-भू-क़ानून के संशोधित विधेयक की प्रतियां फाड़ी
-शहरी क्षेत्रों में ज़मीन खरीदने की लूट रहेगी जारी
-एक राज्य में दो-दो भू-क़ानूनो को थोपा
देहरादून, मूल निवास, भू-क़ानून संघर्ष समिति ने भू-क़ानून में किए गए संशोधनों को उत्तराखंड की जनता के साथ सबसे बड़ा धोखा बताया और इसे जनता की आंखों में धूल झोंकने वाला क़ानून बताया। इस मौके पर संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने भू-क़ानून के संशोधन विधेयक की प्रति फाड़ते हुए इसे माफ़िया के पक्ष में बताया।
स्थानीय प्रेस क्लब में पत्रकारों से रूबरू होते हुए मूल निवास, भू-क़ानून संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि भू-क़ानून के संशोधित विधेयक में नगरीय क्षेत्रों को इस क़ानून के दायरे से बाहर रखा गया है। सबसे ज्यादा बेशकीमती ज़मीनें शहरों में ही हैं और यहां जमीन खरीदने की कोई पाबंदी नहीं है। निकायों के विस्तार के चलते लगातार ग्रामीण क्षेत्रों की ज़मीन शहरों में शामिल हो रही है।
उन्होंने कहा कि देहरादून, ऋषिकेश, कोटद्वार, पौड़ी, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, गौचर, कर्णप्रयाग, गोपेश्वर, जोशीमठ, गैरसैंण, हल्द्वानी, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, रामनगर, नैनीताल, भवाली, टिहरी, नरेंनगर, देवप्रयाग, चंबा, रानीखेत, धारचूला सहित अन्य निकायों में कोई भी बाहरी व्यक्ति बेतहाशा जमीन खरीद सकता है। यहां तक कि केदारनाथ, बद्रीनाथ और गंगोत्री नगर पंचायत क्षेत्र में भी जमीन खरीदने की छूट है। यह क़ानून सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र के लिए है। यहां 250 वर्ग मीटर ही कोई बाहरी व्यक्ति जमीन खरीद सकता है। शहरों में जमीन खरीदने की कोई लिमिट नहीं है। राज्य निर्माण के बाद शहरों की प्राइम लैड को माफ़िया और बाहरी लोगों ने खुर्द-बुर्द किया है।
संघर्ष समिति की मुख्य मांग यही थी कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि खरीदने का एक ही क़ानून बने। लेकिन सरकार ने पुराने क़ानून में ही लीपापोती की है।
उन्होंने कहा कि हरिद्वार और उधमसिंहनगर जिले को भूमि क़ानून के दायरे से बाहर रखा गया है। उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा भू माफिया इन्ही दो जनपदों में हैं और यहाँ किसानों की ज़मीन खत्म हो रही है। मैदानी मूल के व्यक्ति भी इस बात की चिंता कर रहे हैं। सरकार की मंशा उत्तराखंड की डेमोग्राफी बदलना है, ताकि पर्वतीय राज्य की अस्मिता को खत्म किया जा सके। लगातार जनसंख्या बढ़ने से भविष्य में होने जा रहे परिसीमन से हरिद्वार और उधमसिंहनगर की विधानसभा सीटें बढ़ने जा रही है। यह चिंता सिर्फ पर्वतीय मूल के लोगों की नहीं है, बल्कि मैदानी लोग भी इसको लेकर चिंतित हैं। समान नागरिक संहिता की बात करने वाली सरकार एक राज्य में दो-दो भू-क़ानून थोप रही है। उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्र की कृषि भूमि को 30 साल तक पूंजीपतियों को पट्टे पर देने का भी प्रावधान किया गया है। इससे हमारे काश्तकार अपने ही खेतों में नौकर या चौकीदार बन जायेंगे।
उन्होंने कहा कि संघर्ष समिति इस काले क़ानून को जनता के बीच ले जाएगी और सरकार द्वारा किये गए छलावे को बताएगी। एक बार फिर जनता को लामबंद किया जाएगा।
इस मौके पर पूर्व आईएएस एसएस पांगती, पूर्व सैन्य अधिकारी पीसी थपलियाल, एलपी रतूड़ी, टीएस नेगी, संघर्ष समिति के प्रवक्ता हिमांशु रावत, पंकज उनियाल, समन्वयक प्रमोद काला, विपिन नेगी, आशुतोष कोठारी, आशीष नौटियाल, बॉबी रांगड़, मनेंद्र बिष्ट आदि मौजूद थे।
प्रदेश के खनन विभाग में रेवड़ियों की तरह बंटे खनन पट्टे : आशुतोष नेगी
“81 खनन पट्टों को निविदा के बेस प्राइस के आसपास आबंटित कर प्रदेश को सैंकड़ों करोड़ की राजस्व हानि”
देहरादून, उक्रांद के गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र के पूर्व प्रत्याशी आशुतोष नेगी ने प्रदेश सरकार पर खनन पट्टों की निविदा में धांधली का आरोप लगाया है। स्थानीय प्रेस क्लब में गुरुवार को पत्रकारों से रूबरू होते हुये आशुतोष ने कहा कि इससे सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है। उन्होंने इस मामले की जांच एसआईटी या सीबीआई से करवाने की मांग की है। ताकि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो सके।
पत्रकारों से बातचीत में आशुतोष नेगी ने कहा कि प्रदेश में खनन विभाग ने पांच हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल में खनन पट्टे पांच साल के लिए आवंटित किए हैं। पट्टों के आंवटन में बड़ी धांधली की गई है। निविदा के बेस रेट के आसपास आंवटित कर सरकार को करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान पहुंचाया गया। उन्होंने पट्टों के आवंटन की एसआईटी या सीबीआई जांच करवाने की मांग की है। चेताया कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो वह न्यायालय के दरवाजे खटखटाएंगे।
आशुतोष ने कहा कि उत्तराखण्ड के खनन विभाग द्वारा वर्ष 2023-24 में 5 हेक्टयर से कम क्षेत्रफल के खनन पट्टी जिन्हें 5 साल के लिये आवंटित किया गया है, बड़ा खेल कर दिया गया है। जल पट्टों के आरबीएम के मूल्य को बेस प्राइस रुपये प्रति कुन्तला इससे 2-3 रुपये से ऊपर की दर पर पट्टों को रेवड़ियों की तरह बॉट कर प्रदेशको सैकड़ों करोड़ रुपये की गयी है, जबकि अगर भूस्वामी के खेत में भी मलबा या सिल्ट जमा हो जाये, तो उसे सरकार से ही इसे खरीदने के लिये बसाइस अतिरुपये प्रति कुन्तल में दोगुने मूल रूपये 14 रुपये प्रति कुन्तत के हिसाब से खरीदने का नियम खनन नियमावली(प्रति संतत्र) में दिया गया है। इस समय बाजार में आरबीएम का यूनतम मूल्यक लगभग 50 रुपये प्रति कुंतत है, जिससे समझा जा सकता है कि इस विभाग में प्रदेश के हिस्से आने वाले राजस्व की बड़े स्तर पर बंदरबांट की जा रही है। उत्तराखण्ड कान्ति दत का आरोप है कि इस काले धन की कमाई की भाजपा की उक्त इंजन की प्रदेश सरकार के मुखिया चुनाव जीतने के लिये प्रयोग करते हैं, जिसके दुष्परिणाम उत्तराखण्ड कान्ति दत्त समेत अन्य विपक्षी दलों को भी भुगतने पड़ते हैं। इस तरह प्रदेश में काबिज़ धामी सरकार लोकतंत्र का गला घोट रही है। अगर सीएम धामी इस मामले में पाक-साफ हैं. सबसे पहले इन खनन पट्टाँ को निरस्त करें और प्रदेश के खनन विभाग में प्रदेश के सबस्कीटक विम्मेदारों को की सलाखों के पीछे पहुंचाने हेतु एसआईटी या सीबीआई जाँच की संस्तुति करें, अन्यधा उक्त मामले में उत्तराखंड कान्ति दत सड़क से लेकर माननीय न्यायालय तक प्रदेश के राजस्व की लूट के जिम्मेदारों को जेल की सलाखों के पीछे पहुँचाने हेतु निर्णायक लड़ाई लड़ेगा।
आशतोष का कहना है कि प्रदेश के चंपावत को छोड़ अन्य जनपदों को आबंटित पट्टों की संख्या-81, इन पट्टों से एक वर्ष में उठाये जाने वाले आरबीएम की मात्रा-5.89.63.230.00 (पाँच करोड़ उजब्बे लाख तिरसठ हजार दो सौ तीस) कुंतल। 81 पट्टों से एक वर्ष में इस आरवीएम की लगाई गयी बोली-58.34,88, 176.00 (अट्ठावन करोड़ चौतीस लाख अट्ठासी हजार एक सौ छियत्तर) रुपये।
भू स्वामी की अपनी भूमि पर जमा आरबीएम को सरकार से खरीदने की दर रुपये 14 प्रति कुन्तत के हिसाब से खरीदने पर इस आरवीएम का मूल्य है-58963230.00 (पाँच करोड़ उन्नब्बे तास तिस्सठ हजार दो सौ तीस) 14 रुपये प्रति कुन्तल = 82,54,85,220.00 (बपासी करोड़ चव्चन लाख पिचासी हजार दो सौ बीस) रुपये। आशुतोष ने पत्रकारों के समक्ष पांच सालों हुई हानि का भी विवरण प्रस्तुत किया l
शुद्ध हानि :
82,54,85,220.00 (बयासी करोड़ चव्बन लाख पिचासी हजार दो सौ बीस)-58,34,88, 176.00 (अट्ठावन करोड़ चौतीस लाख अट्ठासी हजार एक सौ छियत्तर) =24, 19,97,044.00 (चौबीस करोड़ उत्रीस लाख सत्तानवे हजार चवालीस) रुपए प्रति वर्ष।
पाँच सालों में होने वाली हानि-24, 19,97,044 (चौबीस करोड़ उत्रीस लाख सत्तानवे हजार चवालीस) 5 (वर्ष) = 120,99,85.220 (एक अरब बीस करोड़ निन्यानबे लाख पिचासी हजार दो सौ बीस) रुपये।
औसतन बाजार मूल्य रूपये 30 प्रति कुन्तल के हिसाब से आरबीएम का मूल्य-5,89,63,230 (पाँच करोड़ उन्नब्बे लाख तिरसठ हजार दो सौ तीस)×30 रुपये प्रति कुन्तल = 1,76,88,96,900. (एक अरब छियतर करोड़ अट्ठासी लाख छियानवे हजार नौ सौ) रुपये
शुद्ध हानि :
1,76,88,96,900 (एक अरब छिपतर करोड़ अट्ठासी लाख छियानवे हजार नौ सौ) 58,34,88,176 (अठावन करोड़ चौतीस लाख अट्ठासी हजार एक सौ छिपतर) =1185408724. (एक अरब अठारह करोड़ चवन लाख आठ हजार सात सौ चौबीस)
रुपये प्रति वर्ष
*5 सालों में होने वाली हानि : *
1185408724.00-05-5927043620.00 (पाँच सौ बयानवे करोड़, सत्तर लाख, तेतालिस हजार, छः सौ बीस रुपये मात्र)
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उत्तराखंडियों को बांटने का काम कर रही भाजपा सरकार : नमन चंदोला
पौड़ी, भू कानून को लेकर जहां प्रदेश में लगातार आंदोलन चल रहे हैं वहीं जनता की मांग को देखते हुए भाजपा सरकार ने भू कानून को कैबिनेट में मंजूर किया है, वहीं भू कानून को लेकर पौड़ी बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक नमन चंदोला ने बृहस्पतिवार को प्रेस नोट जारी कर भाजपा सरकार पर आरोप लगाया कि भाजपा सरकार भू कानून की आड़ में उत्तराखंडियों को बांटने का काम कर रही है ।चंदोला ने कहा कि पूरा प्रदेश सख्त भू कानून की मांग कर रहा है लेकिन भू कानून में हरिद्वार और उधम सिंह नगर को शामिल ना करना उत्तराखंडियों को बांटने वाला कदम है।
चंदोला ने कहा कि प्रदेश की जनता सख्त भू कानून की मांग करती आ रही है लेकिन लगता है सरकार हरिद्वार और उधम सिंह नगर की जनता को बाहरी समझती है। चंदोला ने कहा कि प्रदेश सरकार उत्तराखंड की जनता को पहाड़ी और मैदानी में बांटना चाहती है लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे।
हरिद्वार और उधम सिंह नगर को शामिल ना करने पर सरकार का तर्क है कि यहां उद्योग लगाए जाएंगे और निवेश बढ़ेगा तो हम सरकार से पूछना चाहते हैं कि क्या सरकार सिर्फ हरिद्वार और उधम सिंह नगर में निवेश बढ़ाएगी पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़ दिया जाएगा । नमन ने कहा कि उत्तराखंड में रह रहा हर एक व्यक्ति उत्तराखंडी है और उसका अधिकार सख्त भू कानून और मूल निवास 1950 है। चंदोला ने कहा कि जो सरकार हम पर आरोप लगाती थी कि हम पहाड़ी और मैदानी करके उत्तराखंड को बांटने का काम कर रहे हैं वह सरकार स्वयं उत्तराखंड को पहाड़ी और मैदानी में बांट रही है जबकि हमने समूचे उत्तराखंड के लिए सख्त भू कानून और मूल निवास की मांग की है। कहा कि जब तक पूरे राज्य के लिए सशक्त भू कानून और मूल निवास 1950 की मांग पूरी नहीं हो जाती तब तक आंदोलन जारी रहेगा ।
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