(एल मोहन लखेड़ा)
देहरादून, सीएम धामी द्वारा अतिक्रमण पर प्रभावी कार्यवाई के निर्देश दिए हैं। जिलाधिकारी श्रीमती सोनिका के निर्देशन में अतिक्रमणमुक्त अभियान के अन्तर्गत टीमों द्वारा अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही की जा रही है। आज आराघर से नेहरूकालोनी धर्मपुर, सहस्त्रधारा आईटी पार्क, जीएमएस रोड, चकराता रोड-बल्लुपुर, जीएमएस रोड आदि स्थानों से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की गई। अतिक्रमण मुक्त अभियान के दौरान अवैध होर्डिंग्स भी हटाये गए।
नगर निगम ने 93 चालान करते हुए रुपए 84800 के अर्थदंड की कार्रवाई की गई, पुलिस द्वारा लगभग 61चालान करते हुए, रुपए 29750 के अर्थदंड की कार्रवाई की गई। इसी प्रकार आरटीओ द्वारा लगभग 26 चालान करते हुए रुपए 13000 के अर्थदंड की कार्रवाई की गई। जिलाधिकारी ने संबंधित विभागों के अधिकारियों को निर्देशित किया है, कि अतिक्रमण के विरुद्ध नियमित अभियान चलाते हुए, फुटपाथ, सड़कों को अतिक्रमणमुक्त करें तथा किसी भी दशा में उन्हें पुनः अनाधिकृत रूप से अतिक्रमण व किसी भी प्रकार की अवाछनीय गतिविधिया संचालित न होने दे |
एक सवाल यह भी…?
लेकिन सबसे वाजिब सावल यह है कि हर बार नगर निगम अतिक्रमण हटाता है और फिर कुछ दिन बाद फिर अतिक्रमण हो जाता, यह दुकानदारों और अतिक्रमण करने वालों और जिला प्रशासन के बीच लुका छिपी का खेल चलता रहता है, दून शहर की हालत यह है कि लोगों के लिये चलने वाले फुटफाथ पर व्यापारी वर्ग अपना कब्जा कर लेता है, शहर का यह नजारा प्रशासन के अधिकारी भी आये दिन देखते रहते हैं फिर एक स्थाई समाधान क्यों नहीं निकाला जाता है, कहीं न कहीं इसमें सरकार की लचर व्यवस्था का कसूर है | देशवासियों का तो यहां कहना है कि यह तो एक तरह की मात्र खानापूर्ति है और बार बार सरकारी मशीनरी का भी दुरूपयोग है | सवाल यह है कि सालभर नगर निगम और जिला प्रशासन अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाही करता है और कुछ अर्थदंड़ वसूल कर कार्य की इतिश्री कर देता है और फिर शहर की स्थिति फिर जस की तस हो जाती है | लोगों का तो यहां तक कहना है कि अतिक्रमण वालों के आगे प्रशासन पंगु साबित हो रहा और खानापूर्ति के नाम पर पीला पंजा शहर धुमाया और सड़कों कुछ अतिक्रमण हटाया और पहुँच रखने वाले पास जाते है पीला पंजा हाॕफने लग जाता है, ऐसे में जिला प्रशासन और अतिक्रमण करने वालों के बीच चुहा बिल्ली का खेल चलता रहता है | यहीं खेल राज्य दो दशक से चल रहा है और अभी भी अतिक्रमण का सफाया नहीं हो पाया | ऐसे में सवाल किसके फेलियर का है सरकार का या जिला प्रशासन का, यह प्रश्न आज भी मुंहबायें खड़ा है ? अब अगर सरकार के निर्देश की जवाब देही को अगर अधिकारी न माने तो किसको दोष दें | उधर अतिक्रमण करने वालों के पक्ष में भी एक जमात आये दिन खड़ी हो जाती है | वैसे तो दून शहर की दीवारों पर रंगीन चित्रों को उकेर कर सुन्दरता का रूप दिया गया लेकिन सड़कों के किनारे आये दिन हो रही खुदाई के गड्ढ़े से जहां शहर की सुन्दरता में दाग लग रहा है |
वैसे तो शहर में जब भी कोई वीआईपी का आगमन अथवा कोई बड़ा आयोजन सरकार द्वारा किया जाता है तो जिले के हर विभाग की चांदी बन जाती है | अब देखने की बात यह है घंटाघर से चार दिशाओं में फैला देहरादून शहर में सड़कों के बीच में हर बार नये सजावटी पेड़ लगाये जाते है और कहीं कहीं पर तो गमलों सहित पेड़ नर्सरी से लाकर रख दिये जाते है और स्वच्छ दून सुन्दर दून का नारा बुलंद किया जाता है | अरे भाई कितने बार इन सड़कों पर प्लांट लगाओगे और उनके रखरखाव के नाम पर कितनी बार बंदर बांट करोगे, कोई देखने सुनने वाला नहीं, एक विभाग दूसरे विभाग पर दोषारोपण कर अपने कार्यो की इतिश्री कर देता |
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