Friday, May 3, 2024
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अयोध्या आंदोलन की नायिका साध्वी ऋतंभरा के आंखों में आंसू के पीछे की क्या है कहानी….

अयोध्या, आखिर 22 जनवरी को वो तारीख आ ही गई, जिसका इंतजार कई पीढ़ियों से किया जा रहा था। ये माना जा रहा था कि हमारे राम लला कब अपने भव्य, दिव्य और नव्य मंदिर में विराजमान होंगे। हिंदुस्तान में अगर हम बात करे सनातन धर्म की तो प्रभु श्री राम इतिहास हैं, वर्तमान हैं, श्रद्धा हैं, आस्था हैं और कहीं न कहीं आज के दौर में सियासत के केंद्र में भी हैं। समारोह में राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा भी शामिल हुईं। इस दौरान, अपने सपने को साकार होते देख दोनों एक-दूसरे से मिलते ही रो पड़ीं और नम आंखों के साथ गले मिलीं। साध्वी ऋतंभरा राम मंदिर आंदोलन में अग्रणी की भूमिका में रही। एक वक्त था जब इनके ओजस्वी भाषण से राम भक्त हजारों-हजार की संख्या में भागे चले आते थे। राम मंदिर आंदोलन के बाबरी मस्जिद-पूर्व चरण में साध्वी ऋतंभरा एक फायरब्रांड हिंदुत्व नेता थीं। वह अयोध्या राम जन्मभूमि अभियान के पहचाने जाने योग्य महिला चेहरे के रूप में थीं। उनके भाषणों के ऑडियो कैसेट खूब बिके।

निशा को कैसे मिला नया नाम और काम :

पंजाब के लुधियाना में जन्मी निशा ने केवल 16 साल की आयु में भगवा चोला ग्रहण कर लिया। हरिद्वार के गुरु परमानंज गिरी ने उन्हें साध्वी जीवन का नया नाम ऋतंभरा दिया। वर्तमान दौर में भी साध्वी ऋतंभरा की वाणी में ऐसा तेज है कि वो सुनने वालों में एक गजब की ऊर्जी भर देती हैं। अपने युवा अवस्था में जब साध्वी ऋतंभरा बोलती थी कि ऐसा प्रतीत होता था कि मानो युद्धभूमि में तलवारों की टंकार गूंज रही हो। कोई डर नहीं, कोई संशय नहीं। इसलिए दिल की बात बेझिझक जुबां पर आ जाती थी। 1980 के दशक में विहिप ने अयोध्या में राम जन्मभूमि पर राम मंदिर के निर्माण को लेकर आंदोलन चलाया तो इससे देश भर के साधु संतों का जुड़ाव होने लगा। साध्वी ऋतंभरा देखते ही देखते राम मंदिर आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा बन गई। इससे पहले वो आरएसएस की महिला संगठन राष्ट्रीय सेविका समिति से जुड़ी थीं। 1990 में जब अयोध्या आंदोलन ने जोर पकड़ा तो साध्वी घर-घर जाने लगी। 6 दिसंबर, 1992 को जब बाबरी विध्वंस हुआ तो वो अयोध्या में ही थी।

दिग्विजय सरकार ने भेजा जेल :

बाबरी विध्वंस के तीन साल ही हुए थे जब मध्य प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने साध्वी ऋतंभरा को गिरफ्तार करवा दिया था। दिग्विज सिंह की सरकार ने इंदौर की ईसाई मिशनरियों के हिंदुओं के धर्म परिवर्तन के खिलाफ जनसभा करने आई साध्वी ऋतंभरा को भड़काऊ भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था। बाद में हाई कोर्ट से 11 दिन जेल में रहने के बाद उन्हें रिहा किया गया।

गली-गली गूंजता था ऋतंभरा का भाषण :

राम मंदिर आंदोलन के दौरान साध्वी ऋतंभरा के भाषणों ने अलग माहौल बनाया। दोनों नेताओं के भाषण के ऑडियो कैसेट उस वक्त बनाए जाते थे। हिंदू वर्ग के बीच इन कैसेटों को बांटा जाता था। विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस और बीजेपी कार्यकर्ता गुपचुप तरीके से इन कैसेटों को लोगों को पहुंचाते थे। उनके भाषण का ऐसा प्रभाव था, जिसने हिंदुओं को राम के प्रति आकर्षित किया। लोगों में राम मंदिर निर्माण को लेकर एक अलग भावना पैदा हुई। आज वो अयोध्या पहुंची तो उनकी आंखों में संकल्प से सिद्धि की खुशी साफ नजर आई(साभार प्रभासाक्षी)।

 

बेटी को किया गया प्रताड़ित, पाक से मिली धमकियां, जिस जज ने खुलवाया राम जन्मभूमि का ताला जानें उनकी अनसुनी कहानी

 

अयोध्या, गर्भगृह का ताला किसने खुलवाया था ये ऐसा सवाल है जिसके जवाब में बहुत लोग कहेंगे कि जज साहब ने खुलवाया था या प्रशासन ने खुलवाया था। लेकिन अगर आपको कहूं कि ताला एक बंदर ने खुलवाया था तो आप हंस पड़ेंगे। फैजाबाद जिला जज रहे कृष्णमोहन पांडेय ने विवादित ताला खोलने का फैसला दिया था। जब वो फैसला लिख रहे थे तो उनके सामने एक बंदर बैठा था। उसकी भी बड़ी दिलचस्प कहानी है। जिसका जिक्र आगे करेंगे। पहले आपको बताते हैं कि 1 फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा की इजाजत दे दी। इस घटना के बाद मुसलमानों ने वहां नमाज पढ़ना बंद कर दिया। इस घटना के बाद नाराज मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया। फैजाबाद के जिला न्यायाधीश के फैसले के चालीस मिनट के भीतर राज्य सरकार उसे लागू करा देती है। यानी शाम 4.40 पर अदालत का फैसला आया और 5.20 पर विवादित इमारत का ताला खुला।

 

काशी हिंदू विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक :

1932 को जन्मे कृष्ण मोहन पांडेय ने मार्च 1960 में एडीशनल मुंसिफ के तौर पर नौकरी शुरू की थी। वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक थे। पीसी (न्यूडिशियल) परीक्षा 1959 के टॉपर थे। विभिन्न जिला अदालतों में अलग-अलग पदों पर रहते हुए 17 अगस्त 1985 को फैजाबाद के डिस्ट्रिक्ट जज बने। इस फैसले के बाद उन्हें कम महत्व के स्टेट ट्रांसपोर्ट अपील प्राधिकरण का चेयरमैन बना दिया गया था। केएम पांडेय के जब हाई कोर्ट में जज बनाने की बात चली तो वीपी सिंह की सरकार ने पेंच फंसा दिया। इनकी फाइल में प्रतिकूल टिप्पणी कर दी गई। मुलायम सिंह यादव ने भी उनके जज बनने का विरोध किया। इसके बाद चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने और उनकी सरकार में कानून मंत्री सुब्रहम्णयम स्वामी बने। चंद्रशेखर सरकार ने केएम पांडेय के हाई कोर्ट जज बनने की फाइल फिर से खोली।

सुब्रहमण्यम स्वामी के अनुसार वीपी सिंह और उनके ताकतवर अधिकारी भूरेलाल केएम पांडेय को हाईकोर्ट का जज बनाने के खिलाफ थे। वहीं उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भी अपने मुस्लिम जनाधार को देखते हुए पांडेय को जज नहीं बनने देना चाहते थे। केएम पांडेय की फाइल में राज्य सरकार ने लिख दिया था कि इन्होंने 1986 में बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाने का विवादित फैसला दिया था। इसलिए इन्हें हाई कोर्ट का जज नहीं बनाया जाए। मुलायम सिंह यादव ने अपने नोट में लिखा था कि पांडेय जी सुलझे हुए ईमानदार तथा कर्मठ जज हैं। फिर भी 1986 में राम जन्मभूमि का ताला खुलवाने का आदेश देकर इन्होंने सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा की थी। इसलिए मैं उनके नाम की सिफारिश नहीं करता।

बेटी को भी किया प्रताड़ित :

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कृष्ण मोहन पांडेय के फैसला सुनाने के बाद उनती बेटी को भी प्रताड़ित किया गया। वो उस समय केजीएमसी मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी। जब क्लास में सबको पता चला कि ताला खोलकर पूजा पाठ करने की अनुमति देने का फैसला उनके पिता का है तो उन्हें एक वर्ग द्वारा बहुत परेशान किया गया। हालत ऐसी कर दी गई कि उन्हें कई पेपर छोड़ने की स्थिति बन गई। आदेश के बाद जज कृष्ण मोहन पांडे के लखनऊ स्थित आवास पर धमकी भरे दर्जनों पत्र आए थे। उन्हें पाकिस्तान तक से धमकी मिलने लगी थी। इस धमकी में कई मुस्लिम देशों का नाम भी सामने आया था।

सुब्रमण्यम स्वामी ने लड़ी लड़ाई :

चंद्रशेखर सरकार में कानून मंत्री रहे सुब्रहमण्यम स्वामी ने इस बारे में कहा था कि मुलायम सिंह के दो-तीन काम मेरे मंत्रालय में फंसे थे, जिन्हें वे केंद्र सरकार से कराना चाहते थे। स्वामी की सक्रियता को देख मुलायम सिंह को लगने लगा कि स्वामी हर हालत में केएम पांडेय को हाई कोर्ट का जज बनवाकर ही रहेंगे। आखिरकार 24 जनवरी 1991 को केएम पांडये को इलाहाबाद हाई कोर्ट का जज बनाया गया। लेकिन एक महीने के भीतर यानी 22 फरवरी 1991 को उनका ट्रांसफर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट कर दिया गया। हाई कोर्ट से ही 28 मार्च 1994 को न्यायमूर्ति केएम पांडेय रिटायर हुए।

बंदर ने खुलवाया ताला

जज कृष्णमोहन पांडेय ने 1991 में छपी अपनी आत्मकथा में लिखा है कि जिस रोज मैं ताला खोलने का आदेश लिख रहा था तो मेरी अदालत की छत पर एक काला बंदर पूरे दिन फ्लैग पोस्ट को पकड़कर बैठा रहा। वे लोग जो फैसला सुनने के लिए अदालत आए थे, उस बंदर को फल और मूंगफली देते रहे। पर बंदर ने कुछ नहीं खाया। मेरे आदेश सुनाने के बाद ही वह वहां से गया। फैसले के बाद जब डी.एम. और एस.एस.पी. मुझे मेरे घर पहुंचाने गए, तो मैंने उस बंदर को अपने घर के बरामदे में बैठा पाया। मैंने उसे प्रणाम किया। वह कोई दैवीय ताकत थी(साभार प्रभासाक्षी)।

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