देहरादून, समाज को सार्थक दिशा दिखाने में कवियों और साहित्यकारों का सकारात्मक पक्ष रहा है, अपने लेखन के माध्यम से समय समय पर समाज को जागरूक करने का कार्य कविगण हमेशा से करते आये हैं, “नशा मुक्ति” के इसी कड़ी के समरूपित पक्ष को कवि सुरेश स्नेही ने अपनी कविता के माध्यम से रखा है, प्रस्तुत है उनकी कविता….
नशा मुक्त जहां (अपील)
न पियो ना पिलाओ तुम
न खाओ न खिलाओ तुम,
स्वस्थ रहो मस्त रहो,
नशा दूर भगाओ तुम,
आश देश की है तुमपे,
मेरे देश के जवानों
योग करो निरोग रहो,
मेरे सभी भाई बहनों,
नशा नाश करता है,
शरीर का दिमाग का,
नशे से लगे है रोग,
यह सुराग बिमारी का,
जो पिये नशा खाये नशा,
बुरी है उसी कि दशा,
अभी भी सोच समझ,
बिमारी का घर ना बसा,
रात दिन परेशान रहे,
रसपान नशा जो भी करे
सुबह सांझ कब है ढले,
नशे में पता न चले,
हे नौ जवान सोच समझ,
चेतना जगा के सजग,
हाथ उठा उठ खड़ा हो,
नशा मिठा ले के खडग,
नवीन भारत की हो,
तुम ही हो नई कमान,
स्वस्थ रहोगे जो तुम,
होगा देश ये महान,
तुमपे ही है आश मेरी,
तुमसे है विश्वास मेरा,
शपथ ले के आज से ही,
तुम करो नया सबेरा,
नशा नही रहेगा जब,
तभी तो होगा तेरा मेरा,
अन्यथा नशे का जहर,
फैलायेगा यहां अन्धेरा,
वक्त है अभी भी सम्भल,
नशामुक्त हो जहां ये,
जन्म ना ले फिर दुबारा,
नशे को मिटा यहां से ।
सुरेश स्नेही,
सर्वाधिकार