हरिद्वार 16 अगस्त (कुल भूषण शर्मा) घी-त्यार के अवसर पर मानव अधिकार संरक्षण समिति के प्रांतीय अध्यक्ष हेमंत सिंह नेगी ने कहा कि हमारा देश प्राचीन काल से ही कृषि प्रधान देश रहा है । यहां पर कृषि किसान पशु तथा ऋतु से संबंधित अनेक पर्व मनाए जाते हैं। कोई पर्व खेती के परिपक्व होने व काटे जाने के वक्त तथा कोई पर्व खेती के बोने के समय पर मनाया जाता है। ये पर्व अलग-अलग राज्यों में वहां के ऋतु-परिवर्तन तथा वहां पर होने वाली फसल के हिसाब से मनाए जाते हैं । उत्तराखंड में भी ऋतु परिवर्तन के वक्त किसान पशु और फसलों को लेकर कई तरह के उत्सव मनाए जाते हैं। क्योंकि प्राचीन काल से यहां के लोगों का खासकर कुमाऊं के पहाड़ी भूभाग में लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि और पशु ही हैं।
ऐसा ही एक त्यौहार है घी-त्यार उत्तराखण्ड का एक लोक उत्सव है। उत्तराखंड में हिंदू कैलेंडर अनुसार संक्रान्ति को लोक पर्व के रूप में मनाने का प्रचलन रहा है। वर्षा ऋतु के बाद आने वाले इस त्यौहार में कृषक परिवारों के पास दूध व घी की कोई कमी नहीं होती हैं क्योंकि वर्षा काल में पशुओं के लिए हरा घास व चारा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता हैं। इसी कारण दुधारु जानवर पालने वाले लोगों के घर में दूध व धी की कोई कमी नहीं होती है। यह सब आसानी से वह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो जाता है और इस मौसम में घी खाना स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभदायक भी माना जाता है। यह शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है तथा बच्चों के सिर में भी घी की मालिश करना अति उत्तम समझा जाता है। बदलते समय में घी संक्रांति के इस त्यौहार का अस्तित्व लगभग खत्म हो गया है। क्योंकि अधिकतर लोगों ने पशुपालन व खेती करना छोड़ दिया है। लेकिन अभी भी उत्तराखंड के गांव में जो लोग कृषि का कार्य व पशुपालन का कार्य करते हैं वो इस त्यौहार को आज भी बड़े शौक से मनाते हैं।
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