✒️ आचार्य सुभाष चमोली
हमारी सनातनी परम्परा में हिन्दू पंचांगानुसार कार्तिक महीना में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत मनाया जाता है। करवा चौथ और संकष्टी चतुर्थी ये दोनों व्रत एक ही दिन मनाया जाता है। संकष्टी चतुर्थी गणेश जी को खुश करने के लिए किया जाता है। भारतीय हिन्दू पंचांगानुसार यह पर्व कार्तिक महीना की कृष्ण पक्ष की चौथी तिथि को मनाया जाता है।
करवा चौथ को “करक चतुर्थी” भी कहा जाता है। करवा चौथ का व्रत विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु तथा प्रेम सम्बन्ध के स्थायित्व करने के लिए करती है। छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। करवा चौथ के व्रत का पूर्ण विवरण ‘वामन पुराण’ में किया गया है। दरअसल करवा चौथ मन के मिलन का पर्व है। इस पर्व पर महिलाएं दिनभर निर्जल उपवास रखती हैं और चंद्रोदय में गणेश जी की पूजा-अर्चना के बाद अर्घ्य देकर व्रत तोड़ती हैं।
व्रत तोड़ने से पूर्व छलनी में दीपक रखकर, उसकी ओट से पति की छवि को निहारने की परंपरा भी करवा चौथ पर्व की है। । इस दिन बहुएं अपनी सास को चीनी के करवे, साड़ी व श्रृंगार सामग्री प्रदान करती हैं। पति की ओर से पत्नी को तोहफा देने का चलन भी इस त्यौहार में है।
माना जाता है कि इस दिन यदि सुहागिन स्त्रियां उपवास रखें तो उनके पति की उम्र लंबी होती है और उनका गृहस्थ जीवन सुखद होने लगता है। हालांकि पूरे भारतवर्ष में हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग बड़ी धूम-धाम से इस त्यौहार को मनाते हैं
‘इस दिव्य मंत्र से सौभाग्य प्रदात्री मां शिवा से सौभाग्य संतति और भक्ति के लिए प्रार्थना करें |’
‘नमस्त्यै शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभा। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे !!।’
शिव-पार्वती की पूजा का विधान
करवा चौथ व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहनकर श्रृंगार कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का विधान है क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्व है। व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें। “मम सुख सौभाग्य पुत्र-पौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।”
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