पूज्य मोरारी बापू ने संपन्न लोगों को गायों की सेवा में आय का दसवां हिस्सा लगाने के लिए प्रेरित किया
भगवान श्रीकृष्ण ने बाल रूप में जिस रेत पर लीलाएं की थीं उस पावन धरा-धाम में आयोजित रामकथा के पंडाल में महामंडलेश्वर स्वामी गुरु शरणानंदजी महाराज के सानिध्य में, आश्रम के विद्यार्थी तथा सीमित श्रोताओं के बीच आज पांचवें दिन की कथा का प्रारंभ हुआ। एक दिन विलंब से गोपाष्टमी की बधाई देते हुए व्यासपीठ से कहा गया कि गायों की पूजा के साथ-साथ गायों की सेवा जरूरी है। संपन्न लोगों को बापू ने अपनी आय का दसवां हिस्सा गायों की सेवा में लगाने के लिए प्रेरित किया। और कहा कि संपन्न लोगों को अपने आवास के पार्किंग में एक तरफ cow और एक तरफ car रखनी चाहिए और कहा कि जहां तक संभव हो पंचगव्य का सदुपयोग करें।
प्रेमी, रास नजर से जगत को देखता है, इस कथन के साथ आज ‘प्रेमसूत्र’ विषय का उद्घाटन करते हुए बापू ने कहा कि यदि हमारी आंखों में प्रेम का थोड़ा-सा अंजन लग जाए तो समग्र ब्रह्मांड एक रास ही है।
सूर्य, चंद्र, नक्षत्र आदि पूरा अस्तित्व नर्तन कर रहा है। जगत का प्रलय हो जाए पर महारास कभी बंद ना हो, यह गोपियों की मांग थी। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण और गोपियों का रास केवल भूगोल तक सीमित नहीं था, वह पूरे अस्तित्व का महारास था और त्रिभुवन में टेलीकास्ट हो रहा था। रास कब तक.. ऐसा राधाजी के पूछने पर ठाकुरजी ने बताया कि यह रास तब तक चलेगा जब तक आपके चरण की रेणु पूरे नभ मंडल और त्रिभुवन को आवृत न कर लें, ताकि यह रेणु सदा ज्ञात-अज्ञात चित्त को आकर्षित करती रहे।
कथा भी एक रास है कहकर बापू ने सभी को रास-रस से भर दिया। बापू ने आगे कहा की कोई भी महापुरुष करुणा करके धरती पर आते हैं तब परमात्मा उसके आस-पास के लोगों की मानसिकता भी ऐसी बना देते हैं कि वे सहयोग करने लगते हैं। कथा की सात्विक चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि बुद्धपुरुष के पास जाने से तीन वस्तु छूट जाती हैं -हृदय की ग्रंथियां छूटने लगती हैं, संशय छिन्न होने लगते हैं और कर्म की जाल समाप्त हो जाती है।
‘मानस’ से सीताजी, भरतजी और काकभुशुण्डि का दृष्टांत देते हुए बापू ने कहा कि कथा अमृत देती है,जिलाती है, कथा मरने नहीं देती। प्रेम के प्रकटीकरण के थोड़े और उपाय बताते हुए कहा कि प्रभु या बुद्धपुरुष के उदासीन शयन को देखकर प्रेम प्रकट हो जाता है। निषादराज का उदाहरण देते हुए कहा कि रामजी का शयन देखकर निषादराज में प्रेम प्रकट हो गया। दूसरा, किसी के सीधे-सादे नयन,वचन या लिबास को देख-सुनकर भी प्रेम प्रगट हो जाता है।
इस बीच बापू ने कोरोना के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि देश के कुछ प्रदेशों में कोरोना की दूसरी लहर फिर से आ रही है इसलिए सबको सोशल डिस्टेंस बनाए रखना है और मास्क का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करने के लिए कहा है। और कहा कि रमणबिहारी सब की रक्षा करेगा।
आखिर में, कथा का वास्तविक दौर आगे बढ़ाते हुए पार्वती की रामकथा सुनने की विनम्र जिज्ञासा और शिवजी के द्वारा रामकथा का मंगलाचरण सुनाया। राम वह तत्व है जो बिना पैर चलता है,बिना हाथ कर्म करता है। मुख न होते हुए भी सभी रस का भोक्ता है, जुबान ना होने पर भी बहुत बड़ा वक्ता है। बिना शरीर सब को छूता है। नयन के बिना सब देखता है। बिना घ्राणेन्द्रिय के बास ग्रहण करता है। ऐसी जिसकी अलौकिक करनी है, जिसकी महिमा वेद भी वर्णन नहीं कर सकते, वे कौशलपति राम हैं। आदि, मध्य और अंत में मूल तत्त्व की स्थापना करनी पड़ती है ऐसी रामकथा का प्रयोजन अपने भक्तों का हित ही है। इस तरह अध्यात्म के अनेक सुंदर पहलुओं को छूते हुए आज की रामकथा को विराम दिया गया।
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