देहरादून, पहाड़ की माटी और थाती के लिए हमेशा ही समर्पित योद्धा डा. भगवती प्रसाद नौटियाल के आकास्मिक निधन ने एक शब्द शून्य विराम लगा दिया, ताउम्र पहाड़ के लिए समर्पित रहने वाले पहाड़ पुत्र डा. बीपी नौटियाल 24 सितम्बर को ईश्वरीय यात्रा पर यकायक निकल पड़े। किसी ने ठीक ही लिखा है कि “बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई, इक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया…! पहाड़ की जीवटता को जीने वाले बागवानी विभाग के पूर्व निदेशक डॉ. बीपी नौटियाल एक बेहद ईमानदार अधिकारी रहे। शिक्षक पिता परमानंद शास्त्री की सीख को जीवन भर गांठ में समेटे डॉ. भगवती प्रसाद नौटियाल ने कलम से पहाड़ लिखा और मन, क्रम, वचन से पहाड़ को जिया। उनको रिटायरमेंट के बाद भी हमेशा ही पहाड़ की चिन्ता सताती रही। उनकी सोच में ही पहाड़ रचा-बसा था। उनका मानना था कि पहाड़ पर बागवानी और नगदी फसलों को प्रमुखता देनी होगी। काश्तकारों को बाजार उपलब्ध कराना होगा। उन्होंने अपनी पीएचडी के लिए तुंगनाथ जैसे ऊंचे इलाके में फसलों पर पड़ने वाले प्रभाव को चुना। उन्होंने बाद में तुंगनाथ में पालीहाउस में टमाटर, मटर और बीन्स उगाने के प्रयास किये।
साल 1979 में डॉ. नौटियाल जब गढ़वाल विश्वविद्यालय में पढ़ते थे तो वो हिमालय पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा के बेहद करीबी युवा समर्थक थे। लेकिन, जब बात पहाड़ की आई तो उन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा के राजनीतिक कद की परवाह किए बगैर पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा को चुना। इससे साबित होता है कि पहाड़ के प्रति उनका कितना गहरा लगाव था। डॉ. बीपी नौटियाल ने सुंदरलाल बहुगुणा के साथ में आराकोट से शिमला तक की कागज बचाओ पदयात्रा की। यहयलगभग 500 किलोमीटर की पदयात्रा थी। इसमें पांच लोग शामिल थे।
श्रीनगर गढ़वाल विश्वविद्यालय में फारेस्टी डिपार्टमेंट शुरू करने का श्रेय भी डॉ. बीपी नौटियाल की जाता है। नाबार्ड में वो विभिन्न पदों पर रहे और पूरी ईमानदारी से पहाड़ के लिए काम करते रहे। वर्ष 2008 में उन्होंने नाबार्ड के महाप्रबंधक पद से वीआरएस लिया।
उन्हें बागवानी विभाग का निदेशक बनाया गया और फिर गलत काम करने को कहा, लेकिन वो भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों के लिए गले की फांस बन गये। उन्हें हटाने के लिए षडयंत्र रचा गया तो वह हाईकोर्ट पहुंच गये। तीन साल के कार्यकाल के बाद ही यह पद छोड़ा। साल 2013 में वो भरसार विश्वविद्यालय के डीन बने और वर्ष 2017 में माजरीग्रांट में फूड प्रोसेंसिंग यूनिट की जिम्मेदारी संभाली। इसके साथ ही वह शिल्पी का प्रकाशन भी करने लगे। पहाड़ के युवाओं को स्वरोजगार और बागवानी के लिए प्रेरित किया। उनका कहना था कि पहाड़ के युवाओं को नौकरशाहों के तौर पर तैयार करना होगा। पीसीएस और आईएफएस को एलबीएस या हैदराबाद में ट्रेनिंग देनी होगी।
डॉ. नौटियाल बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। कालेज के समय से वह नाटक लिखते और उनका मंचन करते थे। 1974 में लिखा उनका नाटक ‘खून का दाग’ खूब सराहा गया। इतिहास का पन्ना और अमर पुष्प् नाटक भी चर्चित रहे। अमर पुष्प श्रीदेव सुमन पर आधारित नाटक था। इतना ही नहीं, उनके जटरोफा पर शोध और कई लेख प्रकाशित हुए।
विविधता में एकता विषय पर सचित्र व्याख्यान का हुआ आयोजन
देहरादून, दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से मंगलवार को विविधता में एकता विषय पर सामाजिक चिंतक अमरदीप सिंह द्वारा एक सचित्र व्याख्यान प्रस्तुत किया गया.अमरदीप सिंह ने गुरु नानक, बाबा फरीद और संत कबीर की रचनाओं तथा उनके द्वारा किये गए समाज सुधार कार्यों से समाज मे एकता का जो भाव पैदा हुआ उसे शानदार तरीके से व्यक्त किया. उल्लेखनीय है कि गुरु नानक ने अपने जीवन काल में २२ साल, अपने इकलौते साथी भाई मरदाना के साथ व्यापक यात्राएं की – जो उन्हें उत्तर में बगदाद से लेकर दक्षिण में श्रीलंका, नौ देशों के आप-पार ले गयीं। सिंगापुर निवासी श्री अमरदीप सिंह रांगढ़ ने, करीब 2016 से 2019 के बीच, गुरु नानक औरक उनके दर्शन और तब की संस्कृति की खोज में उन सभी नौ देशों और जगहों की यात्राएं की – और उसके अंत में उनको अपने जीवन का ध्येय मिल गया।
सिंगापुर निवासी, श्री अमरदीप सिंह रांगढ़ के पिताजी मूलत:उड़ी-मुज़फ़्फ़राबाद (जो वर्तमान पाकिस्तान में है) के थे। विभाजन के बाद, वे गोरखपुर में बस गए, जहाँ उनका अपने कारोबार के सिलसिले में आना-जाना होता था। अमरदीप का जन्म वहीँ, गोरखपुर में हुआ। उनकी स्कूली शिक्षा देहरादून में ही दून स्कूल में हुई। आगे की पढ़ाई मणिपाल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी तथा अमरीका के शिकागो विश्वविद्यालय में हुई और अगले २५ साल वे कॉर्पोरेट जगत में नौकरी पर रहे। 2014 में उन्होंने नौकरी छोड़ी और अपनी पत्नी विनिंदर कौर के साथ, नानक की खोज में एक नयी यात्रा पर पर चल पड़े।
कार्यक्रम के आरम्भ मे दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने सभागार में उपस्थित लोगों और अतिथि वक्ता अमरदीप सिंह का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन हिन्द स्वराज्य मंच के श्री अजय कुमार जोशी ने किया. इस अवसर पर गांधीवादी चिंतक बिजू नेगी ने भी अपने विचार रखे l
कार्यक्रम में विभापुरी दास, ,सतीश धौलाखण्डी, सुरेंद्र सिंह, देवेंद्र कुमार,सुशीला नेगी, सुंदर बिष्ट, पुष्पलता मंमगाई,मदन सिंह, राकेश कुमार, राजू गुसाईं,रेणु शुकला, अपर्णा वर्धन सहित अनेक लेखक, साहित्यकार, विचारक और दून पुस्तकालय के युवा पाठक उपस्थित रहे
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