Sunday, November 24, 2024
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पांच दिवसीय ग्रीष्म कला उत्सव का दूसरा दिन : संगीत व चित्रकला पर आधारित चार वृतचित्र फिल्मों का हुआ प्रदर्शन

देहरादून, दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से आयोजित पांच दिवसीय ग्रीष्म कला उत्सव के दूसरे दिन गुरुवार को सुबह के सत्र में पुस्तकालय के युवा छात्रों के लिए लघु फिल्म पर आधारित आशु भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इसमें छात्रों को शॉर्ट फिल्म द मिनिएचरिस्ट ऑफ जूनागढ़ दिखाई गई।
इस फिल्म पर आधारित निर्धारित तीन मुख्य सवालों में से किसी एक सवाल पर छात्रों से त्वरित जबाब मांगे गये। इनमें से छात्रों के तीन सर्वश्रेष्ठ जबाबों को निर्णायकों की समिति ने पुरुस्कार के लिए चयन किया।
निर्णायकों की समिति में इतिहासकार डॉ.योगेश धस्माना, सामाजिक कार्यकर्ती इरा चौहान व शिक्षाविद रेनू शुक्ला शामिल रहे। इस प्रतियोगिता में राहुल बिष्ट प्रथम, हिमानी डांगी द्वितीय व नादिश तृतीय स्थान पर रहे।
शाम के सत्र में संगीत, और चित्रकला पर आधारित फिल्मों के वृतचित्रों का प्रदर्शन किया गया।
इसमें सबसे पहले ‘बेगम अख्तर : जिक्र उस परिवश का’ दिखाई गई। निर्मल चन्दर द्वारा निर्देशित इस फिल्म की अवधि 64 मिनट रही। वृत चित्र का शीर्षक हिन्दुस्तानी गजलों की रानी बेगम अख्तर द्वारा गाई गई मिर्जा गालिब की गजल की पहली दो पंक्तियों से लिया गया है। फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ जीवनी व ऐतिहासिक पुनर्निर्माण के लिए वर्ष 2016 का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता है, साथ ही यह फिल्म सर्वश्रेष्ठ कैमरा पुरस्कार, आईडीएसएफएफके, केरल और जूरी पुरस्कार, आईएफएफएस, शिमला से भी पुरष्कृत हो चुकी है। यह फिल्म जीवन संबंधी वृत्तचित्र के स्थापित मापदंडों से परे पहुंचती है। यह फिल्म बेगम अख्तर को उनके नजदीकी प्रशंसकों के कथानकों के जरिये पुनर्जीवित करने का प्रयास करती है। इस फिल्म में उनकी कथात्मक व्याख्या उनके गहन गीतों के माध्यम से मुखरित होती है।
दूसरी प्रदर्शित वृतचित्र फिल्म ‘नोट्स ऑन गुलेर’ रही। 55 मिनट की अवधि की इस फिल्म को अमित दत्ता ने निर्देशित किया है। हिमांचल के गुलेर, कांगड़ा के समीप एक छोटी सी रियासत, 15वीं शताब्दी में अपनी स्थापना के बाद से एक कलात्मक और सांस्कृतिक केन्द्र का स्रोत रही थी। चित्रकार पंडित सेऊ, उनके पुत्र माणकू और नैनसुख और कवि ब्रजराज जैसे कई महान लोगों का जन्म इसी स्थान में हुआ था। कला को संरक्षित की वह प्रणाली जिसके तहत आर्थिक रूप से कठिन परिस्थितियों में भी ऊंचे प्रयास संभव रहे थे, वह आज समाप्त सी हो गई है। दुःखद बात है कि इस शहर का भौतिक परिदृश्य एक बांध के नीचे डूबा हुआ है। यह वृतचित्र पीछे छूट गए लोगों की यादों के माध्यम से डूबे हुए अतीत के कुछ निशानों को तलाशने में सफल दिखती है।
तीसरी प्रदर्शित वृतचित्र फिल्म की अवधि 13 मिनट की रही। ‘पिलग्रिम्स प्रोग्रेस’ शीर्षक से इस फिल्म के निर्देशक मोनिका देशवाल और सागर गुसाईं हैं। यह फिल्म देहरादून स्थित चित्रकार मोनिका तालुकदार के सौम्य पथ का मार्मिक वर्णन करती है। जैसा कि वे बताते हैं, यह अस्सी वर्षीय चित्रकार पूरी फिल्म में चित्रकारी करती है।
इस अवसर पर सभागार में निकोलस हॉफलैण्ड, बिजू नेगी, चन्द्रशेखर तिवारी, सुंदर सिंह बिष्ट, सहित अनेक फिल्म से जुड़े लोग, फिल्म प्रेमी, लेखक, साहित्यकार, साहित्य प्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्विजीवी, पुस्तकालय के सदस्य तथा बड़ी संख्या में युवा पाठक उपस्थित रहे।

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