देहरादून, आयुष्मान और राज्य सरकार स्वास्थ्य योजना के तहत गोल्डन कार्ड पर इलाज देने वाले सात निजी अस्पतालों ने इलाज बंद कर दिया है। इससे सेवारत कर्मचारियों और पेंशनरों को मिलने वाली कैशलेस इलाज सुविधा पर संकट खड़ा हो गया है। अस्पतालों का कहना है कि उनका बकाया भुगतान 130 करोड़ तक पहुंच चुका है, और इस बकाए का भुगतान अभी तक नहीं किया गया है। राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण के पास वर्तमान में इस भुगतान के लिए बजट नहीं है, जिससे समस्या और जटिल हो गई है। अब इस मुद्दे पर कैबिनेट में फैसला लिया जाएगा। अगर समस्या का समाधान नहीं होता है, तो बड़ी संख्या में लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं मिल पाएगा।
प्रदेश सरकार ने गोल्डन कार्ड योजना के तहत राजकीय कर्मचारियों और पेंशनरों को कैशलेस इलाज की सुविधा प्रदान की है। इस सुविधा के तहत कर्मचारियों और पेंशनरों से प्रति माह अंशदान लिया जाता है, जो उनकी पद की श्रेणी के अनुसार होता है। इस अंशदान से ही इलाज पर होने वाले खर्च का भुगतान किया जाता है। लेकिन अंशदान की राशि इलाज पर होने वाले खर्च के मुकाबले कम साबित हो रही है, जिसके कारण अस्पतालों का 130 करोड़ रुपये तक का भुगतान फंसा हुआ है। इस समस्या के चलते हिमालयन हॉस्पिटल जौलीग्रांट, कैलाश, कनिष्क, मेदांता, नारायण हास्पिटल, धर्मशिला और ग्राफिक एरा हॉस्पिटल जैसे अस्पतालों ने गोल्डन कार्ड पर इलाज देना बंद कर दिया है। यह स्थिति राज्य सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती बन गई है, और इसे हल करने के लिए कैबिनेट में जल्द ही फैसला लिया जाएगा।
चार लाख से अधिक कर्मचारियों व पेंशनरों के बने गोल्डन कार्ड :
योजना के तहत अब तक चार लाख से अधिक कर्मचारियों, पेंशनरों व उनके आश्रितों के गोल्डन कार्ड बने हैं। इस योजना में कर्मचारियों के आश्रितों को कैशलेस इलाज की सुविधा है। लेकिन अंशदान के रूप में कर्मचारियों व पेंशनरों से पद श्रेणी के हिसाब से 250 रुपये से लेकर एक हजार रुपये तक अंशदान लिया जाता है। कर्मचारियों और पेंशनरों के लिए गोल्डन कार्ड योजना में अंशदान से ज्यादा इलाज पर खर्च हो रहा है। इस योजना को किस तरह संचालित करना है जल्द ही इसका प्रस्ताव कैबिनेट रखा जाएगा। वर्तमान में गोल्डन कार्ड से होने वाले इलाज के लिए सरकार की ओर से कोई बजट नहीं दिया जाता है। यह योजना अंशदान से चल रही है।
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