देहरादून, प्रदेश कोरोना ने अपना विस्फोटक रूप दिखा रहा है और राज्य के राजनैतिक दल को आगामी विधान सभा के चुनाव की आहट सता रही है, कहने को तो हर राजनैतिक पार्टी कोरोना संकट में मदद को आगे आकर सेवाभाव का कार्य कर रही है, पार्टियों का सेवा भाव का लाभ तो जनता ने देना है, लेकिन राज्य मुख्य दल कोरोना से जूझ राज्य को दर किनार कर विधानसभा चुनावों को देखते हुए भाजपा और कांग्रेस में एक-दूसरे को शह और मात देने की भी कवायद जारी है। मजेदार बात यह है कि दोनों दल के प्रदेश मुखिया एक दूसरे के खिलाफ चाल भी चल रहे हैं। एक दल का नेता किसी मुद्दे पर मौन व्रत रखने का एलान करता है तो दूसरे दल का नेता भी उसी मुद्दे पर मौन व्रत की घोषणा करता है। राजनीति भी अजीब होती है, सभी को सत्ता का स्वाद चाहिये |
एक दल दूसरे की बुद्धि-शुद्धि के लिए हवन-यज्ञ करने की बात करता है तो पलट वार करते हुए दूसरा दल भी यही कर रहा है। सूबे की सियासत पर नब्ज रखने वालों का मानना है कि विधानसभा चुनावों तक इस तरह के मामले बढ़ते ही जाएंगे।
प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक सोमवार को प्रदेश पार्टी मुख्यालय में मौन व्रत रख रहे हैं। उनका यह मौन व्रत कांग्रेस की सद्बुद्धि के लिए है। कौशिक का कहना है कि व्रत के जरिये वह यह प्रार्थना करेंगे, कांग्रेसी अपने बड़े नेताओं से सीख लें। ऐसा करके कौशिक कांग्रेस पर एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश कर रहे हैं। उनका इशारा कांग्रेस के जिन बड़े नेताओं की ओर है, उनमें एक पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत हैं और दूसरी नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश।
सियासी चौसर पर भाजपा और कांग्रेस के बीच छिड़े इस शह और मात के खेल में कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने भी प्रदेश सरकार की बुद्धि-शुद्धि के लिए उपवास करने का फैसला किया है। प्रीतम सोमवार को कांग्रेस भवन में उपवास पर बैठे हैं। मौन व्रत और उपवास की यह सियासत आगे क्या रूप लेगी, यह भविष्य बताएगा। लेकिन उनकी सत्याग्रह की सियासत ने साफ जाहिर कर दिया है कि दोनों दलों पर नजदीक आ रहे विधानसभा चुनाव का दबाव बढ़ रहा है। मगर चुनावी साल में कोविडकाल की चुनौतियों ने उन्हें खुली चुनावी सियासत करने से रोक रखा है। इसलिए एक-दूसरे पर हमला बोलने के लिए सत्याग्रह के हथियार चुने गए हैं।
संकेत साफ हैं कि जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं राज्य की सियासत भाजपा और कांग्रेस के बीच सिमटती जा रही है। बेशक आम आदमी पार्टी व अन्य दल भी अपनी-अपनी क्षमताओं के हिसाब से जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सियासी जानकारों का मानना है कि मुख्य लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होनी है। इसलिए दोनों दलों पर दबाव है। लिहाजा कोविडकाल की चुनौती के बीच एक दूसरे की कमियों से पर्दा उठाकर भाजपा और कांग्रेस के नेता अपने पक्ष में वातावरण बनाने की कोशिश में जुटे हैं।
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