Thursday, April 25, 2024
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सतपुली से, पंचमू की ब्वारी का ‘बग्वाल’ पर मन की बात

✒️हरीश कंडवाल ‘मनखी’

पंचमू की ब्वारी ने सुबह उठकर स्नान करने के बाद गायों के लिये चावल, बाड़ी की ढिंडी बनाकर रख दी थी, सुबह जौ का आटे से भी ढिंडी बनाई, फिर उनके ऊपर कपनेर, बुग्वलू, गेंदा, अलग अलग प्रकार के फूलों से सजा कर चार परात भरकर रख दी। इधर सासू ने सिलबट्टे में सूंठ पीसकर मसेटू बना लिया, उधर पंचमू कि ब्वारी ने भड्डू पर उड़द की दाल चूल्हे में चढ़ा दी है। इधर बच्चे बीच बीच में पटाखे फोड़ रहे हैं, उधर पंचमू मोर सिंगार पर लगाने के लिये गेंदा फूल से माला पिरो रहा है। सूंठ की पकौडी बनकर तैयार हो गयी हैं, चार पकौडी बैलों के लिये अलग रख दी है। पंडित जी भी बग्वाल पूजने आ गए हैं। एक लोटा पर पानी रख दिया है, मालू के पत्ते पर हल्दी पीठाई लगाने के लिये रख दी है, साथ में कटोरी पर सरसों का तेल रख दिया है, और थोड़ा सा घी, धूपण देने के लिए रख दिया। घुफलू पर आग लगा दी है, यह बग्वाल देते समय साथ में धूपणू देने के लिए लेकर जाना है।

पंडित जी ने सपरिवार को बिठाकर बग्वाल की पूजा की। उसके बाद सबने सिर पर बग्वाल की टोकरी उठायी और बग्वाल देने छानी में चले गए, आगे आगे कन्या के सिर पर परात में पकौड़ी, घी की कटोरी और पानी को लोटा रख दिया है। गौ पूजन के लिए सबने व्रत रखा है। गाँव मे सब लोग परात सर में रखकर लम्बी कतार के साथ बग्वाल देने निकल गए हैं। बच्चों बूढ़े और युवाओं में उत्साह है।

इधर पंचमू ने खूंटे से गायों को खोल दिया है। बैलों को और गायों के पैर धोकर फिर उन्हें घी का धूपण देकर उनकी पूजा की। बग्वाल की परात खेत के ऊपर वाले मेंड़ में रखी है गया नीचे वाले खेत मे है। पंचमू ने पकौड़ी बैलों को खिला दी है, और उधर सब लोग गायों को बाड़ी झंगोरा, जौ और चावल की ढिंडी खिलाने में लगे है। दो गायों ने व्रत रखा है वह किनारे खड़ी हो गयी है। छोटे बछड़े के मुंह पर बाड़ी चिपक रहा है तब उन्हें झंगोरा खिला रहै हैं। उधर बच्चे पटाखे फोड़ने में लगें है। पंचमू ने पानी का लोटा उठाया और गायों के ऊपर छिड़कते हुए कह रहा है कि,

धीत ल्याव, बरगत ल्याव,
गाढो को पाणी सुखी ग्यायी
डाँडो को घास कम ह्वे ग्यायी
खेती पाती बटोळी धरे ग्यायी
अन्न कू भंडार भरे ग्यायी
है गौ माता तुम खुश ह्वे जाव
तुम धीत ल्याव बर्गत ल्याव।

उसके बाद पंचमू कि ब्वारी तो गायों को देखने लगे गयी और पंचमू उसकी माँ और बच्चे सब घर चले गए हैं। सबने उडद की दाल और भात खाया सूंठ की पकौडी खायी, शाम को स्वाले बनाने के लिए लोभिया चूल्हे में रख दी। इधर पंचमू खाना खाकर आ गया है, और पंचमू कि ब्वारी घर खाना खाने चली गयी है। शाम को स्वाल बनेंगे, बच्चे फुलझड़ी, चरखी, अनार, मुर्गा छाप, अनार जलायेगे।
पंचमू की ब्वारी ने खाना खाया थोड़ा आराम करने के लिए बैठी तो सोचा कि दो चार अपडेट सोशल मीडिया में मैं भी कर दू।
सोशल मीडिया में पंचमू की ब्वारी ने सबको धनतेरस, बग्वाल, दिवाली, गोधन, भाई दूज की शुभकामनाएं दी। पंचमू कि ब्वारी ने अपने मन की पीड़ा कुछ इस तरह से बया कि… पंचमू कि ब्वारी ने कहा कि अब त्यौहारों में वो हर्ष और उल्लास नही रह गया है, अब बस चकाचौंध तो है, लेकिन वह खुशी नही। इस बार गाँव मे दीवाली पर कोई नही आया, जबकि हर साल नौकरी करने वाले घर आते थे। सबने कहा कि हमारी छोटी दिवाली को छूट्टी नही है, सब लोग अब जो सोशल मीडिया में त्यौहार मना रहे हैं, किसी के पास फुर्सत ही नही है। हम पहाड़ियों के त्यौहार तो बस दिखावे के मात्र रह गए हैं। सब पर बाजारवाद का साया लग गया है। बस रुपये ख़र्चने और दिखावे के त्यौहार है, बस गिफ्ट इधर उधर भेजने तक सीमित रह गए है। यदि हम लोग सही मायने में अपने तीज त्यौहारों की कद्र करते तो छोटी बग्वाल भी सब मिलकर मनाते, लेकिन हम अंधी दौड़ में भाग रहे हैं, इसलिए हमें सुकून नही मिल रहा है। हमारी बचपन की दीवाली में महंगे कपड़े, पटाखे लड़िया, भोजन, मिठाई, गिफ्ट नही थे लेकिन हमारे पास खुशी अपार थी, एक दूसरे के प्रति प्रेम था।
यदि गाँव मे किसी परिवार में किसी बुजुर्ग का देहांत हो जाता था तो उनकी झूठी बग्वाल होती थी, लेकिन वह खुद बग्वाल नही मनाते थे लेकिन गायों के लिए भोजन जरूर बनता था। जिस परिवार की झूठी बग्वाल होती थी उसके यँहा तेल की बनी चीजें नही बनती थी। ऐसे में सब गाँव वाले उसके यँहा स्वाले पकौड़े मिठाई देते थे। यह आपसी सौहार्द्र का वातावरण गाँव मे था, रात में मिलकर भैलो खेलते थे, घर के आंगन में थड़या चौफला होते थे।

अब गाँव मे भी शहरों वाला हिसाब हो गया है। आज हमारे पर्व पर बाजार का साया लग गया है, जबकि पहले गरीब अमीर सब एक जैसे तरीके से त्यौहार मनाते थे। अब तो कब त्यौहार आया कब गया मालूम ही नही होता। हमारे पहाडी मुल्क में गायों की सेवा की जाती थी, क्योकि गाय सर्वगुण सम्पन्न थी। गाय के दूध गोबर, मूत्र, बछड़ा, सब उपयोगी था, देहांत होने के बाद शरीर चमड़ा का काम आता था। अब तो गाय पालना दुभर हो गया है।। इसलिये आज के जमाने मे सम्पन्न होते हुए भी हम खुश नही है, वह उत्साह नही है, जो पहले होता था।

समय जैसा चल रहा है,, वैसे ही हम भी गतिमान है, अभी मुझे शाम की तैयारी जो करनी है। जिसको स्वाले और घी खाना है, वह शाम को मेरे घर आ जाना। एक बार आप सभी को दीप पर्व की शुभकामनाएं।

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