“लीवर ट्रांसप्लांट की आवश्यता वाले रोगियों को मिलेगा परामर्श”
ऋषिकेश, लीवर ट्रांसप्लांट के इच्छुक मरीजों को आवश्यक स्वास्थ्य परामर्श देने के लिए अब एम्स ऋषिकेश में एक विशेष ओपीडी संचालित होगी। इसे लीवर ट्रांसप्लांट क्लीनिक नाम दिया गया है। यह ओपीडी प्रत्येक मंगलवार को अपरान्ह 2 बजे से 5 बजे तक संचालित होगी।
स्वास्थ्य सेवाओं को आगे बढ़ाते हुए एम्स ऋषिकेश ने नए वर्ष पर एक नया क्लीनिक शुरू किया है।
मेडिकल गेस्ट्रोएंट्रोलाॅजी और सर्जिकल गैस्ट्रोएंट्रोलाॅजी विभाग द्वारा संयुक्तरूप से शुरू की गई इस ओपीडी में विशेषतौर से उन मरीजों को देखा जाएगा, जिनका लीवर खराब है और जिन्हें निकट भविष्य में लीवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता है।
इस बारे में जानकारी देते हुए गैस्ट्रोएंट्रोलाॅजी विभागाध्यक्ष डाॅ. रोहित गुप्ता ने बताया कि संस्थान की निदेशक प्रोफेसर मीनू सिंह के प्रयासों से निकट भविष्य में लीवर ट्रांसप्लांट की सुविधा भी एम्स में शुरू होने जा रही है। इसे देखते हुए ऐसे रोगी जिन्हें लीवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता पड़ रही है, वह इस ओपीडी का लाभ उठा सकते हैं।
सर्जिकल गैस्ट्रोएंट्रोलाॅजी विभाग के प्रमुख डाॅ. निर्झर राकेश ने इस बारे में जानकारी दी कि लीवर ट्रांसप्लांट ओपीडी द्वारा संबन्धित रोगी का प्रारंभिक मूल्यांकन कर लीवर ट्रांसप्लांट हेतु आवश्यक परामर्श, प्री-ट्रांसप्लांट मूल्यांकन और पोस्ट-ट्रांसप्लांट प्रबंधन के लिए एक समर्पित मंच प्रदान किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि एम्स में पेट रोग से संबंधित समस्या वाले रोगियों के लिए प्रत्येक सोमवार, बुधवार व शुक्रवार को मेडिकल गैस्ट्रोएंट्रोलाॅजी की ओपीडी तथा प्रत्येक मंगलवार, बृहस्पतिवार और शनिवार को सर्जिकल गैस्ट्रोएंट्रोलाॅजी विभाग की ओपीडी और प्रत्येक बृहस्पतिवार को दोपहर 2 बजे से फैटी लीवर क्लिनिक पूर्व से ही संचालित है।
संघर्ष समिति ने चेताया, पहाड़ ही नहीं मैदान के लोगों का हक भी मार रहे हैं बाहरी लोग
हरिद्वार, मूल निवास- भू कानून समन्वय संघर्ष समिति राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में बैठक कर स्थानीय लोगों विचार-विमर्श कर रही है। इसी कड़ी में मूल निवास स्वाभिमान आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाने के लिए संघर्ष समिति के नेताओं ने हरिद्वार में विभिन्न सामाजिक संगठनों, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, पूर्व सैनिकों और राज्य आंदोलनकारियों के साथ बैठक कर आगे की रणनीति पर चर्चा की।
इस मौके पर समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी और सह-संयोजक लुशुन टोडरिया ने कहा कि मूल निवास स्वाभिमान आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाने का अभियान जारी है। यह उत्तराखंड के हरेक मूल निवासी का आंदोलन है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग पहाड़-मैदान को आपस में बांटने के लिए षड्यंत्र कर रहे हैं। ऐसी साजिशों को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। पहाड़ हो या मैदान, हरेक मूल निवासी इस लड़ाई में साथ है।
उन्होंने कहा कि संविधान में मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 है। हम संविधान की भावना के अनुरूप ही अपने हक की बात कर रहे हैं। हमारी लड़ाई उनके खिलाफ़ है, जो अपने मूल राज्य में मूल निवास प्रमाण पत्र का लाभ ले रहे हैं और उत्तराखंड में स्थाई निवास बनाकर लाभ रहे हैं। जबकि ऐसा करना कानूनन अपराध है। बड़ी संख्या में लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने फर्जी स्थायी निवास प्रमाण-पत्र बनाए हैं और यहां नौकरी कर रहे हैं। पहाड़ के साथ ही मैदान में रहने वाले लोगों का भी हक़ बाहर के लोग मार रहे हैं। मैदान के मूल निवासी इस बात को समझते हैं।
उन्होंने कहा कि जब तक उत्तराखंड में हिमाचल की तर्ज पर सशक्त भू-कानून और मूल निवास-1950 लागू नहीं हो जाता, यह आंदोलन जारी रहेगा। यह लड़ाई हमारे अस्तित्व, अस्मिता, स्वाभिमान और अपनी सांस्कृतिक पहचान बचाने की है। हमारे संसाधनों पर बाहरी लोग डाका डाल रहे हैं। नौकरियों से लेकर जल, जंगल, जमीन पर बाहरी लोग कब्जा कर चुके हैं। हमें अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए इस लड़ाई को लड़ना ही होगा।
समन्वय समिति के सदस्य और पोखड़ा के पूर्व ब्लॉक प्रमुख सुरेंद्र रावत ने कहा कि आज हमारी जमीनों पर भू-माफिया का कब्जा होता जा रहा है। हमारे लोग बाहर के लोगों के रिजॉर्ट में नौकर बनने के लिए मजबूर हो गए हैं। सरकार ने भू-कानून इतना लचर बना दिया है कि कोई भी हमारे राज्य में बेतहाशा जमीन खरीद सकता है। सामाजिक कार्यकर्ता तरुण व्यास, महादेव पंवार, चंद्रकिशोर लेखवार, डॉ. अजय नेगी, बलवीर सिंह रावत ने कहा कि जब हमारी जमीन बचेगी, तभी हमारा ज़मीर भी बच पाएगा। जमीन बचेगी तो हमारी संस्कृति, बोली-भाषा, वेशभूषा, साहित्य और अस्मिता बच पाएगी।
राज्य आंदोलनकारी सतीश जोशी, योगेंद्र नेगी, दीपक पांडे, मनोज रावत, श्याम भट्ट, रजत कंडवाल, विनोद शर्मा, नंदकिशोर लेखवार, राज कंडवाल, उपेंद्र भंडारी, विनोद चौहान, मनेंद्र पुनेठा, धीरेंद्र सिंह रावत ने कहा कि हम सभी को एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ना है। आज हम लोग नहीं लड़े, तो आने वाले समय में अपने ही राज्य में अल्पसंख्यक हो जाएंगे और बाहरी ताकतें हम पर राज करेंगी। हमें अपनी पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए संघर्ष करना है। यह जनांदोलन हर गांव, हर शहर में पहुंचना जरूरी है।
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