देहरादून , प्रदेश के किसानों विशेषकर युवा वर्ग को मशरूम की औषधीय प्रजातियाँ उगाने पर तकनीकी प्रशिक्षण लेकर वैज्ञानिक विधि का उपयोग कर कार्य करना चाहिए। इसमें विशेषकर गैनोडर्मा, मिलट्री कोर्डिसैप्स प्रजाति की मशरूम और फंगस होती हैं जिनमें बहुत ही उच्च गुणवत्ता की औषधीय गुण होते हैं जो मानव शरीर के लिए फायदेमंद हैं। साथ ही इनकी खेती को जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुँचाते हैं और इसका मूल्य रू0 6000 से 30000 प्रति किलो तक होता है, यह कहना है यूकॉस्ट के महानिदेशक डा0 राजेन्द्र डोभाल का।
उन्होंने पांच दिवसीय कार्यशाला जिसका विषय – “मशरूम की खेती और मूल्य संवर्धन” है, पर बताया कि कार्यशाला का आयोजन यूकास्ट एवं सीड डिविजन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के संयुक्त तत्वाधान में प0 दीनदयाल उपाध्याय विज्ञान ग्राम संकुल परियोजना के अंतर्गत हुआ है।
उद्धाटन समारोह में प्रदेश के वजीरा-रुद्रप्रयाग, विगुन और हेंवल घाटी- टिहरी गढ़वाल, कौसानी- बागेश्वर, द्वाराहाट-अल्मोड़ा, पौड़ी गढ़वाल- चकराता और देहरादून से 35 से भी ज्यादा लोगों ने प्रतिभाग किया है।
मशरूम की ओयस्टर, बटन, गैनोडर्मा और मिलट्री कोर्डिसैप्स की प्रजातियों को वैज्ञानिक विधि से कैसे पैदावार बढ़ाई जा सकती है एवं मूल्य संवर्धन भी हो, के बारे में बताया गया। पद्मश्री डा0 महेश शर्मा, चांसलर, महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बिहार मुख्य अतिथि ने बताया कि उत्तराखंड के संकुलों के उत्पादों को अब दिल्ली के कनाट प्लेस में गांधी आश्रम के काऊंटर पर प्रीमियम उत्पादों के साथ प्रदर्शित किया जाएगा। प्रोफेसर हर्ष ने प्रदेश भर से आए कृषक भाईयों को प्रशिक्षण प्रदान किया। इस अवसर पर डा0 डी0पी0 उनियाल, संयुक्त निदेशक, डा0 प्रशांत सिंह, प्रोग्राम कोर्डिनेटर, डा0 पीयूष जोशी, अमित पोखरियालए, डा0 आशुतोष मिश्रा और यूकास्ट के समस्त स्टाफ भी उपस्थित हुये।
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