देहरादून, सिटीजन फॉर ग्रीन दून को पेड़ों तथा शाखाओं के गिरने के कारण दो लोगों की दुखद मृत्यु पर गहरा दुख है। हम इन रोके जा सकने वाली घटनाओं से प्रभावित परिवारों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं।
प्रत्येक मानसून में, जबकि बारिश राहत लाती है, वे एक आवर्ती समस्या को भी उजागर करती है: कमज़ोर पेड़ों के कारण होने वाली टालने योग्य दुर्घटनाएँ, जिन्हें अक्सर “खतरनाक” के रूप में गलत लेबल किया जाता है। भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के बावजूद, जिसमें उचित वायु संचार, जल तथा पोषण सुनिश्चित करने के लिए पेड़ों की जड़ों के चारों ओर 1.5 मीटर कंक्रीट-मुक्त क्षेत्र अनिवार्य किया गया है, हमारे शहर में कई पेड़ कंक्रीट से दबे हुए हैं। इसके अलावा, लापरवाह शहरी विकास प्रथाएँ, जैसे कि जेसीबी का उपयोग करके सड़क चौड़ीकरण परियोजनाएँ, पेड़ों की जड़ों को और अधिक नुकसान पहुँचाती हैं, जिससे वे तेज़ हवाओं या भारी बारिश के दौरान गिरने के लिए कमज़ोर हो जाते हैं। इन जीवनदायी पेड़ों को फिर ख़तरा बताकर तुरन्त गिरा दिया जाता है। इस तर्क के अनुसार, क्या बाढ़ के दौरान लोगों की जान लेने वाली नदियों को “खतरनाक” माना जाना चाहिए और उन्हें रोक दिया जाना चाहिए? क्या सड़कों को बंद कर दिया जाना चाहिए, जहाँ दुर्घटनाओं के कारण हर साल अनगिनत लोगों की जान चली जाती है? पेड़, पानी और सड़कों की तरह, जीवन के लिए आवश्यक हैं, फिर भी कुप्रबंधन उन्हें ख़तरनाक बना देता है।
वर्षों से सिटीजन फॉर ग्रीन दून
ने अधिकारियों से भारत सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन करने, पेड़ों के आधारों को कंक्रीट से मुक्त करने और पेड़ों की सुरक्षा के लिए शहरी विकास एजेंसियों के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) स्थापित करने का आग्रह किया है।
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