Thursday, December 26, 2024
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उत्तराखण्ड स्थापना के दो दशकोेेेें का सफर

हरिद्वार (कुल भूषण शर्मा)
09 नवम्बर 2000 का दिन लम्बे समय से अलग राज्य उत्तराखण्ड की मांग कर रहे आन्दोलनकारियो के लिए एक नये उत्साह का संचार लेकर आया। इस दिन केन्द्र की भाजपा शासित अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने लम्बे समय से अलग पर्वतीय राज्य की मांग कर रहे आन्दोलनकारियो की मांग को पूरा करते हुए उत्तर प्रदेश से हिमालयी पर्वतीय क्षेत्र को अलग कर उत्तराचंल राज्य कि घोषणा कर अलग राज्य स्थापित किया ।

तत्कालीन उत्तर प्रदेश स्थित सुदूर हिमालयी पर्वतीय क्षेत्रो में निवास करने वाले लोगो ने राज्य की स्थापना को लेकर लम्बा संघर्ष किया था जिसके पीछे उनका उददेश्य इन क्षेत्रों में रहने वाली जनता की समस्याओ का समाधान करा उनके लिए इस क्षेत्र में विकास के आयाम स्थापित करना था जिससे की सालो से रोजगार व आजीविका के अभाव में यहा पर निवास करने वाले लोग बडी संख्या में यहा से बडे शहरों में पलायन कर रहे थे तथा सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा के उचित अवसर उपलब्ध होना नही था जिसके चलते यहा निवास करने वाले लोगो का एक बडा वर्ग अशिक्षित व पिछडा रह गया था क्षेत्र व क्षेत्र में निवास करने वाले लोगो के विकास की कल्पना ही इस राज्य की स्थापना के मूल में छिपा था ।
अपनी स्थापना के बीस वर्ष पूरे कर यह राज्य आज अपने यौवन के इक्कीसवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। ।

राज्य स्थापना के बीस साल के लम्बे अन्तराल के दौरान इस राज्य के सुदूर स्थित पर्वतीय क्षेत्रों की समस्याए जस की तस बनी हुयी है अगर पिछले बीस साल के सफर पर नजर डाले तो राज्य गठन के बाद तेजी से पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन बढा है जल, जंगल ,जमीन को बचाने के लिए संर्घष करने वाली यहॉ की जनता की भावनाओ पर मानो कुठाराघात करते हुए अभी तक की सरकारो ने यहा के जंगलो व वनो तथा प्राकृतिक वातावरण का विकास कार्यो के नाम पर जमकर दोहन किया है।

राज्य के आम निवासी के जीवन स्तर पर राज्य गठन के बाद विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा किये जा रहे कार्यो के सुदूर क्षेत्रों मे धरातल पर प्रभाव देखने को नही मिल रहा है जिसके चलते राज्य गठन के बीस साल बाद भी राज्य के पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रो से लोगो के पलायन का क्रम निरन्तर जारी है राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों से लगे गाव के गॉंव खाली होते जा रहे है जो सुरक्षा की दृष्टि से भी एक गंभीर चिन्तन का विषय है।
राज्य स्थापना के बीस साल का लम्बा समय निकल जाने के बाद भी राज्य आर्थिक रूप से अपने को मजबूत करने मे विफल रहा है आज भी राज्य सरकार केन्द्र सरकार के द्वारा दिये जाने वाले आार्थिक पैकेज पर निर्भर है। जिसका मुख्य कारण यहा के नेताओ में दूरगामी विकासवादी सोच का अभाव होना है।।

राज्य आन्दोलन मंे सक्रिय महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला क्षेत्रीय संगठन उत्तराखण्ड कं्रान्तिदल जिसके नेतृत्व में यहा के लोगो ने राज्य प्राप्ति के लिए लम्बा संघर्ष किया राज्य गठन के बाद राज्य की राजनीति में क्षेत्र की जनता पर पकड बनाने में सफल नही हो पाया इसके मूल में क्या कारण रहे इन पर चिन्तन होना चाहिए। राज्य के लोगो के पास राज्य में राजनैतिक विकल्प नही होने के चलते राज्य गठन के बाद से लगातार राज्य में सत्ता की चाबी कांग्रेस व भाजपा जैसे राजनैतिक दलो के पास रही है जिनका राज्य गठन के आन्दोलन में कभी सक्रिय योगदान नही रहा । जिसके चलते राज्य गठन के बाद लगातार यह पर निवास करने वाले लोग खुद को ठगा महसूस कर रहे है।।

राज्य आन्दोलन से जुडे सत्य प्रसाद भटट का कहना है की राज्य निर्माण की कल्पना को लेकर पर्वतीय सुदूर क्षेत्रो में रहने वाले लोगो ने इसके आन्दोलन को गति देने में अपना जीवन आहुत कर दिया उनका सपना था कि आने वाले समय में उनके बच्चो को रोजगार के लिए अपने मूल जन्म स्थान को छोडकर यहा से दूर न जाना पड़े तथा यहा की वन तथा जल सम्पदा का बेहतर ढंग से उपयोग कर वह अपने जीवन को बेहतर व सहज ढंग से जीवन यापन कर सके परन्तु वर्तमान दौर में बीस साल बीतने के बाद उनके स्वप्न कही दूर तक पूरे होते नही दिखायी दे रहे है।।

वर्तमान समय में प्रदेश में बहुत बडी संख्या में लोग अपने को आन्दोलनकारी बताकर सरकारी पेंेशन पाने तक ही सीमित होकर रह गये । जबकी राज्य आन्दोलन में बहुत से लोगो ने अपना सब कुछ आहुत कर दिया उनका उददेशय राज्य प्रप्ति के बाद यहा के सुदूर पिछडे क्षेत्रों मे रह रहे लोगो को जीवन यापन के बेहतर अवसर व संसाधन उपलब्ध कराना था जिससे की वह अपने क्षेत्र में ही रहकर बेहतर जीवन यापन कर सके।। परन्तु आज राज्य गठन के बीस साल बाद भी प्रदेश का आम आदमी अपने को ठगा महसूस कर रहा है इन बीस सालों में यदि किसी का वास्तविक विकास हुआ है तो वह राज्य के नेता व सरकारी अफसरो की फौज जिन्होने राज्य विकास के नाम पर अपना व अपने नजदीकियो को सरकारी योजनाओ का लाभ दिलाकर उनका विकास किया है। । सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले आम आदमी के लिए तो बीस साल पहले की स्थिति व आज की वर्तमान स्थिति में उसके जीवन यापन में कोई अन्तर नही आया है।।

राज्य आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले आन्दोलन में फिल्ड मार्शल के नाम से पहचाने जाने वाले उत्तराखंण्ड क्रान्तिदल के केन्द्रीय अध्यक्ष दिवाकर भटट कहते है कि लम्बे आन्दोलन व संघर्ष के बाद उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के नेतृत्व में लडाई लड़ने के बाद सन 2000 में अलग राज्य उत्तरांचल प्राप्त हुआ जिसकी कल्पना को लेकर आन्दोलनकारियो ने लम्बा संघर्ष किया। आन्दोलन से जुडे संस्मरणों को याद करते हुए दिवाकर भटट कहते है कि 1965 से सूदूर पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगो द्वारा अलग राज्य की मांग को लेकर ‘ाुरू हुए आन्दोलन को चलाने में कई लोगो ने कडा संघर्ष किया । उत्तराखण्ड क्रान्तिदल द्वारा राज्य आन्दोलन को लेकर मंसूरी में 25 जुलाई 1979 में श्रीदेवसुमन की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम से राज्य आन्दोलन में नई ऊर्जा का संचार हुआ उन्होने कहा की हमने 1994 में खेर पर्वत पर आन्दोलनरत्त लोगो के साथ धरना दिया तो तत्कालीन केन्द्र सरकार ने अधिकृत रूप से आन्दोलनकारियो को वात्र्ता के लिए आमंत्रित किया।

राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड की राजनीति में अपनी पकड बनाने में सफल नही हो पाने के बारे में जीवन के लगभग सात दशक पार कर चुके दिवाकर भटट की आखो में आती तेज चमक कहती है की आज भी उन दिनो को याद कर ‘ारीर में नई ऊर्जा का संचार हो जाता है वह कहते है की राज्य प्रप्ति के लिए हमने लम्बा संर्घष किया है हमारा उददेशय राज्य प्राप्ती करना था जिसके लिए हमने लम्बा संघर्ष किया परन्तु राज्य गठन के बाद राज्य को नई दिशा देने व आन्दोलनकारियो के स्वप्नो के अनुरूप राज्य को आगे ले जाने में कही हमसे चूक हो गयी जिसके चलते आन्दोलनकारियो की कल्पना के राज्य का निर्माण कही पीछे छुट गया है।। राज्य गठन के बाद प्रदेश में बनी सरकारो की कमान भाजपा व कंाग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलो के हाथ में है।।

ऐसे में हमें वर्तमान में राज्य की पहचान को बचाने के लिए एक नई लडाई लडने की पुनः ‘ाुरूवात करने की जरूरत है जिसकी जिम्मेदारी हम पर है हमने राज्य निर्माण के लिए संघर्ष को जिया है जिसके लिए एक बार फिर हम प्रदेश की जनता के बीच जायेगें। इसके लिए उन्होने राज्य के युवाओ से आहवान किया की वह राज्य आन्दोलनकारियो के स्वप्नो के राज्य की कल्पना को पूरा करने के लिए आगे आये उन्होने कहा की जो राज्य व युवा अपनी संस्कृति व प्राचीन धरोहर को भूल जाते है उन्हे इतिहास कभी माफ नही करता है । राज्य में होने वाले 2022 के विद्यान सभा चुनावों में प्रदेश के राजनैतिक पटल पर अपनी जमीन तलाशने वाली उत्तराखण्ड क्रान्ति दल राज्य की सभी सत्तर सीटो पर नई ऊर्जा के साथ मैदान में उतरेगी तथा मजबूती के साथ अपनी नीतियो को लेकर प्रदेश की जनता के बीच जायेगी उन्होने कहा की उत्तराखण्ड को आन्दोलनकारियो के स्वप्नो के अनुरूप धरातल पर उतारने के लिए यहा के मूल लोगो को आगे आकर कार्य करना होगा इस राज्य के प्रति जितना लगाव इसके निर्माण में योगदान देने वालो से अधिक राजनैतिक दलो के नेताओ को नही है वर्तमान में प्रदेश की राजनीति में सक्रिय राजनैतिक दलो का राज्य निर्माण में कितना योगदान रहा है यह किसी से छिपा नहीं है।।


वही राज्य के विकास को लेकर सिडकुल मैन्युुफैक्चर्स एसोसिएशन के महामंत्री राज अरोडा का कहना है कि राज्य गठन से पूर्व उ0 प्र0 के इस पर्वतीय क्षेत्र की पहचान देवभूमि के रूप में थी राज्य गठन के बाद राज्य की आर्थिक स्थिति को मजबूत आधार देने के लिए सिडकुल की स्थापना में दूरदशीर्। तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहा किया आज उनके द्वारा स्थापित किया गया सिडकुल प्रदेश को मजबूत आर्थिक आधार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सिडकुल स्थित औद्योगिक क्षेत्र में हीरो र्कोपस ,एकम्स जैसे महत्वपूर्ण प्लांट यहा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है फार्मा के क्षेत्र में एकम्स देश के कुल उत्पादन का दस प्रतिशत यहा उत्पादन कर रहा है वही हीरो र्कोपस द्वारा प्रतिदिन दस हजार मोटर साईकिलो का उत्पादन किया जा रहा है राज अरोडा कहते है

कि राज्य गठन के बाद प्रदेश सरकार को टैक्स के रूप में जहा एक हजार करोड का सेल टैक्स प्राप्त हो रहा था वही वर्तमान दौर में वह बढकर पंाच हजार करोड हो गया है। उन्होने कहा कि हमारे यहा कुल उत्पादन की मात्र चार प्रतिशत ही खपत है जबकी छियानवे प्र्रतिशत उत्पादनो को देश के अन्य राज्यो में भेजा जाता है।। जिसके लिए पिछले काफी समय से सरकारो की उदासीनता के चलते उचित संसाधन उपलब्ध नही होने के चलते भारी परेशानी का सामना करना पड रहा है ।
राज अरोडा कहते है कि लम्बे समय से एसोसिएशन द्वारा सिडकुल में कन्टेनर डिपो खोलने कि मांग की जाती रही है जिसके नही होने के चलते भारी परेशानी का सामना करना पडता है जो लम्बे समय से लम्बित है। वही सिडकुल से माल बाहर भेजने के लिए यातायात व्यवस्था को लेकर भी भारी परेशानी का सामना करना पडता है अकेले हरिद्वार जनपद की ही बात करे तो साल भर में लगभग एक से डेढ माह तक यातायात व्यवस्था बिलकुल बन्द रहती है जिसमें हर साल कावड मेले में इस समस्या का सामना यहा की औद्यौगिक इकाईयो को करना पडता है जिससे काफी नुकसान उठाना पडता है।।

वही विभिन्न सरकारो की इच्छा ‘ााक्ति की कमी के चलते औद्योगिक प्रतिष्ठानो को आगे बढाने व उनकी मदद करने के लिए बनाये जाने वाली योजनाए मा़त्र घोषणाओ तक ही सीमित हो कर धरातल पर लागू होने से पहले ही फाइलो में दब कर रह जाती है। ऐसे में यदि समय रहते प्रदेश में लगी औद्योगिक ईकाईयो के लिए धरातल पर योजनाओ को लागू नही किया गया तो वह दिन दूर नही जब यहा लगी औद्यौगिक इकाईया घुटन के वातावरण में कही दबकर रह जायेगी। उन्होने कहा कि प्रदेश में बहुत से ऐसे संसाधन व प्राकृतिक स्त्रोत है जिनका सही उपयोग कर राज्य को विकास के पथपर ले जाने की अपार संभावनाओ को दरकिनारे नही किया जा सकता जरूरत है तो सिर्फ मजबूत इच्छा ‘ााक्ति की जिसकी कमी यहा के प्रबन्धन तंत्र व राजनैतिक तंत्र में देखी जा सकती है। यदि इन कमियो को मजबूत इच्छा ‘ााक्ति से दूर करने के प्रयास किये जाने तो हमारा प्रदेश देश के अन्य राज्यो से कई बेहतर स्थिति में अपने को आगे लाकर प्रदेश व देश के विकास में अपना योगदान देने में ंमहत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

 

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