उत्तरकाशी (डॉक्टर उनियाल) सनातन संस्कृति में जहां सात जन्मों के वैवाहिक जीवन को मानकर सात फेरों की कसमे जीवन को एक बंधन में बांध कर गृहस्थ आश्रम को स्थापित कर संसार के सृजन में अपनी अहं भूमिका निभाती है वही इस परंपरा की कड़ी में करवा चौथ का व्रत भी अपनी अहम भूमिका निभाते हुए पति-पत्नी के रिश्तों का एक साक्ष्य बन जाता है,
करवा चौथ का व्रत रखकर सुहागिन नारी अपने पति के दीर्घायु एवं कल्याण की कामना को लेकर निर्जला व्रत रखकर चंद्रमा की पूजा दर्शन के बाद पति के दर्शन करने के बाद ही अन्न जल ग्रहण करती है,जब तक चंद्रमा का उदय आकाश में नहीं दिखे तब तक यह व्रत समाप्त नहीं किया जा सकता है, चंद्रमा को छलनी से देख कर पुनः उसी छलनी से पति को देखने की भी परंपरा है, देखने के बाद चंदन रोली धूप दीप जल एवं फूलों से चंद्रमा की पूजा करने के बाद ही व्रत का उद्यापन किया जाता है इस पूजा में एक
कलश को जल से भरकर उसके ऊपर एक दीपक में घी भरकर जलाया जाता है, तथा कलश स्थापित कर उसके पास एक करवा रखा जाता है साथ में गौरी गणेश की स्थापना कर विधि विधान से पूजन सामग्री के साथ पूजा की जाती है, पत्नी अपने पति को छलनी के माध्यम से देख कर उनके चरणों में नतमस्तक होकर सुहागनी होने का आशीर्वाद मांगती है, और अपने व्रत का पारायण करती हैं, कहीं-कहीं तो सुहागनिया एकत्रित होकर के नृत्य गाना आदि भी करती हैं, l
विविधता से भारी भारतीय परंपराओं में व्रत त्योहार का अपना एक विशेष महत्व है, इसी क्रम में करवा चौथ स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु की कामना के साथ व्रत रखा जाता है
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