Sunday, November 24, 2024
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17वीं राष्ट्रीय बालसाहित्य संगोष्ठी : देश के विभिन्न राज्यों के 132 साहित्यकारों ने किया प्रतिभाग

अल्मोड़ा, अल्मोड़ा से प्रकाशित बच्चों की पत्रिका बालप्रहरी/बालसाहित्य संस्थान तथा मानिला मंदिर प्रबंधन ट्रस्ट मानिला के संयुक्त तत्वावधान में गीता भवन देवी धाम मानिला में बालसाहित्य और बाल संस्कार’ विषय पर 8, 9 तथा 10 जून को आयोजित 17वीं राष्ट्रीय बालसाहित्य संगोष्ठी में देश के विभिन्न राज्यों के 132 साहित्यकारों ने प्रतिभाग किया। संगोष्ठी का उद्घाटन बच्चों ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। उद्घाटन समारोह में बाल कवि सम्मेलन में 13 बाल कवियों ने मानिला, फूल, बादल, गरमी, कुल्फी आदि विषयों पर स्वरचित कविताओं का पाठ किया।
‘बालसाहित्य और बाल संस्कार’, ‘बालसाहित्य और बच्चे’ तथा ‘बालसाहित्य और आनलाइन गतिविधियां’ विषय पर आयोजित सत्रों में हिदीं अकादमी दिल्ली के पूर्व सचिव डा0 हरिसुमन बिष्ट (दिल्ली), राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय रामनगर के प्रधानाचार्य एवं बालसाहित्यकार प्रो0 मोहनचंद्र पांडे, प्रो0 रूद्र पौड़ियाल (सिक्किम), डा0 चेतना उपाध्याय (अजमेर), कुमुद वर्मा (अहमदाबाद), डा0 रामदुलार सिंह पराया (मिर्जापुर), डा0 राजनारायण बोहरे (दतिया), रमेशचंद्र दास (पुरी, उड़ीसा), रमेशचंद्र पंत (द्वाराहाट, अल्मोड़ा), डा0 महावीर रवांल्टा (पुरोला, उत्तरकाशी), इंजी0 आशा शर्मा (बीकानेर), डा0 राकेश चक्र (मुरादाबाद), बच्चों की पत्रिका ‘प्यारी बगिया के संपादक लखन प्रतापगढ़ी, कहानीकार सुधा जुगरान (देहरादून), पूर्व शिक्षाधिकारी दयाराम मौर्य (प्रतापगढ़) पूर्व चुनाव आयुक्त केएन शर्मा (सिक्किम), डा0 सतीशचंद्र भगत (दरभंगा, बिहार), डा0 रमेश आनंद (आगरा), प्रमोद दीक्षित (बांदा), डा0 इंदु गुप्ता (फरीदाबाद), अनिल सक्सेना चौधरी (जयपुर), रेखा लोढ़ा (भीलवाड़ा, राजस्थान), डा0 अशोक कुमार गुलशन (बहराइच), डा0 लता अग्रवाल ‘तुला’ (भोपालद्ध, डा0 गीता नौटियाल (रूद्रप्रयाग), मीना सुब्बा (गांतोक), चारू तिवारी (दिल्ली), रफीक नागौरी (उज्जैन), सुभाषचंद्र (गाजियाबाद), पीसी तिवारी (अल्मोड़ा), डा0 कृष्णा कुमारी (कोटा, राजस्थान), बिरंचीनारायण दास (बालंगीर, उड़ीसा), डा0 अमितकुमार (पीलीभीत), रावेंद्रकुमार रवि (खटीमा), कविता मुकेश (बीकानेर), सुधीर सिंह (दिल्ली) सहित देश के विभिन्न राज्यों से आए बालसाहित्यकारों ने अपने विचार प्रकट किए।
वक्ताओं ने कहा कि मोबाइल व इंटरनेट के दौर में पठन-पाठन की संस्कृति का हा्रास हुआ है। इसके लिए केवल बच्चों को ही दोष दिया जाना सही नहीं है। बतौर साहित्यकार, शिक्षक तथा अभिभावक यदि हम बड़े लोग बालसाहित्य या बाल पत्रिकाएं नहीं खरीदेंगे तो बच्चे कहां से पढ़ेंगें। कहा गया कि हम बच्चों में संस्कार की बात करते हैं। स्वयं बच्चों से कहते हैं कि कह दो ‘पापा घर पर नहीं हैं।’। हम बड़ों को दोगला चरित्र जीने के बजाय स्वयं अपने अंदर संस्कार जाग्रत करने होंगे। कहा गया कि बच्चों के लिए बच्चा बनकर लिखे जाने की जरूरत है। यह भी कहा गया कि आज बच्चे हम बड़े लोगों को मोबाइल व दूसरे उपकरणों का ज्ञान करा रहे हैं। वक्ताओं ने कहा कि अलग-अलग कामों के लिए घर में धारदार चाकू अनिवार्य है। बच्चे को चाकू के नुकसान बताए जाने की जरूरत है। उसी प्रकार मोबाइल आज के दौर में अनिवार्य हो गया है। जरूरत है कि बच्चे उसका दुरूपयोग न करें। कहा गया कि आज के दौर में ऐसा बालसाहित्य लिखा जाए जो मनोरंजक होने के साथ ही बच्चों को सामाजिक सरोकारों तथा मानवीय मूल्यों से जोड़े।
कहानी वाचन सत्र में बीकानेर की इंजी. आशा शर्मा द्वारा प्रस्तुत कहानी को सुनकर बच्चों ने कहानी की समीक्षा अपने अंदाज में की। बाल कविता वाचन सत्रा में अजीत सिंह (कानपुर), मोतीप्रसाद साहू (वाराणसी), नीरज पंत (अल्मोड़ा), डा0 जगदीशचंद्र पंत ‘कुमुद’ (ऊधमसिंहनगर), प्रकाशचंद्र पांडे (हरिद्वार) द्वारा प्रस्तुत बाल कविताओं की समीक्षा बच्चों ने बेबाक ढंग से प्रस्तुत की। 8 तथा 9 जून को दो चरणों में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में 79 कवि/कवयित्रियों ने बाल कविताएं पढ़ी।
राष्ट्रीय बालसाहित्य संगोष्ठी में आजादी से पूर्व प्रकाशित बाल पत्रिका ‘बाल सखा’, ‘बाल बोध’, तथा ‘बालक’ जैसी दुर्लभ ‘नदंन’, ‘पराग’, बाल पत्रिकाओं के साथ ही बालवाटिका, बाल भारती, बाल वाणी, बच्चों का देश, बच्चों की प्यारी बगिया, कोंपल, चकमक, बाल दर्पण, बाल किलकारी, पाठक मंच बुलेटिन, बाल प्रभा सहित 88 बाल पत्रिकाओं की प्रदर्शनी विशेष आकर्षण का केंद्र रही। प्रदर्शनी में बालप्रहरी की कार्यशाला में बच्चों द्वारा तैयार हस्तलिखित पुस्तकों की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी। बच्चों द्वारा तैयार दीवार पत्रिका मानिला दर्पण, बाल संसार तथा बाल दर्पण भी काफी सराहा गया।
बालसाहित्य में उल्लेखनीय कार्य करने वाले देश के विभिन्न राज्यों के 21 बालसाहित्यकारों को जन सहयोग से पत्रम पुष्पम, अंग वस्त्र, प्रशस्ति पत्र व प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया गया। संगोष्ठी के प्रारंभ में बालप्रहरी के संपादक तथा बालसाहित्य संस्थान के सचिव उदय किरौला ने सभी का स्वागत किया। 3 दिवसीय संगोष्ठी के अंत में मानिला मंदिर प्रबंधन ट्रस्ट के अध्यक्ष नंदन सिंह मनराल ने सभी का आभार व्यक्त किया।
संगोष्ठी के प्रत्येक सत्र में भारत ज्ञान विज्ञान समिति द्वारा जन गीत व हुड़के की थाप पर गाए लोकगीतों ने माहौल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। विभिन्न सत्रों का संचालन नीरज पंत, कृपालसिंह शीला, रेखा लोढ़ा, प्रकाश जोशी, डा0 खेमकरन सोमन, पवन कुमार, प्रमोद तिवारी ने किया।
एडवोकेट जीएस चौहान, केएस बंगारी, भैरवदत्त पांडे, कृपालसिंह बिष्ट, दयाराम नैलवाल तथा केएस बंगारी के सौजन्य से सभी साहित्यकारों को कुमाउंनी अल्पना पर आधारित सरस्वती पीठ/चौकी भेंट की गई। अलग-अलग सत्रों में 22 पुस्तकों का लोकार्पण किया गया।
संगोष्ठी से पूर्व आदर्श राजकीय इंटर कालेज मानिला में खंड शिक्षा अधिकारी हरेंद्र शाह व प्रधानाचार्य डा0 रवींद्र सत्यबली के संरक्षण व पवन कुमार (स्वयं) की देखरेख में 3 से 7 जून तक आयोजित बाल लेखन कार्यशाला में 46 बच्चों को कविता कहानी, निबंध, यात्रा वृतांत, जीवन की घटना, पत्र लेखन आदि विधाओं की जानकारी दी गई। कार्यशाला में बच्चों ने अपनी हस्तलिखित पुस्तक तैयार की। बाल कवि सम्मेलन की तैयारी की। राष्ट्रीय बाल साहित्य संगोष्ठी में चयनित 13 बच्चों ने भी सहभागिता की।

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