देहरादून, दिल्ली के इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरमेंट सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (आईफोरेस्ट ) ने ठोस एवं प्लास्टिक के कचरे के निस्तारण एवं प्रबंधन को लेकर रिपोर्ट जारी की है। संस्थान की ओर से इस दिशा में इस तरह का पहला शोध किया गया है। यह अध्ययन उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार और ऋषिकेश शहरों में किया गया।
वर्तमान समय में देश-दुनिया में कचरा प्रबंधन खास तौर पर प्लास्टिक के कचरे का निस्तारण एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। आईफोरेस्ट के सीईओ चंद्रभूषण ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि इस अध्ययन के माध्यम से कचरे की सूची बनाने के लिए एक मजबूत कार्यप्रणाली को विकसित किया जा सकता है। देश की नगरपालिकाओं में कचरा प्रबंधन के लिए यह पद्विति निश्चित तौर पर कारगर साबित होगी। संस्थान के डा0 प्रशांत ने कचरा प्रबंधन की दिशा में तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस पद्वित के द्वारा विभिन्न नगर पालिकाओं से प्लास्टिक कचरे से प्राप्त होने वाले आंकड़ों को आधार बनाया जा सकता है। डा0 अशोक घोष ने अपशिष्ट सूची की योजना प्रक्रिया में एकीकृत करने की बात कही। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि प्लास्टिक के कचरे के निदान के लिए इस दिशा में और अधिक शोध करने की जरूरत हैै।
अध्ययन में पाया गया कि हरिद्वार व ऋषिकेश प्लास्टिक कचरा सूखे कचरे का एक बड़ा हिस्सा है।
ऋषिकेश में यह करीब 37 फीसदी और हरिद्वार में यह मात्रा 31 फीसदी पाई गई। हरिद्वार में प्लास्टिक कचरे का 19 फीसदी हिस्सा अप्रबंधित है जिसमें से 13 फीसदी कचरे को जला दिया जाता है। चौंकाने वाली बात है कि इस कचरे के 30-35 फीसदी भाग को जल निकायों में फेंक दिया जाता है।
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