Tuesday, November 26, 2024
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सोशल मीडिया पर खूब प्रशंसा बटोर रहा है, मैथिली ठाकुर द्वारा गाया गढवाली मांगल गीत

✒️हरीश कण्डवाल ‘मनखी’

जकल सोशल मीडिया में बिहार की बाला मैथिली ठाकुर द्वारा सुमधुर आवाज में गाया हुआ गढवाली मॉगल गीत खूब प्रशंसा बटोर रहा है। मैथिली ठाकुर ने जिस सुरीले अंदाज मेंं और जिस भाव के साथ गाया है, वह संगीत प्रेमियों के लिए एक आनंद दायी क्षण है। मैथिली ठाकुर ने गढवाली मॉगल को उसी तर्ज पर गाया है, जिस तर्ज पर गढवाली महिलायें गाती थी। यह वाकई मे गढवाली संस्कृति के लिए गौरव की बात है कि उनके यहॉ गाये जाने वाले मॉगलिक गीतों में वह आनन्द और मधुरता है कि बिहार की धरती में भी गुंजायमान हो गये हैं। यह इस बात को भी दर्शाता है कि हमारे लोकगीतों में कितना अपनापन और संस्कारों से परिस्कृत लोक गीत या मॅागल गीत है।

मैथिली ठाकुर ने जिस मॉगल गीत को आवाज दी है वह कन्या दान पर आधारित है, इसका मतलब यह हुआ कि जब उत्तराखण्ड में इन लोकगीतों या मॉगल गीतों को पिरोया गया होगा तब उन्होने कन्या का महत्व को समझ लिया था, तभी तो कन्या दान और गाय दान को सबसे बड़ा दान माना गया हैं। यह गीत उन कंदराओं मेंं उन लोगो द्वारा रचे गये जो समाज से कटे हुए थे, लेकिन उन्होने लोक संस्कृति को इस तरह से परिस्कित किया कि वह प्रकृति के साथ रहकर उसकी अहमियमत को समझा। देवभूमि उत्तराखण्ड में मांगलिक कार्यों में गाये जाने वाले मॉगल गीत इसी बात के द्योतक हैं, कि हमारे यहॉ शादी विवाह, या मुडंन के समय पहले मनोरंजन के लिए इस तरह के मॉगल गीत गाये जाते थे।

इन मॉगल गीतों में गणेश पूजा, बान देते समय, बान देने के बाद नहाते समय, बेदी बनाते समय, धूली अर्ग करते समय और फेरे फेरते समय अलग अलग मॉगल गीतों की रचना की गयी है। एक तरफ जहॉ सभी पंचों देवों का आहवान इन मॉगल गीतों में होता है, वहीं समाज की एकता का ताना बाना बुना नजर आता है। जब मॉगल गीतों में कौआ को भी महत्व दिया जाता है, वहीं तुलसी, गाय को भी महत्व दिया गया है, मॉगल गीतों में जितना महत्व पूजा करने वाले बा्रहमण को दिया गया है, उतना ही महत्व उस ढोल वादक कलाकार औजी को भी दिया गया है। जहॉ दुल्हन और दुल्हा को बान देने के बाद नहाते वक्त लक्ष्मी या गौरी और या नारायण का स्वरूप माना गया है। वहीं बेदी में स्तभ्भ पूजते समय गाये जाने वाले मंगलाचार गीतों में कन्या और उसके माता पिता का सुन्दर वार्तालाप दिखायी पड़ता हैं।

 

वरिष्ठ संस्कृति कर्मी श्रीमती शांति अमोली बिंजोला का कहना हें कि मांगल गीत हर संस्कारों के लिए बने हैं, नामकरण, जनेउ, मुंडन, शादी, आदि सभी मांगलिक अवसरों के लिए मॉगलिक गीतों के माध्यम से शुभकामनाये देने का प्रावधान किया गया है, यह मॉगल गीत सिर्फ मंगलाचार ही नहीं है, बल्कि इसमें भावनात्मक और संवदेना को जागृत करने वाले गीत है। श्रीमती शांति अमोली बिजोंला जी कहना है कि जब शादी होती है तो उसमें हमारी पहाड़ी संस्कृति में न्यूतेर से लेकर विदायी के तक के लिए अलग अलग मॉगल गीत रचे गये हैं, इन मॉगल गीतों में जिस देव भूमि में हम निवास कर रहे हैं, उसमें यह कण कण पर देवत्व का अहसास कराती है, और उस देवत्व का आभास हमारे मॉगल गीतों में स्पष्ट रूप से झलकता है।

वहीं आज जिस तरह से शादी विवाह में अब मॉगल गीत बहुत कम दिखाई देते हैं, हमारी संस्कृति पर भौतिकवाद का प्रत्यक्ष अतिक्रमण हो गया है, आज चकाचौंध और लोक दिखावे की संस्कृति फल फूल रही है, हमारा समाज अपनी मूल संस्कृति को छोडता चला गया, आज जहॉ मेंहदी के दिन कॉकटेल और नॉनवेज के बढते चलन ने तामसिक प्रवृत्ति को बढावा और दिखावा किया है, यह हमारी संस्कृति और समाज के लिए कैंसर का रूप बन रहा है, आज हमारे शादी विवाह से ढोल दमो सब विलुप्त होने जा रहे हैं। शादी में जहॉ लोग लाखों रूपये केवल दिखावे लिए लूटा रहे हैं, ताकि समाज उनकी अमीरी को देख सके, और समाज उस अमीरी की ढोंग मे खुद को झोक देता है, जबकि उसे मालूम है कि इसका परिणाम शून्य है।
मैथिली ठाकुर ने आज उत्तराखण्ड के समाज को चेताया है कि तुम्हारी संस्कृति में मॉगल गीतों में कितना अदम्य प्रेम और भावना भरी है, और तुम लोग इसे भुलाकर भौतिकवाद की तरफ बढ रहे हो अभी भी जाग जाओ, और अपनी संस्कृति पर गर्व करना सीखो, तुम्हारी संस्कृति के इन मॉगल गीतों में भाव ही नहीं बल्कि देवत्व का आर्शीवाद प्रत्यक्ष रूप से मिलता है, इन मॉगल गीतों में प्रकृति के संरक्षण और उसके संवर्द्धन के भाव गोचर होते हैं, वहीं संस्कृति को मजबूत करते हैं।

हमें मैथिली ठाकुर ने जगाया है कि आप लोग अपने इन मॉगल गीतों को केवल मनोरंजन के तौर पर मत देखीये बल्कि शादी विवाह में होने वाले अनायास खर्च करने के बजाय, मॉगल गीतों को गाने वाले कलाकारों को प्रोत्साहित करें, इससे मॉगल गीत ही नहीं फलेगें फूलेंगे बल्कि संस्कृति परिस्कृत होगी, अतः शादी विवाह में मॉगल गीत ही नहीं बल्कि हमारी संस्कृति से जुडी प्रथाओं को स्वीकार कर उनको परिस्कृत करना हमारा धेय बने। इसके साथ ही मैथिली ठाकुर ने जिस अंदाज और गढवाली शब्दों को शुद्ध और सुंदर उच्चारण किया है, यह भी सीखाता है कि हमें अपनी भावी पीढ़ी को अपनी लोकभाषा का महत्व बताना होगा, वरना हम बस केवल सोशल मीडिया पर ही ऐसे मॉगल गीतों को शेयर करते नजर आयेगें, और दीपक तले अंधेरा वाली कहावत को चरितार्थ करेंगे |

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