Thursday, December 26, 2024
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योग केवल विषय नहीं अपितु सम्पूर्ण जीवन पद्धति है: स्वामी रामदेव

हरिद्वार 13 नवम्बर (कुल भूषण शर्मा) हमारी परम्परा महर्षि पतंजलि, चरक, सुश्रुत व धन्वन्तरि की परम्परा रही है तथा हम इन्हीं की परम्परा के वंशज व ऋषि परम्परा के संवाहक हैं। उक्त उद्गार महर्षि धन्वन्तरि की जयन्ती के उपलक्ष्य में पतंजलि योगपीठ-। स्थित यज्ञशाला में आयोजित कार्यक्रम के दौरान योगऋषि स्वामी रामदेव ने व्यक्त किए। स्वामी रामदेव तथा आचार्य बालकृष्ण ने समस्त देशवासियों को महर्षि धन्वन्तरि जयन्ती की शुभकामनाएँ दी।

स्वामी  jkenso  ने कहा कि योग केवल एक विषय नहीं है अपितु सम्पूर्ण जीवन पद्धति है। योग करने वालों का चरित्र, दृष्टि, आचरण, वाणी तथा व्यवहार शुद्ध व पवित्र होता है। उन्होंने कहा कि पतंजलि ने 20 करोड़ लोगोें को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से योग की दीक्षा दी है और लगभग 400 करोड़ लोगों को योग से जोड़ने के लिए हम संकल्पित हैं। पतंजलि के माध्यम से योग के साथ-साथ पूरे विश्व में आयुर्वेद का डंका बजने वाला है। सफेद दाग, हेपेटाइटिस-ए, बी, सी तथा लीवर सिरोसिस जैसे असाध्य रोगों का उपचार पतंजलि ने खोज लिया है जिसका लाभ आने वाले समय में पूरा विश्व लेगा। पतंजलि ने घुटनों की असहनीय पीड़ा का उपचार भी चूहों पर गहन अनुसंधान कर पीड़ानिल गोल्ड के रूप में खोज निकाला है। अभी तक इस बीमारी को लाइलाज बताकर एलोपैथ चिकित्सकों ने आर्थिक लूट की है।

इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि आज आयुर्वेद के अवतार पुरुष महर्षि धन्वन्तरि की जयन्ती है। आज का दिन हमारे लिए परम स्मरणीय व वैभवशाली है। हम आयुर्वेद परम्परा के संवाहक हैं। उन्होंने कहा कि पतंजलि के माध्यम से सृजन के अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य किए जा रहे हैं जिनमें आयुर्वेद का संरक्षण-संवर्धन व प्रचार-प्रसार मुख्य है। आयुर्वेद के संरक्षण व संवर्धन हेतु सम्पूर्ण विश्व में जो भी कार्य किए जा रहे हैं उनमें पतंजलि का विशेष योगदान है। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव तथा उपचार हेतु कोरोनिल आज पूरे विश्व में अपना लोहा मनवा रही है। आधुनिक विज्ञान ने भी कोरोनिल के चमत्कार को माना है। अंतर्राष्ट्रीय जनरल डवसमबनसमे में कोरोनिल का रिसर्च पेपर प्रकाशित हो चुका है। कोरोना वायरस के शरीर में प्रवेश के उपरान्त कोरोनिल के चमत्कारिक प्रभावों से आज पूरी मानव जाति लाभान्वित हो रही है।

आचार्य    बालकृष्ण ने कहा कि अमृत की बूंदें जहाँ-जहाँ गिरी वहाँ गिलोय उत्पन्न हो गई, इसलिए इसे अमृता भी कहा जाता है। जिस गिलोय के विषय में कोई जानता नहीं था आज उसके औषधीय गुणों के कारण पूरी दुनिया उसे ढूँढ रही है।

कार्यक्रम में महामण्डलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद महाराज, कमलदास महाराज, पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डॉ0 महावीर, मुख्य महाप्रबंधक ललित मोहन, पतंजलि अनुसंधान संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ0 अनुराग वार्ष्णेय पतंजलि विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक वी.सी. पाण्डेय, बहन साधना के साथ-साथ पतंजलि आयुर्वेद व पतंजलि विश्वविद्यालय के प्राध्यापकगण व छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे।

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