Sunday, November 24, 2024
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आखिर आठ साल बाद हो ही गया दून की 128 मलिन बस्तियाें का वर्गीकरण

देहरादून, उत्तराखण्ड़ में केदारनाथ विधानसभा चुनाव के बाद नगर निकायों के चुनाव भी होने हैं, ऐसे सभी राजनैतिक दलों की नजर मलिन बस्तियों पर है, वहीं वर्ष 2016 में चिह्नित 128 मलिन बस्तियों का नगर निगम ने आठ साल बाद वर्गीकरण कर लिया है। वर्गीकरण के बाद 50 बस्तियों को श्रेणी एक और तीन में डाला गया है। 78 बस्तियों पर अभी भी पेंच फंसा है। बस्तियों का वर्गीकरण नहीं होने से अभी तक ये बस्तियां अधिसूचित नहीं हो पाई हैं। अब जब सरकार तीसरी बार मलिन बस्तियों को सुरक्षा कवच प्रदान करने के लिए कदम आगे बढ़ा चुकी है तो इसको देखते हुए करीब 15 दिन पूर्व बस्तियों का वर्गीकरण किया गया है। उत्तराखंड राज्य की नगर निकायों में अवस्थित मलिन बस्तियों के सुधार, विनियमितीकरण एवं पुनर्व्यस्थापन एवं अतिक्रमण निषेध अधिनियम 2016 के तहत देहरादून की मलिन बस्तियों को सुरक्षा प्रदान की गई थी।
इसके तहत मलिन बस्तियों का चिह्नीकरण के बाद वर्गीकरण और उसके बाद उनको अधिसूचित किया जाना था। इसके आधार पर इन बस्तियों पर काम होना था। उस समय नगर निगम ने सर्वे कर देहरादून में 128 बस्तियों का चिह्नीकरण किया था, लेकिन उनका वर्गीकरण नहीं किया जा सका था। अभी हाल ही में नगर निगम ने इनका वर्गीकरण कर लिया। इनमें तीन बस्तियों कुम्हार बस्ती अजबपुर, लोहारवाला किशनपुर, मच्छी तालाब को श्रेणी एक में रखा गया है, जबकि 47 बस्तियों को श्रेणी तीन की भूमि में रखा गया है। श्रेणी दो की भूमि में एक भी बस्ती को नहीं रखा सका।

बनाई गयी तीन श्रेणियां :

मलिन बस्तियों को तीन श्रेणियों में बांटा जाना था। श्रेणी एक में ऐसी बस्तियां रखी जानी थी, जिसमें घर निवास योग्य हो और उनको भू-स्वामित्व का अधिकार निर्धारित मानकों के अनुसार दिया जा सकता हो। इसके साथ ही श्रेणी दो के तहत ऐसी भूमि जो पर्यावरणीय या भौगोलिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में हो और उस क्षेत्र को वर्गीकृत किया जाए और सुरक्षात्मक उपायों को अपनाकर उस क्षेत्र को निवास योग्य बनाया जाना संभव हो और भू-स्वामित्म अधिकार प्रदान किया जाना संभव हो। तीसरी श्रेणी यह है कि ऐसी भूमि पर बसी बस्तियां जिनको विधिक, व्यावहारिक और मानव निवास, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के दृष्टिकोण से उपयुक्त ना हो।

आठ साल बाद निगम ने किया भूमि का वर्गीकरण :

इस समय निकाय चुनाव सिर पर हैं और मलिन बस्तियां भाजपा-कांग्रेस के लिये बड़ा मुद्दा हैं। इसलिये सभी मलिन बस्तियों की सुध रे रहे हैं, पिछले तीन साल में किसी भी संगठन को मलिन बस्तियों की याद नहीं आई। हालांकि विपक्ष समय-समय पर बयानबाजी और अन्य माध्यमों से सरकार को मलिन बस्तियाें की याद दिलाता रहा है। अक्तूबर महीने में नगर निगम को इसकी याद आई और उसने भूमि का वर्गीकरण कर दिया।

78 बस्तियों का वर्गीकरण नीतिगत निर्णय :

दून नगर निगम ने 78 बस्तियों का वर्गीकरण नहीं कर पाया है, क्योंकि यह 78 बस्तियां नॉन जेड-ए श्रेणी पर हैं। इन नॉन जेड ए श्रेणी में निजी भूमि और गैर जमींदारी विनाश अधिनियम के तहत निकाली गई भूमि होती है। नगर निगम इन 78 बस्तियों को लेकर निर्णय नहीं ले पाया। इसके चलते इन बस्तियों का निर्णय शासन के ऊपर छोड़ा गया है। नगर आयुक्त गौरव कुमार का कहना हैं कि नगर निगम ने करीब 15 दिन पूर्व बस्तियों का वर्गीकरण कर लिया है। तीन बस्तियां श्रेणी एक और 47 बस्तियां श्रेणी तीन में वर्गीकृत की गई हैं। इसके साथ ही 78 बस्तियां नॉन जेड ए श्रेणी में हैं, जिनका वर्गीकरण नीतिगत निर्णय है। रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है।

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