ऋषिकेश, एक और जहां इस समय आयुर्वेद एलोपैथी चिकित्सा पद्धति की सार्थकता पर बहस छिड़ी है, वहीं दूसरी ओर एम्स ऋषिकेश प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के तहत हॉलिस्टिक कस्टमाइज्ड शेड्यूल्ड (समग्र अनुकूलित कार्यक्रम) के जरिए कोविड मरीजों पर अनुसंधान कर रहा है। यदि अनुसंधान के परिणाम सकारात्मक आए तो यह पद्धति कोविड के नियंत्रण और इसके उपचार में कारगर सिद्ध हो सकती है।
वैश्विक महामारी कोविड-19 के इलाज में कौन-कौन सी पद्धतियां कारगर साबित हो सकती हैं, इस विषय पर देश-दुनिया में विभिन्न स्तर पर सतत अनुसंधान किए जा रहे हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में भी इन दिनों एक ऐसे ही प्रोजेक्ट पर अनुसंधान जारी है। होलिस्टिक कस्टमाइज्ड शेड्यूल्ड आधारित इस अनुसंधान में मरीजों पर तीन अलग-अलग प्रोटोकॉल का प्रयोग किया जा रहा है। इनमें न्यूट्रीशियनल, हाईजीन और माइंडबॉडी रिलेक्शेसन प्रोटोकॉल शामिल हैं। यह शोध बीते मार्च महीने में शुरू हुआ था, जिसे एक साल में पूरा किया जाना है।
एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने बताया कि आयुर्वेदिक पद्धति लगभग छह हजार साल पुरानी चिकित्सा पद्धति है। लेकिन उच्च स्तर की स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता को देखते हुए इसे सुधारने और पुनर्जीवित करने की जरूरत है। जिससे अधिक से अधिक नसगरिकों को इसका लाभ मिल सके।
रिसर्च टीम की प्रिंसिलप इन्वेस्टिगेटर व बायोकेमिस्ट्री विभागाभाध्यक्ष डा. अनीसा आतिफ मिर्जा ने बताया कि कोविड के जिन मरीजों में मध्यम और सामान्य लक्षण हैं, उन पर इसका परीक्षण किया जा रहा है। अभी तक 30-40 कोविड मरीजों पर अनुसंधान किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि पायलट रेन्डेमाइज कंट्राेल ट्रायल वाले इस शोध का उद्देश्य डाटा एकत्रित कर एविडेंस बेस्ड मेडिसिन का आउटपुट देखना है। अनुसंधान को होलिस्टिक ट्रेडिशनल कॉम्प्लेमेन्टरी अल्टरनेटिव मेडिसिन (एचटीसीएएम) का नाम दिया गया है।
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