Monday, May 19, 2025
HomeTechnologyग्लेशियर दिवस मात्र दिवस तक ही सीमित न रहे उसका अर्थ सार्थक...

ग्लेशियर दिवस मात्र दिवस तक ही सीमित न रहे उसका अर्थ सार्थक होना अत्यन्त आवश्यक : शांति ठाकुर

देहरादून, हिमालय एवं हिमनदियां बचाओ अभियान दल विगत 26 वर्षा से मां गंगा के अस्तित्व आधार गंगोत्री ग्लेशियर के संरक्षण व संवर्धन की लड़ाई लड़ रहा है, जिसमें दल की मुख्य मांग है कि गंगोत्री से आगे के सम्पूर्ण क्षेत्रों को जै० तपोवन, गौमुख, चौखम्बा, नन्दनवन आदि में मानवीय आवाजाही हेतु पूर्ण रूप से प्रतिबन्धित कर दिया जाय। यह मांग आज स्थानीय प्रेस क्लब में ग्लेशियर लेड़ी शांति ठाकुर ने पत्रकारों के समक्ष रखी, उनका कहना था कि मेरे द्वारा गत वर्षों से मां गंगा के साथ ही मां यमुना एवं समस्त हिमनदियों व हिमालय के सरंक्षण हेतु आन्दोलन किया जा रहा है।
पत्रकारों से रूबरू होते हुये शांति ठाकुर ने कहा कि सम्पूर्ण भारतवर्ष के हिमालय में लगभग 9,575 ग्लेशियर है, इनमें से 267 ग्लेशियर 10 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र में फैले हुऐ है, उनमें भी उत्तराखण्ड में ही करीब 3,600 ग्लेशियर है, भारत का सबसे बड़ा ग्लेशियर सियाचिन है और उत्तराखण्ड का सबसे बडा ग्लेशियर मां गंगा का आधार गंगोत्री ग्लेशियर है और दूसरा बडा ग्लेशियर मिलम ग्लेशियर है (जो पिथौरागढ जिले में स्थित) है। लेकिन पर्यावरण, हिमालय और ग्लेशियरों की स्थिती आज से 35-40 वर्ष पूर्व जैसी थी आज उनके विपरीत हमारा पर्यावरण, हिमालय और ग्लेशियर हो गये है, ग्लेशियर लेड़ी ने कहा कि यह कहना गलत न होगा कि भारत की आधे से ज्यादा की आबादी का जीवन उत्तराखण्ड़ के ग्लेशियरो पर ही निर्भर है, जिनकी स्थिति दिन प्रतिदिन समाप्ति की ओर है।उत्तराखण्ड के सबसे बडे ग्लेशियर गंगोत्री ग्लेशियर की बात करें तो सन् 1984 की वैज्ञानिक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार गंगोत्री ग्लेशियर की लंम्बाई 32 कि०मी० व चौडाई 4 कि०मी० थी वही सन् 2004 की वैज्ञानिक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार गंगोत्री ग्लेशियर की लं0 28 कि०मी० व चौ० 2.5 कि०मी० ही रह गई है। जिससे स्पष्ट रूप से गंगोत्री ग्लेशियर के लगातार कम होने का अन्तर देखा जा रहा है। अगर गंगोत्री ग्लेशियर का पुनः से सर्वे करवाया जाय निश्चित ही आंकड़े भयावह होंगे परन्तु गंगोत्री ग्लेशियर के अस्तित्व का सत्य भी सामने आयेगा क्योंकि जिस प्रकार से गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार प्रति वर्ष बढ़ रही है उससे यह आंकलन लगाना कठिन नहीं कि गंगोत्री ग्लेशियर का अस्तित्व 40-50 वर्षों तक का ही होना माना जा सकता है।
शांति ठाकुर ने कहा कि हिमालय व समस्त हिमनदियों के संरक्षण के लिए आन्दोलन किया जा रहा है जिसमें मेरे द्वारा सन् 2007 में उत्तराखण्ड़ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका भी लगाई गई जहां मेरी अनेक मांगों में बहुत मांगो को उच्चन्यायालय द्वारा स्वीकृत भी किया गया, जैसे गंगोत्री से आगे के क्षेत्रों में प्रतिदिन मात्र 150 लोगों को ही जाने दिया जायेगा (जिससे पूर्व गौमुख, तपोवन आदि क्षेत्रो मे अनियंत्रित संख्या में लोग जाते थे) जो की दल की बहुत बड़ी कामयाबी रही। परन्तु अभी भी अनेक अकुश लगने अत्यन्त आवश्यक है l जो कि पर्यावरण हिमालय के संरक्षण व संवर्धन हेतु अत्यन्त महत्वपूर्ण है, परन्तु मेरी आवाज पर न ही राज्य सरकार ने ध्यान दिया परन्तु मेरी आवाज निश्चित रूप से विश्व स्तर पर पंहुची और संयुक्त राष्ट्र द्वारा 21 मार्च 2025 को विश्व ग्लेशियर दिवस घोषित किया गया।
ग्लेशियर लेडी शांति ठाकुर ने कहा कि विगत 18 वर्षों से मेरे द्वारा 13 जून को ग्लेशियर संरक्षण दिवस मनाया जाता आ रहा है जिसे राज्य व भारत सरकार के माध्यम से घोषित करवाने हेतु मैंने बहुत प्रयास किये, कई पत्र प्रदेश के मुख्यमंत्री को लिखे और भेंट कर ग्लेशियर संरक्षण दिवस मनाये जाने की विनती भी परन्तु किसी ने न सुनी, निश्चित ही मैं यह मानती थी कि ग्लेशियर संरक्षण दिवस घोषित करने का श्रेय मेरे राज्य एवं भारत सरकार को मिले परन्तु मेरा प्रयास सार्थक न हो पाया और आज संयुक्त राष्ट्र द्वारा यह कार्य किया जा रहा है।
शांति ठाकुर का कहना है कि ग्लेशियर दिवस मात्र दिवस के रूप तक ही सीमित न रहे उसका अर्थ सार्थक होना अत्यन्त आवश्यक है जिसके लिए हमारी सरकारों को निश्चित ही पहल करनी होगी।
पत्रकार वार्ता में कल्पना ठाकुर गुलेरिया, प्रमोद राणा, अनुराधा चौहान एवं रुद्रराणा आदि मौजूद रहे |

आवश्यक सुझाव एवं मांगे :

-उत्तराखण्ड सहित समस्त हिमालय के ग्लेशियरो का सर्वे शीघ्र कर प्रत्येक वर्ष उनके आंकडे एकत्रित करते रहने होगे जिससे उनके पिघलने की रफ्तार का अनुमान लगता रहेगा।

-ग्लेशियरों के संरक्षण व संवर्धन हेतु मुख्य ग्लेशियरों में मानवीय आवाजाही हेतु पूर्ण रूप से प्रतिबन्ध लगाना अत्यन्त आवश्यक है कम से कम 15 वर्षों के लिए। (जै० गंगोत्री ग्लेशियर मिलभ ग्लेशियर, खतलिग, कालाबलंद हिमनद, मंओला) आदि ।

-राज्य स्तर व केन्द्र स्तर पर हिमालय ग्लेशियर संरक्षण की समितियां गठित की जाय, जिनमें प्रत्ये वर्ग जै०-अधिकारी, वैज्ञानिक, सेना अधिकारी एवं हिमालय ग्लेशियरों पर कार्य करने वाले मुख्य लोगों को आवश्यक रूप से सम्मलित किया जाय।

-बच्चों के पाठ्यक्रम में कक्षा प्रथम से ही हिमालय ग्लेशियरों का विषय होना आवश्यक किया जाना चाहिए। जिससे हमारी आने वाली पिढि हिमालय, ग्लेशियरो व पवित्र नदियों के महत्व को समझ सके।

-धामों में रात्री विश्राम किसी भी यात्रियों के लिए प्रतिबन्धित हो, जिसमें ट्राली के माध्यम से यात्रीगण दर्शन कर वापिस आये।

-हेलिकाप्टरों से हिमालय दर्शन पर पूर्ण प्रतिबन्धित किया जाय।

-पहाडों में जहाँ-जहाँ भविष्य के लिए रेल की स्वीकृति की गई है वह शीघ्रातीशीघ्र निरस्त की जानी आवश्यक है, जिससे पहाड़ो की सतह खोखली होने से बचेगी और हिमालय पहाड सुरक्षित रहेगे।

-पहाडों में डबल लाईन सडके जिनका कार्य गतिमान है उनके अतिरिक्त अन्य सडके स्वीकृत न की जाय जिससे पेडों का कटान न हो और पर्यावरण संतुलित रहे।

-पर्यटन व तीर्थाटन में अन्तर रखा जाय। पर्यटन हेतु उत्तराखण्ड, हिमाचल आदि अन्य राज्यों के उन स्थानों को विकसित किया जाय जो अभी तक पर्यटन से दूर है जिससे स्थानीय रोजगार को भी बढ़ावा मिलेगा और तीर्थाटन में भी मात्र श्रद्वालुगण ही आयेगे और धामो की पवित्रता भी बनी रहेगी।-पर्वतारोहियों हेतु कृत्रिम ग्लेशियर व पहाडों में साहसिक कार्य करवाया जाना आवश्यक है, जिससे ग्लेशियर, हिमालय सुरक्षित रहेगें।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments