Friday, April 19, 2024
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“रंवाल्टी लोक भाषा” : एक अच्छा प्रयास अपने लिए और अपनों के लिए

✒️Ruchi Rawat

“रूची रावत दिल्ली विश्व विद्यालय की स्नातक छात्रा है। वे रंवाल्टी लोकभाषा संरक्षण के लिए रंवाल्टी लेख, रंवाल्टी लोक गीतो आदि का संग्रहण कर रही है। भविष्य में उनका यह कार्य एक दस्तावेज के रूप में सामने होगा और शोधार्थियों के लिए महत्वपूर्ण होगा।”

नाना ऐ जेत्ति (जितने) भी पुराणे लोग औस्ति (है) अक्सर ये औनांण (लोकोक्ति) देण (देते है) कि “औशूज़ रै मिने दी न कोई औयी चांई न कोई मॉरी चांई ” अर्थात “अश्विन के महीने में न ही कोई जन्मे और न ही कोई मृत्यु को प्राप्त हो ” ।
ये औनांण प्रयोग में तेतरा (जब) लाया जाता था जेतरा (जब) काम के टेम हम ईजा को घौसलाई (जहां पर घास काटा जाना होता है ) में जाने के लिए बेराते (विलम्भ) थे, तेतरा नाना रोष (गुस्से) में बोलते थे एक पॉशै (साइड) कामे री शिबरात (बहुत काम होना) एक पॉशै यूंउँ (इनकी) पेटारियूं (बच्चों) री टन- टन (हल्ला)।

ये मीना (महीना) साल का सबसे ब्यस्त मीना होता है आमारे (हमारे) यहाँ । जहां एकपॉशै घस्लाइयां (घसलीण) होती है काटने को, वहीं ओकी (दूसरी) पॉशै धाने रि चुलियै (धान की बाली) पाचधै (पकना) लागे ,और साथ ही साथ सोयबीन, माष (उड़द),तिल, बॉन्गजीर आदि की खेती भी तैयार रहती है, मतलब आदमी को चैन ही नहीं । जितना भी टेम है वो उसे सारे कामों को एक साथ निबटाने के लिए लगाना है ।फिर ऊपर से गौइंटा (आसमान) औज़ी (और) अपने करतब दिखाता है, अगर गलती से धान के कुनु में पाणी चला गया या खौले (खलिहान) में पानी रह गया तो अन्न की सड़ने की सम्भावनाए होती है ।

औशूजे रौ (का) घास ईजा जेठै (जेठ) रै मिने तक टापति (पुगाया जाना) है गोरुओं (पशुओं) के लिए ,तेतरा (तब) केतके (कब) मिलता है घास ,एशौ (ऐसे) तै शूखौ (सूखा)औ (होता) बाहर पौडीयूँ (पड़ रखा) तब और जांगलू (जंगलों में) दी आग लागै (लगती है)।इसीलिए ईजा लोग भादों (भाद्रपद) के मीने से ही हरा घास सुखा के जोटिये (जोड़ा) बना के टांग लिया करते हैं ताकि जब घास की आपूर्ति न हो तब वो घास काम आ सके ।

और ये बात भी कभी छुपी नहीं है कि अगर जीवन में इजै ने हमसे ज्यादा प्यार किसी को किया है तो वो है इजै की ‘ गाय ‘, एतरा (आज) भी मु ( मुझे) याद कि,जेतरा (जब) इजै डोखरे जाती थी और दूसै (दिन में) कौलियार (दोपहर का भोजन) खाने घर आती थी तो सबसे पहले ये पूछती थी कि गाय को छून (चारा) दी या नहीं, अगर कभी गलती से हम देना भूल जाते थे तो रोष रोष में ईजा डॉइण (डायन) तक बोलने में नहीं परहेज करती थी, इतना प्रेम है इजै को गाय से अपनी।

वहीं दूसरी तरफ नाना को उतनी चिंता हमारी भी नहीं होती थी जितनी गोरुओं (पशुओं) की होती थी ,अगर एक भी बैल घर न आये तो नाना रात भर जागरण करवाते थे कि कहीं उजाड़ न पड़ जाए ।
औशूज का मीना मेरे लिए इजै (और उन तमाम पहाड़ी स्त्रियों) के परिश्रम का मीना है जो दिन रात मेहनत करती है ,घर – खाना -गोरु -फिर खेत का काम ।आसान नहीं होता ये सब , कहते हैं कि स्त्रियां फूल की तरह कोमल होती है लेकिन जब जब मैंने ईजा को देखा है तो वज्र के समान कठोर और हृदय से उतनी ही नर्म दिखी है ।

ये मीना है बाबा (और उन तमाम पहाड़ी पुरुषों) के परिश्रम का मीना जो अपने कंधों को लोहे के समान कठोर कर हल लगाने के साथ साथ घास – धान – दाल और बाकी की तमाम अन्न खेतों से खलिहान तक पहुंचाते हैं । जब जब मैंने बाबा को देखा है तो उनके चेहरे पर एक अलग ही चिंता की लकीरें पाई है ,वो लकीरें बयां करती है कि अन्न का खलिहान तक पहुंचाना ही काफी नहीं होता ,उसके बाद खौला (खलिहान) निकालना भी एक महाभारत होती है अपनेआप में । औशूज का मीना हम पहाड़ियों के जीवन में ढेरों चुनौतियां लेके आता है ,और ये भी सच है कि चुनोतियाँ इजै बाबा को लड़नी पड़ती है सिर्फ और सिर्फ हमारे लिए ।

चुनोतियाँ आती है, हम लड़ते है ,और फिर आता है बदलाव ।ठीक इसी प्रकार हमें और हमारी संस्कृति को चुनौती दी है समय ने, अगर हम आज एक जुट होकर लड़ सकते हैं तो कल स्वतः एक सकारात्मक बदलाव आएगा ।हम भले ही रहे या न रहे लेकिन हमारे आने वाले अपनो के लिए कुछ ऐसा हो जाएगा जिसमें वो गर्व महसूस करेंगे ।
तो इसतरह मैंने तो सहेज लिया अशूज के महीने को अपनी फेसबुक वॉल पे ।अब बारी आपकी है । फिर दरख्वास्त है मेरी सभी से,लिखिए ,कुछ भी !!बस बोल अपनी भाषा के हो ,उनका कुछ शाब्दिक अर्थ हो ,ताकि पढ़ने वाला उनको प्रयोग में ला सके ,

उनका असली अर्थ खोए न ,वह आगे भी पढ़े जाएं ।
लोकबोली को बचाने का ये जरिया चुना है मैने कि ज्यादा से ज्यादा अतरंगी बातों को जो हमारे रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी हुई है उन्हें अपनी बोली में ,मैं आपके समक्ष रख सकूं ताकि ज्यादा से ज्यादा बंगाणी शब्द प्रयोग में आए ,और इस तरह वो मेरी फेसबुक वॉल पे हमेशा के लिए सहेजे जाएंगे ।मैं स्वयम खुद बहुत सी चीजें नहीं जानती हूं ,उतना अच्छा शायद बोल भी नहीं पाती लेकिन सीखने की प्रक्रिया मेरी जारी है ।आप सभी के सुझाव बहुत मान्य है मेरे लिए ।

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