नई दिल्ली, किसानों ने एक्सपर्ट कमेटी बनाने की पेशकश खारिज की, बोले- कुछ तो हासिल करेंगे, भले गोली हो या हल, केंद्र ने बैठक में किसानों को प्रस्ताव दिया कि कृषि कानूनों पर चर्चा के लिए कमेटी बना दी जाए
किसानों ने इस पर कहा- कानून ही खत्म करें, क्योंकि ये किसान समाज के हितों के खिलाफ हैं
कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों से मंगलवार को केंद्र सरकार ने 2 फेज में करीब ढाई घंटे तक बातचीत की। नतीजा कुछ नहीं निकला। सरकार ने किसान प्रतिनिधियों के सामने मिनिमम सपोर्ट प्राइज (MSP) पर पावर प्रेजेंटेशन दिया। उनके सामने प्रस्ताव रखा कि नए कानूनों पर चर्चा के लिए कमेटी बनाई जाए। पर, बात नहीं बनी। किसानों ने ये पेशकश सिरे से खारिज कर दी।
मीटिंग के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा, ‘बातचीत अच्छे माहौल में हुई। हमने किसानों से आंदोलन खत्म करने की बात कही, पर ये फैसला किसान ही करेंगे। हमने कहा कि कमेटी बना दें, पर किसान चाहते थे कि सभी लोग मिलकर ही बातचीत करें।’
इस बयान के बाद ही प्रतिनिधिमंडल में शामिल किसान नेता चंदा सिंह ने कहा- हमारा आंदोलन जारी रहेगा। हम कुछ तो हासिल करेंगे, भले गोली हो या फिर शांतिपूर्ण हल। हम आगे भी चर्चा के लिए आएंगे।
सरकार का प्रस्ताव: केंद्र ने कहा कि 5 सदस्यीय कमेटी बनाई जाए। इसमें केंद्र और किसानों के प्रतिनिधियों के अलावा एक्सपर्ट शामिल हों। किसानों की कानून को खत्म करने की मांग खारिज कर दी। कहा कि कानूनों से जुड़ी खास परेशानियों को बुधवार तक बताएं ताकि 3 दिसंबर को होने वाली मीटिंग में इस पर चर्चा हो सके।
किसानों का जवाब: कमेटी बनाने की सिफारिश खारिज कर दी कहा कि पहले भी ऐसी कमेटियां बनाई गईं, पर कोई नतीजा हासिल नहीं हो सका। जब तक मांगें पूरी नहीं हो जाती हैं, पूरे देश में आंदोलन और तेज किया जाएगा।
नतीजा क्या निकला : कोई नतीजा नहीं निकला। अक्टूबर, नवंबर और अब दिसंबर, 3 महीने में 3 बार केंद्र ने किसानों से चर्चा की। मंगलवार को हुई बैठक में नतीजा निकलने की उम्मीद थी, क्योंकि 6 दिन से जारी उग्र प्रदर्शन के चलते सरकार ने भी इस बार बिना शर्त किसानों को बातचीत के लिए बुलाया था। अब 3 दिसंबर को होने वाली बैठक पर नजरें हैं।
सरकार ने दो बार शर्त रखी थी
सरकार पहले इस बात पर अड़ी थी कि किसान 3 दिसंबर को बातचीत के लिए आएं। सोमवार को सरकार ने यह जिद छोड़ दी और 1 दिसंबर दोपहर 3 बजे 35 किसान नेताओं को बातचीत का न्योता भेजा।
इससे पहले सरकार ने किसानों से कहा था कि वे प्रदर्शन खत्म कर बुराड़ी आ जाएं तो बातचीत पहले भी हो सकती है। किसान इस पर नहीं माने।
32 साल बाद ऐसा आंदोलन, 36 घंटे में सरकार की तीसरी बैठक
सिंघु बॉर्डर 32 साल बाद सबसे बड़े किसान आंदोलन का गवाह बना है। 1988 में महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश के 5 लाख किसान यहां जुटे थे। इस बार किसानों के मुद्दे पर सरकार 36 घंटे में तीन बैठकें कर चुकी है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर मंगलवार को हुई मीटिंग में गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर मौजूद थे। बैठक में शामिल होने के लिए शाह BSF के राइजिंग डे इवेंट में नहीं गए |
प्रदर्शन कर रहे किसानों के 35 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल से चर्चा के बाद केंद्र ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा के किसानों से बातचीत की।
3 बजे से शाम 5 बजे तक पहले दौर की बातचीत हुई। इसके बाद करीब 6 बजे फिर चर्चा शुरू हुई और करीब 30 मिनट में खत्म हो गई।
हरियाणा की 130 खाप पंचायतों ने किसान आंदोलन में शामिल होने का ऐलान किया है। पंजाब में भी पंचायतों ने हर घर से एक मेंबर को धरने में शामिल होने के लिए कहा है।
दिल्ली की टैक्सी और ट्रांसपोर्ट यूनियन भी किसानों के समर्थन में आ गई। उन्होंने कहा कि अगर दो दिन में कोई हल नहीं निकला तो हड़ताल करेंगे।
हरियाणा के निर्दलीय विधायक और सांगवान खाप के प्रमुख सोमबीर सांगवान ने खट्टर सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। चरखी दादरी में सांगवान ने कहा- किसानों पर हुए अत्याचारों को देखकर मैं सरकार से अपना समर्थन वापस लेता हूं।
CAA के खिलाफ शाहीन बाग के प्रदर्शन में शामिल हुईं 82 साल की बिल्किस बानो को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। वे सिंघु बॉर्डर पर पहुंची थीं।
भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को समर्थन देने दिल्ली-यूपी बॉर्डर पहुंचे।
बातचीत के न्योते पर भी हुआ विवाद
सरकार ने सोमवार देर रात किसानों को बातचीत का न्योता भेजा था। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि जो किसान नेता 13 नवंबर की मीटिंग में शामिल थे, उन्हें न्योता दिया गया है। हालांकि, इस पर विवाद हो गया।
दरअसल, कृषि विभाग के सचिव की तरफ से जारी हुई न्योते की चिट्ठी में 32 किसानों के नाम थे। ये सभी पंजाब के किसान नेता थे। ये हरियाणा के अपने साथियों का नाम भी शामिल करने का दबाव बनाने लगे। इसके बाद न्योते में हरियाणा से गुरनाम चढ़ूंनी और मध्यप्रदेश से किसान नेता शिवकुमार शर्मा कक्काजी का नाम शामिल किया गया।
सरकार की तरफ न्योते की यह चिट्ठी सोमवार देर रात जारी हुई थी।
कृषि विभाग के सचिव की तरफ से जारी इस चिट्ठी में 32 किसान नेताओं के नाम थे।
सरकार से बातचीत से पहले दिल्ली-UP बॉर्डर पर किसानों का गुस्सा देखा गया। गाजीपुर-गाजियाबाद बॉर्डर पर किसानों ने बैरिकेड हटाने के लिए ट्रैक्टर का इस्तेमाल किया।
कनाडा के पीएम ने आंदोलन का समर्थन किया
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो किसान आंदोलन का समर्थन करने वाले पहले विदेशी नेता और राष्ट्राध्यक्ष बन गए हैं। उन्होंने हालात को चिंताजनक बताया। गुरुनानक देव के 551वें प्रकाश पर्व पर एक ऑनलाइन इवेंट के दौरान ट्रूडो ने कहा कि वे हमेशा शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के पक्ष में रहे हैं। हमने इस बारे में भारत सरकार को अपनी चिंताओं के बारे में बता दिया है।
सरकार ने कनाडा के बयान को गैर-जरूरी बताया
विदेश मंत्रालय ने कहा है कि किसानों के मुद्दे पर कनाडा के नेताओं के बयान गैर-जरूरी हैं। इनमें जानकारी की कमी लगती है। साथ ही कहा कि डिप्लोमैटिक चर्चाओं का इस्तेमाल राजनीतिक मकसद से नहीं होना चाहिए।
राहुल ने कहा- किसान को उसका अधिकार दीजिए
किसान आंदोलन और सरकार के रुख पर राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा- अन्नदाता सड़कों-मैदानों में धरना दे रहे हैं और ‘झूठ’ टीवी पर भाषण। किसान की मेहनत का हम सब पर कर्ज है। जागिए, अहंकार की कुर्सी से उतरकर सोचिए और किसान का अधिकार दीजिए(साभार दैनिक भाष्कर)|
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