केंद्र सरकार के कर्मचारी, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) से बाहर निकलकर पुरानी पेंशन व्यवस्था (ओपीएस) के दायरे में आने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हजारों कर्मचारी इस मुद्दे को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में पहुंच चुके हैं। केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन बात नहीं बन सकी। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार की अधिकांश ‘विशेष अनुमति याचिका’ (एसएलपी) और समीक्षा याचिकाओं को खारिज कर दिया है। अब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णयों के मद्देनजर वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) और विधि और न्याय मंत्रालय से सुझाव मांगा है। वित्त विभाग ने अपनी ओर से हरी झंडी दे दी है, जबकि विधि और न्याय मंत्रालय अभी चुप है। दूसरी तरफ, केंद्र सरकार में अनेक ऐसे कर्मी, जिनकी भर्ती प्रक्रिया एक जनवरी 2004 के बाद पूरी हुई थी और वे एनपीएस के दायरे में आ गए थे, अब उन्हें दोबारा से ‘पुरानी पेंशन व्यवस्था’ में शामिल किया जा रहा है।
एनपीएस और पुरानी पेंशन को लेकर संघर्ष जारी है
विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों में कार्यरत कर्मियों द्वारा पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल कराने के लिए लगातार आवाज उठाई जा रही है। केंद्र सरकार के कार्मिकों के प्रतिनिधि समूह ‘नेशनल काउंसिल ऑफ जेसीएम’ ने डीओपीटी और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के साथ हुई बैठक में कई बार इस मुद्दे को संजीदगी से उठाया है। इसके अलावा विभिन्न कर्मचारी संगठन एवं एसोसिएशन भी समय समय पर इस मसले को लेकर आवाज बुलंद करती रही हैं। अर्धसैनिक बलों के लिए ‘कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन’ इस मांग को पूरे जोर-शोर से उठा रही है। संसद के मौजूदा सत्र में यह भी मुद्दा कई बार उठ चुका है। सांसद चौधरी सुखराम सिंह यादव, विशंभर प्रसाद निषाद और नीरज शेखर ने पुरानी पेंशन को लेकर सवाल पूछा है। नीरज शेखर से पूछा, क्या पेंशन और पेंशनभोगी कल्याण विभाग (डीओपीएंडपीडब्ल्यू) ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के विभिन्न निर्णयों को ध्यान में रखते हुए वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) एवं विधि और न्याय मंत्रालय से उन कर्मचारियों को एनपीएस से बाहर करने व उन्हें पुरानी पेंशन योजना में शामिल करने के लिए विचार मांगे थे, जिनकी भर्ती का विज्ञापन 31 दिसंबर को या उससे पहले जारी हुआ था। संबंधित मंत्रालय एवं विभाग ने इस बाबत केंद्र सरकार को क्या सलाह दी है।
ऐसे कर्मियों को मिल सकती है ‘पेंशन’: वित्त विभाग
कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय में राज्य मंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय में ‘एमओएस’ डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया, वित्तीय सेवा विभाग ने पुरानी पेंशन बाबत अपनी रिपोर्ट दे दी है। पेंशन ओर पेंशनभोगी कल्याण विभाग (डीओपीएंडपीडब्लू) उन कर्मचारियों, जिनकी भर्ती के लिए विज्ञापन दिनांक एक जनवरी 2004 को या उससे पहले जारी किया गया था, को ‘एनपीएस’ के दायरे से बाहर करने के संबंध में उचित निर्णय ले सकता है। मतलब ऐसे कर्मियों को ‘पुरानी पेंशन व्यवस्था’ का लाभ मिल सकता है। दूसरी तरफ, विधि कार्य विभाग से अभी तक इस मसले पर कोई टिप्पणी प्राप्त नहीं हुई है। सदन में सुखराम सिंह यादव और विशंभर प्रसाद निषाद ने पूछा कि क्या सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2021 के दौरान विभिन्न एसएलपी और समीक्षा याचिकाओं को खारिज कर दिया है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस सवाल के जवाब में कहा, सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 के दौरान, उन सरकारी कर्मचारियों को, जिनकी चयन प्रक्रिया एक जनवरी 2004 के बाद पूरी हुई थी, पुरानी पेंशन योजना का लाभ देने की अनुमति देने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेशों के विरुद्ध भारत संघ द्वारा दायर कुछ एसएलपी को खारिज कर दिया है।
22 दिसंबर 2003 को जारी की थी अधिसूचना
बता दें कि वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग द्वारा 22 दिसंबर 2003 को एक अधिसूचना जारी की गई थी। इसके तहत सरकारी विभागों में राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) को लागू किया गया था। एक जनवरी 2004 के बाद केंद्र सरकार में हुई सभी नई भर्तियों (सशस्त्र बलों को छोड़कर) के लिए राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) अनिवार्य तौर पर लागू कर दी गई। 22 दिसंबर 2003 की अधिसूचना के विशिष्ट उपबंधों को ध्यान में रखते हुए, पुरानी पेंशन योजना या राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के तहत कवर किए जाने के संबंध में पात्रता निर्धारित करने के लिए रिक्तियों के विज्ञापन की तारीख को प्रासंगिक नहीं माना जाता है। अब सुप्रीम कोर्ट ने उन सरकारी कर्मचारियों को, जिनकी चयन प्रक्रिया एक जनवरी 2004 के बाद पूरी हुई थी, पुरानी पेंशन योजना का लाभ देने की अनुमति देने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेशों के विरुद्ध केंद्र सरकार द्वारा दायर कुछ एसएलपी को खारिज कर दिया है। सांसद नीरज शेखर ने पूछा, क्या उच्चतम न्यायालय द्वारा सुनवाई किए बिना एसएलपी और समीक्षा याचिकाओं को प्रवेश स्तर पर खारिज करने के बाद भी सरकार के अधिकारी प्रत्येक मामले में अपने ही अधिकारियों को परेशान कर उन्हें जान बूझकर झूठे मुकदमेबाजी की सलाह दे रहे हैं। क्या ये सब केंद्र सरकार की जन-समर्थक छवि को धूमिल करने का प्रयास है।
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