(✒️जेपी मैठाणी की रपट ) “सरकार की उदासीनता के बावजूद शोध अध्ययन कर किया जा रहा है प्रचारित-प्रसारित”
देहरादून से लगभग 265 किमी0 की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर लगभग 4000 फीट (1300 मीटर) की ऊँचाई पर स्थित है एक पर्यटक स्थल पीपलकोटी. पीपलकोटी अपनी खूबसूरत घाटी, पीपल के पेड़ों, सीढ़ीनुमा खेतों के साथ-साथ अच्छी व्यवस्था वाले होटलों, ढाबों, पर्यटक आवास गृह के लिए जाना जाता है. पीपलकोटी में ही प्रदेश के पहले बायोटूरिज़्म पार्क (जिसकी स्थापना 1999-2001 में हुई थी) भी स्थित है. पुरातन समय से ही पीपलकोटी बद्रीनाथ यात्रा मार्ग की एक प्रमुख चट्टी/ पड़ाव रहा है |
पीपलकोटी से अनेक ट्रैकिंग रूट्स जो कि कम जाने जाते हैं या नहीं जाने जाते हैं उनका प्रचार-प्रसार एवं मार्केटिंग का कार्य आगाज़ संस्था कर रही है. इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण ट्रैकिंग पीपलकोटी से हस्तशिल्प ग्राम किरूली होते हुए पांचुला बुग्याल पहुंचता है. पांचुला बुग्याल जनपद चमोली के दशोली विकासखण्ड के बण्ड पट्टी के रिंगाल हस्तशिल्प ग्राम किरूली का छानी/मरोड़ा बुग्याल क्षेत्र है. यहाँ बड़े-बड़े शानदार सीढ़ीनुमा खेत हैं जिनमें ग्रामीण आलू, चैलाई, राजमा के अलावा जड़ी-बूटी जैसे- कुटकी और जटामासी की खेती करते हैं |
कैसे पहुंचे पांचुला बुग्याल :
पांचुला बुग्याल जाने के लिए पीपलकोटी से 4 किमी0 पहले गडोरा नामक स्थान से राष्ट्रीय राजमार्ग के दाहिनी ओर से लगभग 4 किमी0 की दूरी पर किरूली गाँव तक सीधी चढ़ाई वाला थका देने वाला ट्रैक है. वैसे अब किरुली गाँव तक जीप, ट्रेकर और दुपहिया वाहन जाने लगे हैं. गडोरा से लगभग 4 किलोमीटर किरूली गाँव में बण्ड पट्टी के नगर पंचायत पीपलकोटी और आस पास की 6 से अधिक ग्राम पंचायतों के भूमि के देवता बण्ड भूमियाल का मंदिर है. जो दो तरफ से बांज, बुरांस और देवदारों के पेड़ों से घिरा हुआ है. यहीं से शुरू होता है पांचुला का असली ट्रैक. पिट्ठू कस लीजिए, पानी को बोतलें भर लीजिए, सामान की लिस्ट चैक कर लीजिए अब आगे सिर्फ जंगल और प्रकृति का साथ है |
किरूली गाँव के ऊपर कौंटा नामक स्थान पर स्थित बण्ड भूमियाल के दर्शन करते हुए हम घने रिंगाल, बांज, बुरांस, अयांर, काफल, लोध आदि के जंगल से एक शानदान स्थान पर पहुँचते हैं और थोड़ी देर के लिए सुस्ताने लगते हैं. इस स्थान को कहते हैं बचणी बांज. बचणी बांज नामक स्थान पर बांज के विशाल वृक्ष हैं जिनकी उम्र सौ वर्ष से अधिक होगी. ऐसे विशाल बांज के वृक्ष गढ़वाल में कम ही देखने को मिलते हैं. इस स्थान की ऊँचाई लगभग 1900 मीटर होगी |
जंगल के बीच चिड़ियों और झिंगुरों की आवाज मन मोह लेती है. अब हमें यहाँ से बद्रीनाथ और नंदा देवी क्षेत्र की हिमालय की हिमाच्छादित चोटियां दिखाई देने लगती हैं. जो यहाँ आने वाले ट्रैकर्स के हृदय और मनोमस्तिष्क को बरबस अपनी ओर आकर्षित करते हैं. नीचे अलकनन्दा घाटी में गडोरा, गड़ी, नौरख पीपलकोटी, हाट, जैंसाल और बटुला मायापुर की शानदार सीढीनुमा खेती दिखाई देती है. लेकिन सामने की पहाड़ियों जैसे रामचरण चोटी (रमछाणा डांडा) पर वर्तमान में गोपेश्वर से बेमरू और हाट की तरफ और हाट में बन रही जल विद्युत परियोजना के द्वारा बनाये गये सड़क और खनन के घाव और ढाल पर बेतरतीब फेंके गये मलबे के दृश्य मन को थोड़ा उदास करते हैं. पूरा हिमालय आजकल अवैज्ञानिक तरीके से हो रहे विकास कार्यों से उत्पन्न होने वाले पर्यावरणीय संकटों को भी झेल रहा है |
पांचुला ट्रैक पर है बण्ड क्षेत्र का कौणी के प्रसाद वाला कौणजाख देवता का मंदिर, मेरी तरह आप भी चैंक गये होंगे न कि ऐसा मंदिर जो सिर्फ सिम्बोलिक है लेकिन उसमें प्रसाद के रूप में पहाड़ में उगने वाला मोटे अनाज कौणी की बालियां चढ़ाई जाती हैं. यह उत्तराखण्ड में खाद्यान्न अनाजों और जैव विविधता संरक्षण के अंतर्सम्बन्धों को दर्शाता है |
बचणी बांज से आगे अब सुंदर ट्रैक लगभग 2000 मीटर की ऊँचाई पर दूसरे पड़ाव कौणजाख देवता पड़ाव पर पहुँचता है. यहाँ से बण्डीधूर्रा, डुमक कलगोठ, बेमरू के ऊपरी क्षेत्रों की बर्फ से आच्छादित कई अनाम चोटियां दिखने लगती हैं. ऐसा लगने लगता है जैसे हम हिमालय की उपत्यका में भ्रमण कर रहे हों. कौणजाख नामक स्थान पर एक छोटा सा मंदिर है जो एक तरह से वन देवी-देवताओं के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए एक सुनिश्चित स्थान है |
किरूली के रिंगाल हस्तशिल्प गुरू प्रदीप कुमार बताते हैं कि हमारे पूर्वज बताते थे कि जब भी हमारे गाँव के आसपास धान, कोदा, झंगोरा, तिल और कौणी की फसल तैयार हो जाती थी तब कौणी जिसे कि अंग्रेजी में फॉक्सटेल मिलेट कहते हैं. और इसका वानस्पतिक नाम Setaria italica है. कौणी की नयी फसल तैयार होने पर उसकी बालियां कौणजाख में चढ़ाई जाती हैं. वहाँ एक बंदर आता है और वो स्थानीय ग्रामीणों द्वारा प्रसाद के रूप में चढ़ाई गई प्रसाद के रूप में नई कौणी की बालियों को लेकर पूजा के लिए चला जाता है |
कौणजाख से अब पांचुला की दूरी सिर्फ आधा किमी रह जाती है किरूली से पांचुला तक पहुंचने की थकान पांचुला के बुग्याल क्षेत्र में प्रवेश करते ही गायब हो जाती है. पूरब, उत्तर और दक्षिण दिशा में शानदार हरियाली से भरे पर्वत श्रृंखलायें दिखाई देती हैं और पश्चिमोत्तर दिशा में अलकनन्दा नदी की घाटी. घाटी के उस पार हाट, जैंसाल, बजनी, झड़ेता, मठ, बेमरू और शाम के धुंधलके में सुदूर उत्तर में डुमक कलगोठ की टिमटिमाती रोशनी |
आओ चलो टेंट लगायें :
अब हम लगभग 2000-2100 मीटर की ऊँचाई पर स्थित घास के मैदान पांचुला पर पहुँच गये हैं. जहाँ जिध नज़र दौड़ाओ हरे-भरे तप्पड़ दिखाई देते हैं, ऊपर नीला आसमान है. दक्षिण पूर्व दिशा में घने बांज बुरांस के जंगल हैं, कई प्रकार के जंगली पक्षियों की चहचहाहट, हरे घास के मैदानों में उछलती कूदती भेड़-बकरियां, गाय-भैंसो के गले में बंधी घंटियों की टुनटुन की आवाज़ मन को सुकून पहुँचाती है. ऐसा विश्वास ही नहीं होता कि भीड़-भाड़ और हो हल्ले से भरे हुए बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग और कस्बों से सिर्फ 7-8 किमी0 की दूरी पर इतना सुंदर बुग्याल होगा |
खेतों में खड़ी लाल चैलाई की फसलें ऐसी लगती हैं मानों फूलों के बुके खेतों में खड़े हों. यहाँ आप खाली स्थान पर टैंट लगा सकते हैं. वैसे तो यहाँ स्थानीय ग्रामीणों की गौशालायें, छानी हैं लेकिन पर्यटकों का पर्याप्त मात्रा में पानी और रहने के लिए टेंट लेकर आना बेहतर होगा. पांयुला बुग्याल किरूली गाँव के ग्रामीणों की निजी भूमि है इसलिए वन विभाग की अनुमति नहीं लेनी पड़ती. आसपास से आप लकड़ियां एकत्र कर चूल्हा जलाकर खाना बना सकते हैं, कैम्प फायर कर सकते हैं. लेकिन ध्यान रहे सोने से पहले मिट्टी डालकर आग पूरी तरह बुझा दें. जहाँ भी जाएं, ग्रुप में जाएं अकेले कभी न जाएं. अभी यहाँ टॉयलेट और पीने के पानी की समुचित व्यवस्था नहीं है |
रात्रि को पांचुला बुग्याल (Panchula Bugyal) से आप स्टार गेजिंग कर सकते हैं, अक्सर आसमान बिल्कुल साफ रहता है, चांद मानों ऐसा लगता है आप छू लेंगे. अलसुबह सूर्योदय का शानदार दृश्य दिखता है. पांचुला से एक-डेढ़ किमी ऊपर जाकर बिरही घाटी दिखाई देती है. यही नहीं पांचुला होते हुए आप सात ताल ट्रैक और रूपकुण्ड का ट्रैक भी कर सकते हैं |
पीपलकोटी के आसपास बहुत कम दूरी पर और कम समयावधि के पांचुला ट्रैक को लोकप्रिय बनाने और पांचुला में मूलभूत आवश्यकताओं से सम्बन्धित अध्ययन करने के लिए हाल ही में आगाज़ फैडरेशन के इकोटूरिज़्म समन्वयक अनुज नम्बूद्री और सह समन्वयक भूपेन्द्र कुमार और धीरज कुमार के नेतृत्व में एक टीम ने अध्ययन कार्य प्रारम्भ किया है. टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशियल साइंस, मुम्बई की इस टीम में मणिपुर से निंगथाउजम सोनम चानू, महाराष्ट्र से नीता पागी, प्रियंका काले, दीपक सासने और रूपाली अंबोने पीपलकोटी के आसपास के ट्रैकिंग रूट्स पर शोध कार्य कर रहे हैं |
रास्ते में क्या-क्या देखें :
जब आप पांचुला के ट्रैक के लिए प्रस्थान करते हैं तो रिंगाल हस्तशिल्पी गाँव किरूली में जनपद चमोली के कुशल रिंगाल हस्तशिल्पियों के द्वारा बनाये गये रिंगाल के सुंदर उत्पादों को देख सकते हैं साथ ही साथ उन उत्पादों को खरीद भी सकते हैं |
साथ ही पहाड़ों में उगने वाले अनाज जैसे मंडुवा, झंगोरा, राजमा, आलू की खेती देख सकते हैं, वर्तमान में किरूली में संतरा, अखरोट के अतिरिक्त जड़ी-बूटी की खेती को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है |
नंदादेवी राज जात के लिए बण्ड क्षेत्र की भोजपत्र और रिंगाल से बनी छंतौली भी किरुली गाँव से ही बन कर जाती है. किरूली गाँव प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश में रिंगाल मास्टर ट्रेनरों के लिए जाना जाता है. पिछले दो दशकों से आगाज़ फैडरेशन और उत्तराखण्ड बांस एवं रेशा विकास परिषद के माध्यम स इस गाँव में रिंगाल हस्तशिल्प सम्बन्धी कार्यक्रम होते रहे हैं. अब वर्तमान में उत्तराखण्ड सरकार द्वारा जिला उद्योग केन्द्र के माध्यम से पीपलकोटी में ग्रोथ सेन्टर का संचालन हिमालयी स्वायत्त सहकारिता द्वारा किया जा रहा है |
क्या सामान लेकर जाएँ :
रात्रि विश्राम के लिए टेंट, रूकसैक, पानी की बोतलें, अच्छे जूते, जुराब, टोपी, टोर्च, लाइटर, भोजन सामग्री, सनग्लास जरूरी हैं |
क्या न करें :
कहीं भी प्लास्टिक पोलीथीन, पानी बोतलें, टॉफी और चॉकलेट के रैपर न फेकें, रात को कैम्प फायर कर आग भली भाँति बुझा दें, अकेले कहीं न जाएँ, बच्चों को रास्ते में टॉफी आदि का लालच न दें! जंगल की वनस्पति को नुक्सान न पहुंचाएं, शोरगुल न करें !
राष्ट्रीय राजमार्ग से इतने निकट होने के बावजूद पांचुला ट्रैक थोड़ा गुमनाम सा रहा है. लेकिन अब धीरे-धीरे इसका प्रचार प्रसार हो रहा है. प्रदेश सरकार को चाहिए कि पांचुला में जैविक खेती के अलावा एग्रो टूरिज़्म के लिए जल आपूर्ति या वर्षा जल संरक्षण के संसाधन विकसित करे. ताकि पांचुला ट्रैक जनपद चमोली में अपनी पहचान स्थापित कर सके |
बण्ड भूमियाल के बारे में किंवदंती है कि गढ़वाल हिमालय में होने वाली नंदा देवी राजजात जब रूपकुण्ड से ज्यूंरागली को पार कर रही थी तो यात्रा ज्यूंरागली पर अटक गयी थी कोई मार्ग नहीं मिल रहा था. तब ढोल दमाऊ और रणसिंगा के आहवाह्न पर बण्ड भूमियाल अवतरित हुए और बण्ड भूमियाल ने अपनी कटार से ही रूपकुण्ड के कठोर पहाड़ी वाले ज्यूंरागली में पांव रखने का ट्रैक बना दिया, ज्यूंरागली के ठीक दूसरी ओर शिला समुद्र है जहाँ से नंदा घूंटी चोटी से आने वाली नंदाकिनी नदी का जलागम क्षेत्र बनता है |
बण्ड विकास संगठन के वर्तमान अध्यक्ष श्री शम्भू प्रसाद सती बताते हैं कि वर्ष 1988 की राजजात यात्रा के दौरान कनोल के ग्रामीण एक तरह का अप्रत्यक्ष कर या दान मांग रहे थे, लेकिन राजजात यात्रा के दौरान इस तरह की कर व्यवस्था का कोई लिखित प्रमाण नहीं है. लेकिन वे भी बताते हैं कि प्राचीन समय में जब राजजात रूपकुण्ड से ऊपर बढ़ रहीं थी और रास्ता नहीं मिल रहा था तब बण्ड भूमियाल ने अवतरित होकर अपनी कटार से ज्यूंरागली में राजजात के लिए रास्ता बना डाला. तब से आज तक बण्ड पट्टी के निवासियों से रूपकुण्ड से आगे लगान या कर नहीं लिया जाता |
पीपलकोटी से अनेकों उच्च हिमालयी ट्रैकिंग रूट्स के लिए जाया जा सकता है. कुछ प्रमुख ट्रैक निम्नलिखित है, इनका आयोजन आगाज़ फैडरेशन की इको टूरिज़्म की टीम करती है :
पीपलकोटी-कनणी तोली ताल रूद्रनाथ ट्रैक (लगभग 23 किमी)
पीपलकोटी-बंशीनारायण पांडव
सेरा ट्रैक (लगभग 37 किमी)
पीपलकोटी-बंडीधूर्रा लार्डकर्ज़न पास ट्रैक (लगभग 35 किमी)
पीपलकोटी-बण्ड भूमियाल पांचुला ट्रैक (लगभग 11 किमी)
पीपलकोटी-पाताल गंगा शिलाखर्क ट्रैक (लगभग 32 किमी)
पीपलकोटी-गैराड़ छानी ट्रैक (लगभग 18 किमी0)
पीपलकोटी-दुर्मी सात ताल ट्रैक (28 किमी0)
पीपलकोटी-लक्ष्मी नारायण मंदिर हाट ट्रैक (लगभग 8 किमी)
पीपलकोटी-बेमरू बिल्लेश्वर महादेव शिवालय ट्रैक ( लगभग 10 किमी)
पीपलकोटी-सल्ला-सोडीयाणी ट्रैक (9 किमी)
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