देहरादून (दीपिका गौड़), अपनी मौत के साथ ही ढाई दिन की सरस्वती दुनिया की सबसे छोटी देहदाता बन गई। जन्मजात हृदय रोग से पीड़ित सरस्वती का निधन होने पर उसके माता-पिता ने उसका शरीर दून मेडिकल कॉलेज को दान दिया। सरस्वती का शरीर अब चिकित्सा शिक्षा में काम आएगा, जिसे कश्यप कॉलेज संग्रहालय में संरक्षित रखा जाएगा।
रक्तदान और नेत्रदान के साथ-साथ देहदान को महादान माना जाता है। जिसके जरिए अनुसंधान और चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र को बढ़ावा मिलता है। राजधानी देहरादून के दून मेडिकल कॉलेज में एक ऐसा मामला सामने आया है जहां भारत समेत दुनिया में पहली बार ढाई दिन की बच्ची सरस्वती का देहदान किया गया। दरअसल, 8 दिसम्बर को सरस्वती की मां को लेबर पैन हुआ। जिसके तुरंत बाद सिजेरियन विधि से उनकी डिलीवरी की गई। घर में लक्ष्मी के रूप में बेटी के आने से सभी परिजन खुश थे, लेकिन यह खुशी चंद लम्हों में ही सिमट के रह गई क्यूंकि बच्ची की हृदय संबंधित बीमारी जांच में पता चली तो परिवार मायूस हो गया। नीकू वार्ड में बच्ची को रखा गया। लेकिन, 10 नवंबर को बच्ची ने दम तोड़ दिया।
देहरादून में ढाई दिन की बच्ची का दून मेडिकल कॉलेज में देहदान किया गया। दो दिन की जन्मी बच्ची मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में हृदय संबंधी रोग के कारण भर्ती थी। लेकिन दुर्भाग्यवश बच्ची नहीं बच पाई। देहरादून में दंपत्ति ने अपनी ढाई दिन की बच्ची का शव दून मेडिकल कॉलेज को दान दिया है। बताया गया कि हार्ट प्रॉब्लम के कारण बच्ची का निधन हुआ था। दून अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अनुराग अग्रवाल से मिली जानकारी के अनुसार 8 दिसंबर को दून अस्पताल में जन्मी बच्ची को हार्ट से रिलेटेड प्रॉब्लम थी। जिसका 10 दिसंबर को निधन हो गया। उन्होंने बताया कि मोहन फाउंडेशन और दधीचि देहदान समिति ने बच्ची के माता-पिता को देहदान करवाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि बच्ची 2 दिन पहले ही इस दुनिया में आई थी। लेकिन दुर्भाग्यवश बच्ची की जान बच नहीं पाई। उन्होंने कहा कि, इस तरह के महान कार्यों से अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिलती है कि हम भी यदि अपना देहदान कर सकें, तो इससे डॉक्टरों को मानव संरचना आसानी से समझने के साथ मदद मिल सकेगी। दून अस्पताल प्रशासन ने भी बच्ची के परिजनों को साधुवाद दिया। साथ ही दून मेडिकल कॉलेज ने बच्ची का देहदान करने वाले माता-पिता को पौधा भेंट कर सम्मानित किया।
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