देहरादून, प्रदेश के मुखिया ने आपदा के दौरान जिस संवेदनशीलता और कर्मठता से आपदाग्रस्त क्षेत्रों का लगातार दौरा किया गया, मौके पर जाकर हालात का जायजा लिया, पीड़ित परिवारों से मुलाकात की और उन्हें ढांढस बंधाया इसका असर यह रहा कि प्रदेश की सरकारी मशीनरी पर भी सक्रिय होने का दबाव बढ़ा है। जनता के बीच मुख्यमंत्री का सेवक बनकर मौके पर पहुंचना, आम जनता के भीतर उनके नेतृत्व के प्रति विश्वास को बढ़ा रहा है। मुख्यमंत्री के जमीनी दौरे और मॉनिटरिंग ने जहां सरकारी सिस्टम को पटरी पर दौड़ाया, वहीं हताश-निराश भाजपा संगठन को प्रदेश में अपनी सरकार होने का जमीनी एहसास हुआ, कार्यकर्ता राहत कार्यों में जुटे, प्रदेश अध्यक्ष खुद प्रभावित क्षेत्रों के दौरे पर निकले, सब मिलाकर भारतीय जनता पार्टी जो कि लंबे समय से निराशा के दौर से गुजर रही थी वह मुख्यमंत्री के एक्शन से अब पूरी तरह चुनावी मूड में आ चुकी है।
मुख्यमंत्री की सक्रियता का एक और पहलू यह भी है कि कांग्रेस पार्टी को भी आपदा में सक्रिय होना पड़ा है। वह मुख्यमंत्री या गृहमंत्री के दौरों पर सवाल उठाकर विपक्षी होने का धर्म निभा रही है। हरीश रावत कभी ऊधम सिंह नगर जाकर ज्ञापन इवेंट कर रहे हैं या हरक सिंह रावत से गणेश गोदियाल यशपाल आर्य और अपनी बातचीत का वीडियो वायरल कर रहे हैं। मजे से सत्ता का इंतजार कर रही कांग्रेस अब नये सिरे से रणनीति बनाने पर मजबूर है।
सब मिलाकर धामी के सड़क पर उतरने से आपदा राहत कार्य में तेजी आयी है। सरकारी मशीनरी पर दबाव है। क्षतिग्रस्त अवस्थापना के निर्माण के लिए विभाग सक्रिय हुए हैं। युवा मुख्यमंत्री ने हर दुर्गम क्षेत्र में अपनी दस्तक दी है। तकनीकी कारणों से चॉपर ना उड़ने पर सड़क मार्ग से ही मौके पर पहुंचकर प्रभावितों को ढांढस बढ़ाया है।
जिस सक्रियता से मुख्यमंत्री धामी ने सारा सिस्टम अपने हाथ में लेकर निगरानी की है, वह उनकी क्षमता, नेतृत्व और कार्यकुशलता को प्रदर्शित कर रहा है। क्योंकि यह पहला मौका है जब प्रदेश की जनता ने अपने नये मुख्यमंत्री को आपदा से जूझते देखा है। एम्स के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री द्वारा मुख्यमंत्री धामी की पीठ थपथपाना, अमित शाह द्वारा उत्तराखंड के दौरे के दौरान मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राहत कार्यों पर संतोष जताना और कुछ दिन पूर्व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा उन्हें धाकड़ बल्लेबाज कहना। इन सब पर धामी ने अपनी सक्रियता से मुहर लगाई है।
मुख्यमंत्री धामी के सभी दौरों पर सरसरी नजर डाली जाए तो मुख्यमंत्री के सब जगह पहुंचने के प्रयास और तत्काल राहत पहुंचाने की मंशा ने उन्हें संवेदनशील मुख्यमंत्री के रूप में दिखाया है। यही कांग्रेस की सबसे बड़ी चिंता है। त्रिवेंद्र काल में कांग्रेस आश्वस्त थी कि भाजपा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और निराशा कांग्रेस को जीत तश्तरी में परोस कर दे देगी, मगर धामी ने एकाएक बाजी पलट के कांग्रेस को सकते में डाल दिया है।
छत्रपों की लड़ाई में जूझ रही कांग्रेस को अब अपनी रणनीति बदलनी होगी वहीं हरीश रावत को खुद को कांग्रेस का चेहरा बनाए रखने के लिए पार्टी के भीतर जद्दोजहद बढ़ानी होगी, क्योंकि मुख्यमंत्री द्वारा प्रदेश की जनता के सामने जो ‘युवा’ और ‘नौजवान’ मुख्यमंत्री का एजेंडा सेट कर दिया गया है, इसकी काट कांग्रेस के पास नहीं है और न दूर-दूर तक दिखाई दे रही है। वहीं भारतीय जनता पार्टी के भीतर भी अब धामी के एक्शन मोड के प्रति स्वीकारोक्ति बढ़ेगी और आगामी चुनाव के नेतृत्व से लेकर पार्टी लीडरशिप भी धामी के इर्द-गिर्द घूमनी तय है।
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