Monday, November 25, 2024
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कुमाऊं में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार कुकुड़ी-माकुडी

(हरीश पाण्डे) दन्या अल्मोड़ा।  इन दिनों कुमाऊं क्षेत्र में कुकुड़ी-माकुडी का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है  भाद्र मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी व अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला यह त्यौहार कुमाऊं अंचल के विभिन्न हिस्सों में कही सातूं आठू तो कहीं कुकुडी माकुडी,डोर दुबडा के नाम से मनाया जाता है।

कुमाऊं में सुहागिन स्त्रियां सप्तमी व अष्टमी तिथि को प्रात:का उठकर स्नानादि करके व्रत करती है।तत्पश्चात फूल घास लाकर उसे गौरा माहेश्व का रुप देते हुए स्वच्छ वस्त्र धारण व आभूषण पहनाती है। यह व्रत सन्तान प्राप्ति के लिए रखा जाता है तथा सन्तान प्राप्ति हेतु यह व्रत सबसे उत्तम माना गया है। पौराणिक गाथाओं के अनुसार एक बार गौरा अपने पति महेश्वर से रुठ कर अपने मायके चली गई तो महादेव गौरा को मनाने उनके मायके पहुंच गए महेश्वर के मनाने के बाद मां गौरा अपने प्राणनाथ के साथ अपने घर जाने को तैयार हुई,

तब मायके वालों ने भजन संध्या गायन के साथ गौरा को विदा किया।माना जाता है मां गौरा का मायका भी देवभूमि उत्तराखंड में ही है इस कारण सप्तमी व अष्टमी दोनों दिन उत्तराखंड की महिलाएं गौरा महेश्वर को बारी बारी से गोदी में झुलाकर लोरी गायन के साथ विदा करती है।इस तरह की परम्परा कुमाऊं में प्राचीन काल से ही चली आ रही है।आज के आधुनिक युग में कुछ पर्व सिर्फ नाममात्र रुप में रह गई है किन्तु विशेष कर महिलाओं से जुड़ा होने के कारण यह पर्व अभी प्राचीन सभ्यता के रुप में ही जिवित है।

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