मथुरा और महावन के बीच स्थित रमणबिहारी जी की रमणीक रमणरेती में राम-रति की वर्षा पिछले छः दिन से रामकथा के माध्यम से हो रही है। ‘मानस’ को केन्द्र में रखते हुए ‘प्रेमसूत्र’ का भगवद् संवाद चल रहा है। मोरारीबापू ने गत दिन की जिज्ञासा का अनुसंधान करते हुए कहा कि अनुराग की आंखों वाले प्रेमी, जगत को ‘रासमय’ देखता है और जगदीश को ‘रसमय’ देखता है। हनुमानजी का दृष्टांत देते हुए कहा कि ऐसा अनुरागी स्वयं को ‘दास’ के रूप में देखता है, सदा किंकरी भाव में रहता है।
इस चर्चा के सिलसिले में आगे कहा कि ज्ञानी पुरुष ब्रह्म-तत्व की ज्यादा चर्चा करते हैं जब कि भक्तों के पास प्रेम-तत्व होता है। ज्ञान और भक्ति दोनों जिसमें होता हैं उसके पास शिव-तत्व होता है। मन सीधा-साधा, वचन सीधे-साधे और जिसकी सभी करतूत सीधी, सहज,सरल हो वह विश्व विजयी बन जाता है। आगे कहा, साधु सरल भी होता है, सबल भी होता है और सजल भी होता है। ऐसे साधु-मन को जो समझ लेता है उसके पास बोध के सिवा कुछ नहीं बचता। भक्त हृदय सरलता और दीनता से भरा होता है।
कुरुराज सभा में द्रौपदी की दीनता का दृष्टांत देते हुए कहा कि दैन्य की चरम सीमा बहुत सफल हुआ करती है। और कहा, दीनता कायरता नहीं होती, कातर भाव होता है,जो व्रजांगनाओं में आया था। अति मति अर्थात् चतुराई को बापू ने प्रेमधारा को रोकने वाले तत्व बताया और कहा, प्रेम मार्ग होशियार लोगों का मार्ग ही नहीं है। श्रुति रूपी, ऋषि रूपी गोपीकाओं ने भी वृंदावन में आकर भोलापन कबूल कर लिया था। प्रेम-धारा का दूसरा बाधक तत्व बताया -भीति।और कहा, प्रेम करने वाला कभी डरेगा नहीं।
बापू ने गत दिन संपन्न लोगों को गायों की सेवा की अपील की थी। उसी बात को दोहराते हुए कहा, संपन्न लोग एक-दो गाय की जिम्मेदारी ले लें तो बहुत बड़ा काम हो सकता है। कलियुग कुछ करने का काल है। यहां कुछ करना होता है, कूद पड़ना होता है, निकल जाना होता है। ब्रजभूमि के प्रति अपना उत्कृष्ट भाव प्रकट करते हुए कहा कि ब्रज में रहना ही भजन है। किसी बुद्ध पुरुष के संनिकट बैठ जाना भी भजन है।
राम, कृष्ण और शिव के रूप और अवतार कार्य भिन्न होते हुए भी तीनों एक ही तत्व हैं ऐसा व्यासपीठ से कहा गया। बापू ने राम को सत्य स्वरूप, कृष्णा को प्रेम स्वरूप और शिव को करुणा स्वरूप बताया। तीनों के जीवन में हुई नौ प्रकार की यात्रा का वर्णन भी किया। सात्विक कथा की तात्विक चर्चा को रोककर कथा के वास्तविक दौर को रोज़ की तरह आगे बढाते हुए बापू ने कीर्तन करवाया। कीर्तन के बिना कथा सफल नहीं होती।
और कहा कि कथा छप्पन भोग है और कीर्तन तुलसी पत्र है, तुलसी पत्र के बिना ठाकुरजी छप्पन भोग स्वीकार नहीं करते। अपने भाव को रखते हुए बापू ने कहा ब्रजभूमि शुद्ध भूमि है और कितने ही सिद्ध संतों ने अपनी आंखों से कृष्ण लीलाओं का दर्शन किया है। ब्रज कोई भूमि का टुकड़ा नहीं है, ऊपर से उतारा गया है ऐसा कहकर जब बालकृष्ण की अद्भुत लीलाओं का अश्रुपूर्ण वर्णन किया तब पंडाल में अद्भुत प्रेम-रस छा गया था। रामकथा में आज रासरासेश्वर को याद करके श्रोताओं ने मनभर रास किया। पूरा पंडाल गायन,वादन और नृत्य सराबोर हो गया था।
नारदजी के श्राप को भगवान के अवतार का एक कारण बताकर उसका सुंदर और विस्तृत वर्णन करके आज की कथा को विराम दिया गया।
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