नई दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने खाद्य मिलावट के एक मामले में एक दुकानदार की दोषसिद्धि और उसे सुनायी गयी सजा को रद्द करते हुए कहा कि आरोपी को भी नमूने विश्लेषण के लिए केंद्रीय खाद्य प्रयोगशाला में भेजने का अधिकार है।
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने कहा कि खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 की धारा 13 के तहत स्थानीय (स्वास्थ्य) प्राधिकार के लिए यह अनिवार्य है कि जिस व्यक्ति से खाद्य सामग्री का नमूना लिया गया है उसे सरकारी विश्लेषक की रिपोर्ट की प्रति मुहैया करवाई जाए।
पीठ ने कहा कि आरोपी रिपोर्ट को गलत बता सकता है, यह उसका अधिकार है। इसके अलावा रिपोर्ट प्राप्ति के दस दिन के भीतर, खाद्य नमूने को केंद्रीय खाद्य प्रयोगशाला में विश्लेषण के लिए भेजने संबंधी आवेदन देने का भी उसे अधिकार है। न्यायालय नारायण प्रसाद साहू नाम के व्यक्ति की अपील पर सुनवाई कर रहा था जिसने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उनकी पुनर्विचार यायिका को खारिज करने के आदेश को चुनौती दी है। मामला 16 जनवरी 2002 का है, जब कागपुर के साप्ताहिक बाजार में चना दाल बेच रहे साहू की इस सामग्री का नमूना सरकारी विश्लेषक के पास भेजा गया था। रिपोर्ट के मुताबिक सामग्री में मिलावट पाई गई जिसके बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट ने साहू को दोषी करार देते हुए छह महीने के सश्रम कारावास की सजा दी तथा एक हजार रूपये का जुर्माना लगाया। साहू ने उच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर की जिसे 2018 में खारिज कर दिया गया।
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