“गला सच का दबाया जा रहा है। सियासत से भरोसा जा रहा है। कतर के पर हमारे देखिए तो। हमें उड़ना सिखाया जा रहा है : दर्द गढ़वाली”
देहरादून, दून पुस्तकालय में अदबी संस्था अहल-ए-सुखन की ओर से शनिवार को शायर बदरुद्दीन ज़िया की शान में मुशायरे का आयोजन किया गया, जिसमें शायरों ने एक से बढ़कर एक कलाम पढ़े। मुख्य अतिथि डा. मुजीबुर रहमान ने दीप जलाकर कार्यक्रम की शुरुआत की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे इक़बाल ‘आज़र’ ने ‘पड़ोसी सा न मिल पाया पड़ोसी। मेरी क़िस्मत भी हिन्दुस्तान सी है’ सुनाकर वाहवाही लूटी। बदरुद्दीन ज़िया ने ‘आलम में चमकता है फकत अपने ही दम से, सूरज की कलाई में सितारे नहीं होते।’ सुनाकर महफ़िल में समां बांध दिया।
इससे पहले दर्द गढ़वाली ने चार मिसरे ‘गला सच का दबाया जा रहा है। सियासत से भरोसा जा रहा है। कतर के पर हमारे देखिए तो। हमें उड़ना सिखाया जा रहा है।।’ सुनाकर सियासत पर तंज कसा। अमजद ख़ान अमजद ने ‘हम को मंज़िल पे पहुंचने का जुनूं ऐसा था, रुक के देखे ही नहीं पांओं के छाले हमने।’ सुनाकर खूब तालियां बटोरी।
इसके बाद सुनील साहिल ने ‘जाओ भी अब मुझको तन्हा रहने दो, मेरा ग़म है मुझको खुद ही सहने दो’ मत बहलाओ मुझको मीठी बातों से, मेरी आंखों से अश्कों को बहने दो।।’ सुनाकर श्रोताओं की दाद बटोरी। इम्तियाज़ अकबराबादी के शेर ‘रोज़ करता हूँ मैं तेरे ही ख़यालों का सफ़र, मुझको अच्छा सा लगे है ये उजालों का सफ़र।’ को भी खूब पसंद किया गया।
शायर राज कुमार ने ‘पहले पहल तो मुझको अज़िय्यत लगी सज़ा, आदत पड़ी जो दर्द की आने लगा मज़ा।’ सुनाकर वाहवाही बटोरी। शादाब मशहदी ने ‘चराग़ बन के जो दुनिया में जगमगाते हैं, वो अपने घर के अँधेरों से हार जाते हैं।’ सुनाकर महफ़िल को रौनक बख्शी। बदायूं से आए शायर अहमद अज़ीम ने ‘मैं मानता हूँ कि मैं रौशनी का क़ाइल हूँ मगर ये रोशनी पूछे बिना बढ़ा दी गई।।’ सुनाकर तालियां बटोरी।
इसके अलावा अमजद खान अमजद, वंदिता श्री, निकी पुष्कर, रईस फिगार, राही नहटौरी, साख दूनवी आदि ने भी कलाम पढ़े। कार्यक्रम को सफल बनाने में गौरव सारथी, विवेक सेमल्टी, हैरी माँझा, अजय, मनदीप बिष्ट, प्रवीण (कैमरा टीम), बैरागी आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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