Tuesday, November 26, 2024
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यूरिया का हिसाब जुटा रही केंद्र सरकार, किसानों के नाम पर कालाबाजारी की आशंका

इंदौर। केंद्र सरकार हर साल किसानों के लिए करोड़ों टन यूरिया खाद उपलब्ध कराती है, इसके बावजूद यूरिया का संकट बना रहता है। आखिर यह खाद जाता कहां है? सरकार को आशंका है कि बड़ी मात्रा में खाद की कालाबाजारी होती है और लॉकडाउन के दौरान अधिक गड़बड़ी हुई। इसीलिए केंद्र सरकार देशभर में इसकी वितरण व्यवस्था की जांच करा रही है। इसमें 1 अप्रैल से 31 जुलाई के बीच चार महीने की उस समयावधि को चुना है, जिसमें देश में कोरोना का संक्रमण अधिक रहा। इसी तरह की जांच मध्य प्रदेश में भी चल रही है और हर जिले से रिपोर्ट बुलाई गई है। सरकार के निर्देश हैं कि हर जिले में यूरिया खाद के टॉप 20 खरीदारों की जांच की जाए, जिन्होंने अधिक खाद उठाया है। मध्य प्रदेश में सभी 53 जिलों के एक हजार से अधिक लोग जांच के घेरे में हैं। इनमें सेवा सहकारी संस्थाओं और निजी कारोबारियों से यूरिया खरीदने वाले शामिल हैं।

वर्ष 2017 में सरकार ने आधार नंबर के जरिए पॉइंट ऑफ सेल (पीओएस) मशीन से यूरिया वितरण शुरू कराया था। शुरुआत में इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लिया गया था। पहले यह योजना मध्य प्रदेश के होशंगाबाद व हरदा जिले में और इसके बाद सभी जिलों में शुरू की गई। अब यह जांच आधार नंबर से ही की जा रही है।

पड़ताल : कर्मचारियों के आधार कार्ड से निकला, 400 से एक हजार बोरी तक लिया सरकार ने किसानों के आधार नंबर से यूरिया देने की योजना साफ मंशा से शुरू की थी। जिन प्राथमिक कृषि सहकारी संस्थाओं पर यूरिया बांटने की जिम्मेदारी है, वे ही इस योजना को नाकाम बनाने में जुटी हैं। इंदौर जिले की सिंहासा, बेटमा, देपालपुर, धन्नड़, सगड़ोद, भील बड़ौली सहित अन्य संस्थाओं में यूरिया का भौतिक सत्यापन किया गया तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। संस्था के प्रबंधकों ने खानापूर्ति के लिए अपने भृत्य और अन्य कर्मचारियों के आधार नंबर से ही बार-बार यूरिया खाद दिया है। इसमें किसी किसान के नाम से एक हजार तो किसी के नाम से 400, 500 और 600 बोरी तक दिया गया।

सीधे बैंक खाते में मिल सकता है अनुदान

सरकार यूरिया की एक बोरी पर करीब 800 रुपये तक अनुदान देती है और किसान को यह 267 रुपये में मिलता है। सूत्रों के मुताबिक किसानों के नाम का यूरिया पशु आहार और औद्योगिक उपयोग के लिए भी चोरी-छिपे जा रहा है। यूरिया को नीम कोटेड करने के बाद भी कालाबाजारी की आशंका है। ऐसे में सरकार के स्तर पर यह कवायद भी चल रही है कि रसोई गैस की तरह यूरिया पर मिलने वाला अनुदान सीधे किसानों के बैंक खाते में भेजा जाए।

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