बदरीनाथ, । वामन द्वादशी पर देश के अंतिम गांव माणा के पास स्थित माता मूर्ति मंदिर में शनिवार को जब भगवान बदरी नारायण का अपनी माता मूर्ति से मिलन हुआ, तो श्रद्धालुओं के नेत्र भी सजल हो उठे। मां से मिलने के बाद भगवान नारायण फिर बदरीनाथ धाम लौटकर बदरीश पंचायत में विराजमान हो गए। माता मूर्ति महोत्सव के दौरान मंदिर के कपाट पांच घंटे तक बंद रहे।
कोरोना संक्रमण के चलते महोत्सव सादगी से मनाया गया। बदरीनाथ धाम से दो किमी दूर और माणा गांव से एक किमी पूर्व अलकनंदा नदी के बायें तट पर माता मूर्ति का पौराणिक मंदिर है। वामन द्वादशी पर हर साल भगवान नारायण उनसे मिलने जाते हैं। भगवान का अपनी मां से होने वाला यह मिलन भावुक कर देने वाला होता है, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते इस बार उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड की ओर से मात्र 20 व्यक्तियों को ही महोत्सव में शामिल होने की अनुमति दी गई थी। सुबह दस बजे भगवान नारायण के प्रतिनिधि के रूप में उनके बालसखा उद्धवजी ने डोली में विराजमान होकर मुख्य पुजारी रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी के संरक्षण में बदरीनाथ धाम से माता मूर्ति मंदिर के लिए प्रस्थान किया।
डोली यात्रा के रवाना होते ही मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए। यात्रा के माता मूर्ति मंदिर पहुंचने पर रावल की मौजूदगी में धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल और सहयोगी वेदपाठियों ने माता मूर्ति की पूजा संपन्न कराई। फिर माणा गांव के श्रद्धालुओं ने प्रसाद का भोग लगाया। मंदिर में ही भगवान नारायण को दोपहर का भोग भी लगा। दो घंटे मां के सानिध्य में बिताने के बाद उद्धवजी की डोली वापस बदरीनाथ धाम पहुंची और दोपहर बाद तीन बजे धाम के कपाट खोल दिए गए। पहली बार महोत्सव के दौरान न तो सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए और न भंडारे का आयोजन ही। इस मौके पर अपर धर्माधिकारी सत्यप्रसाद चमोला, देवस्थानम बोर्ड के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी बीडी सिंह, मंदिर अधिकारी राजेंद्र सिंह चौहान, विपिन तिवारी, पं. मोहित सती, सतेंद्र सिंह नेगी आदि उपस्थित रहे।
अब रावल कर सकेंगे बदरीशपुरी का भ्रमण
बदरीनाथ धाम के रावल अभी तक अपने निवास से मंदिर तक ही आ-जा सकते थे। यहां तक कि इस क्षेत्र से बाहर वे जल ग्रहण भी नहीं कर सकते थे। लेकिन, माता मूर्ति महोत्सव संपन्न होने के बाद रावल अब संपूर्ण बदरिकाश्रम क्षेत्र में आवागमन कर सकते हैं।
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