(हरीश कण्डवाल ‘मनखी’)
रुद्रप्रयाग, पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले युवक युवतियों का सपना होता है कि वह 12वीं परीक्षा पास करके आगे की पढाई के लिए शहरों की ओर चली जाय, अधिकांश युवक 12वीं के बाद गॉव से शहर की ओर पढायी या रोजगार के लिए चले जाते हैं। एक बार जो चला जाता है, वह बहुत कम ही गॉव की ओर लौटता है। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाली युवतियों का एक ही सपना होता है कि वह ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट करके या तो कोई प्रतियोगिता परीक्षा देकर सरकारी नौकरी में लग जाय, या फिर किसी सरकारी नौकरी वाला लड़का मिल जाय, यदि प्राईवेट नौकरी वाला मिल भी जाता है तो उसका निवास शहरों में हो। गॉव में कृषि, और उद्यान, या स्वरोजगार करने वाली युवाओं की संख्या उंगलियों मे गिनी जा सकती हैं। इन्हीं उगलियों में गिनी जाने वाली युवाओं में एक ऐसी युवा जिसने ग्रेजुएशन करने के बाद शहरों की ओर भागने की कोशिश नहीं की बल्कि खुद गॉव में रहकर गॉव की मिट्टी से ही शहर से ज्यादा रोजगार कर अपनी आमदनी के रास्ते खोल दिये।
24 वर्षीया, बबीता रावत ने लिखी सब्जी और मशरूम उत्पादन की नयी इबारत, गॉव में खुद हल लगाकर उगाती है ऑर्गेनिक सब्जियॉ
रूद्रप्रयाग जिला के अगस्तयमुनि के गॉव उमरौला सौड़ निवासी कु0 बबीता रावत जिसने गॉव में रहकर कामयाबी की एक नई इबारत लिखी है, जिसके लिए हर किसी को सौ बार सोचना पड़ता है। बकौल बबीता रावत बताती हैं कि जब उन्होने अगस्तयमुनि में 2016 में बीए कर रही थी तो उन्होने देखा कि गॉव में लोग बहुत मेहनत तो करते हैं, लेकिन पांरपरिक खेती करने का जो तरीका है उसका मुनाफा उन्हे नहीं मिल पाता है। बबीता रावत बताती है कि अक्सर हमारे खेतो में पहले भी सब्जी का उत्पादन होता था जितनी हमें आवश्यकता होती उतना हम घर मे उपयोग कर लेते और बाकि इधर उधर बॉट लेते। लेकिन जब मैंने बाजार में देखा कि जिस सब्जी को हम मुफत में बॉट लेते हैं, और उसकी अहमियत नहीं समझते उसका व्यवसाय बाजार में लोग दुकान खोलकर बैठे हुए होते हैं। उसी समय सब्जी की पांरपरिक तरीका के साथ जरूरत के हिसाब से बदलाव कर सब्जी उत्पादन मेंं व्यवसाय करने की ठानी।
वर्ष 2016 मेंं स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया की तरफ से ( State Bank Of India Rural Self Employment Training Institutes (RSETIs ) गॉव में 10 दिन का मशरूम पर कार्यशाला के तहत प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया गया जिसमें सभी कृषि अधिकारी और उद्यान अधिकारी भी आये थे, जिसके तहत मशरूम उत्पादन के लिए प्रशिक्षण दिया गया। मैं उस दौरान बीए कर रही थी, सोचा पढाई के साथ यह प्रशिक्षण भी लिया जाय, उसके बाद मैनें अपने एक कमरे में मशरूम का काम शुरू किया। धीरे धीरे मशरूम में सफलता मिलनी शुरू हुई।
गॉव मे सगवाड़ी में तो हम थोड़ी बहुत सब्जी उगाते ही थे, अन्य खेतों मेंं पांरपरिक खेती करते थे, लेकिन उसमें फायदा कम और मेहनत ज्यादा थी। 2018 में पॉलीहाउस बनाया और सब्जी उत्पादन का काम शुरू किया। 2018 मे ही एम ए हिदीं से भी पूर्ण कर लिया। बकौल बबीता का कहना है कि जब मैनें यह काम शुरू किया तो शुरू में परेशानी जरूर हुई, सबसे ज्यादा चुनौती हल लगाने की थी। मेरे परिवार में कृषि और पशुपालन का काम पुरखों से चला आ रहा है। एक लड़की होने के नाते हल लगाना थोड़ा अटपटा जरूर था, लेकिन मैने कुछ अलग हटकर करने की ठानी थी और मैनें खुद ही अपने घर में बैलों से हल लगाना शुरू कर दिया । मशरूम के साथ मौसम की सारी सब्जी जो ऑर्गेनिक हैं, उन्हे उगाना शुरू किया।
बबीता बताती हैं कि आज 5-6 नाली जमीन में सब्जी का उत्पादन हो रहा है, महीने की औसतन आमदनी लगभग 15-20 हजार हो जाती है, साथ ही मशरूम से भी आर्थिक सहायता मिल जाती है, मशरूम का बाजार नहीं होने एवं समय पर बीज ना मिलना मुख्य समस्या रहती है। बबीता रावत का यह भी कहना है कि रोजगार की जहॉ तक बात की जाय तो ग्रामीणों क्षेत्रों मेंं अपार संभावनायें हैं, बस जरूरत है तो मेहनत लगन और धैर्य की। बबीता कहती है कि मैनें यह अनुभव किया है कि यदि हम किसी कार्य को धेय बनाकर करना शुरू करें तो सफलता अवश्य मिलती है, शुरू में कई बार असफलता भी मिलती है, कई बार परिणाम प्रतिकूल भी रहते हैं, लेकिन आशावादी और सकारात्मक सोच यदि बनी रहे तो फिर वही असफलता सफलता की राह खोलती है।
बबीता रावत बताती है कि घर और खेत सड़क के किनारे होने के कारण शाम को घर में ही सब सब्जी बिक जाती है, कुछ दुकान वाले खुद ही ले जाते हैं। आज बबीता ने अपने हुनर के बल से गॉव और क्षेत्र में सब्जी उत्पादन और कर्मठ युवा की पहचान बना ली है। मशरूम उत्पादन की ट्रेनिग देती है, और लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करती हैं। बबीता रावत के इस जज्बे की जितनी तारीफ की जाय उतना ही कम है।
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