोई पूर्वानुमान नहीं दिया गया है। समीक्षा में कहा गया है कि आयातित खाद्य तेल और दालों की मुद्रास्फीति ने इन उत्पादों की कीमतों को बढ़ा दिया, जिसे सरकार ने सक्रिय उपायों से नियंत्रित किया। आर्थिक समीक्षा के मुताबिक महामारी के आर्थिक झटकों को देश की वाणिज्यिक बैंकिंग प्रणाली ने अच्छी तरह झेला है। हालांकि कुछ विलंबित प्रभाव अभी भी देखे जा सकते हैं। समीक्षा में आगे कहा गया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कुल शुद्ध लाभ वर्ष 2021-22 की पहली छमाही में यह बढ़कर 31,144 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। वर्ष 2020-21 की पहली छमाही में यह 14,688 करोड़ रुपये रहा था। समीक्षा में कहा गया कि रेल क्षेत्र में अगले 10 साल के दौरान भारी पूंजीगत खर्च देखने को मिलेगा। रेलवे की क्षमता वृद्धि पर ध्यान देने की जरूरत होगी, जिससे 2030 तक इसकी क्षमता मांग से अधिक रहे। इसके लिए क्षेत्र पर भारी पूंजीगत खर्च करने की जरूरत होगी। समीक्षा में कहा गया कि भारतीय रेल के लिए 2009-14 के दौरान औसत वार्षिक पूंजीगत व्यय 45,980 करोड़ रुपये था, जिसे 2021-22 के दौरान 2,15,058 करोड़ रुपये तक बढ़ाया गया। इसमें आगे कहा गया कि राजस्व में अच्छी वृद्धि और सरकार की अनुकूल राजकोषीय नीति से अतिरिक्त वित्तीय समर्थन की और गुंजाइश बनी है। सकल कर राजस्व अप्रैल-नवंबर 2021 के दौरान 50 प्रतिशत बढ़ा है। जबकि माल एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह जुलाई, 2021 से लगातार एक लाख करोड़ रुपये के ऊपर बना हुआ है। आर्थिक समीक्षा पर प्रतिक्रिया देते हुए उद्योग जगत ने सोमवार को कहा कि अगले वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की 8 से 8.5 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान ‘आशावादी’ है।
उद्योग जगत का कहना है कि केंद्रीय बजट में अर्थव्यवस्था में नई जान डालने के लिये राजकोषीय प्रबंधन तथा सुधारों को आगे बढ़ाये जाने पर जोर दिये जाने की उम्मीद है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण मंगलवार को संसद में 2022-23 का बजट पेश करेंगी। जबकि 2021-22 की आर्थिक समीक्षा सोमवार को पेश की गयी। हालांकि, विशेषज्ञों ने कहा कि एक अप्रैल से शुरू हो रहे वित्त वर्ष 2022-23 के लिये 8 से 8.5 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान आशावादी जरूर है लेकिन यह जिन सकारात्मक मान्यताओं पर आधारित है, उसमें से कुछ शायद पूरे नहीं हों। उद्योग मंडल सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि आर्थिक समीक्षा में चालू वित्त वर्ष के लिये 9.2 प्रतिशत और अगले वित्त वर्ष के लिये 8 से 8.5 प्रतिशत वृद्धि दर का अनुमान भारत को लगातार दो साल तक दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बनाएगा। उद्योग मंडल एसोचैम ने कहा कि आर्थिक समीक्षा के अनुसार, आपूर्ति व्यवस्था में सुधार तथा कोविड-19 महामारी से प्रभावित समाज के कमजोर तबकों के लिये किये गये उपायों के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था 2022-23 की चुनौतियों का सामना करने के लिए अच्छी तरह से तैयार है। पीडब्ल्यूसी इंडिया में आर्थिक सलाहकार सेवाओं के भागीदार और प्रमुख रानेन बनर्जी ने कहा कि समीक्षा में वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष में 8-8.5 प्रतिशत की सीमा में बढ़ने का अनुमान है। इसमें स्पष्ट आंकड़ों के बजाय दायरा दिया गया है। क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी ने भी कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 के लिये वृद्धि परिदृश्य आशावादी है क्योंकि बाह्य कारकों की वजह से इसके नीचे जाने का जोखिम है। इसमें कच्चे तेल की ऊंची कीमत और कई प्रमुख देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा मौद्रिक नीति रुख को कड़ा किये जाने को लेकर उठाये जा रहे कदम हैं।
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